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93 बार मिल चुकी है हार, फिर भी 94वीं बार चुनाव लड़ने को तैयार है यह उम्मीदवार

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आगरा। आगरा के हसनूराम आंबेडकरी के नाम एक अनोखा रिकॉर्ड है। 75 वर्षीय हसनूराम अभी तक 93 बार अलग-अलग चुनाव लड़ चुके हैं। भले ही उनको अभी तक किसी भी चुनाव में जीत न मिली हो, लेकिन उन्हें कोई मलाल नहीं है। खेरागढ़ तहसील के नगला दूल्हा में रहने वाले हसनूराम के इतने चुनाव लड़ने के पीछे बड़ी रोचक कहानी है। 36 साल पहले एक बड़ी पार्टी की ओर से उन्हें चुनाव लड़ाने का आश्वासन दिया गया था, मगर बाद में उन्हें टिकट नहीं दिया गया था। टिकट न देने के पीछे जो कारण बताया गया था, वो बात हसनूराम को चुभ गई। बस तब से उन्होंने हर चुनाव लड़ने की ठान ली। अब वो सबसे ज्यादा हार का रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं।
चुनाव के लिए छोड़ी थी सरकारी नौकरी
हसनूराम आंबेडकरी का जन्म 15 अगस्त 1947 को हुआ था। यानी जिस दिन देश आजाद हुआ था। हसनूराम ने बताया कि वह राजस्व विभाग में अमीन के पद पर कार्यरत थे। उस समय वह वामसेफ में सक्रिय थे। साल 1985 में उन्हें एक क्षेत्रीय दल की ओर से विधानसभा चुनाव लड़ाने का भरोसा दिया गया। उनसे कहा कि वो अपनी नौकरी छोड़कर चुनाव की तैयारी करें। आश्वासन पर उन्होंने अपनी नौकरी से इस्तीफा दे दिया।
मगर, चुनाव के समय पार्टी ने उन्हें टिकट नहीं दिया। इस पर उन्होंने पार्टी के पदाधिकारी से विरोध जताया तो पदाधिकारी ने उनसे कहा कि तुम्हारे पड़ोसी तुम्हें सही से नहीं जानते तो लोग क्या वोट देंगे। हसनूराम ने बताया कि यह बात उनको चुभ गई। उन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ने की ठान ली। उन्होंने फतेहपुर सीकरी विधानसभा सीट से निर्दलीय चुनाव लड़ा और 17711 वोट पाकर तीसरे स्थान पर रहे। इसके बाद से वो लगातार चुनाव लड़ते आ रहे हैं।
हसनूराम ने बताया कि 1985 से वो लगातार चुनाव लड़ रहे हैं। तब से जितनी बार भी विधानसभा, लोकसभा, पंचायत में वो निर्दलीय लड़े हैं। इतना ही नहीं वो राष्ट्रपति पद के लिए भी नामांकन कर चुके हैं। इसके अलावा एमएलसी, सहकारी बैंक सहित 93 बार चुनाव मैदान में उतर चुके हैं। 2022 के विधानसभा चुनाव में वो 94वीं बार मैदान में उतरेंगे।
वो आगरा ग्रामीण से 12 बार, खैरागढ़ विधानसभा से 12 बार और फतेहपुर सीकरी विधानसभा से 6 बार चुनाव लड़ चुके हैं। हसनूराम ने कहा कि वो जीतने के लिए नहीं, बल्कि हारने के लिए लड़ते हैं। वो 100 बार हारने का रिकॉर्ड बनाना चाहते हैं। उनका दावा है कि पूरे देश में सबसे ज्यादा चुनाव उन्होंने ही लड़े हैं।
हसनूराम पेशे से अब किसान और मनरेगा मजदूर हैं। उनके घर में पत्नी शिव देवी और पांच बेटे हैं। चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने एक फंड बना रखा है। वो रोज उस फंड में कुछ न कुछ रुपए डालते हैं। उन्होंने बताया कि नामांकन प्रक्रिया में जो खर्च आता है, उसके अलावा उन्होंने चुनाव में तक एक भी रुपए खर्च नहीं किया। उनका कहना है कि वो प्रचार के लिए घर-घर लोगों के बीच जाते हैं। जो लोग किसी भी पार्टी और नेता से खुश नहीं होते हैं, वो उनको वोट देते हैं। वंचित समाज का वोट उन्हें मिलता है।


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