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जीएसटी ने रसोई में लगाई महंगाई की आग, मिठाई भी हुई कड़वी, बढ़ी हुई दरें वापस लेने की उठी मांग

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मालदा । महंगाई का बोझ झेल रहे आम लोगो पर अब जीएसटी की मार पड़ी है। खाद्य पदार्थों व ने रोजमर्रा की चीजों पर अब जीएसटी लगने से घरेलू खर्चों में इजाफा होना शुरू हो गया है। दुकानदारों ने जीएसटी की नई दरें लागू होते ही बढ़े दामों पर बिक्री शुरू कर दी है।
दरअसल 18 तारीख से पैकेट बंद और लेवल वाले प्रोडक्ट्स पर 18 फीसदी की दर से जीएसटी लगा रहा है। वहीं, पहले इस पर सिर्फ 5 फीसदी की दर से टैक्स लगता था। इसके अलावा नारियल पानी पर 12 फीसदी और फुटवेयर के कच्चे माल पर भी 12 फीसदी जीएसटी की नई दरें लागू हो गयी है। मछली, दही, पनीर, लस्सी, शहद, सूखा मखाना, सूखा सोयाबीन, मटर जैसे उत्पाद, गेहूं और अन्य अनाज तथा मुरमुरे पर अब पांच प्रतिशत जीएसटी लगे रहा है। आपको बता दें अब तक इन वस्तुओं को जीएसटी से छूट मिली हुई थी। यही कारण है कि खाने पीने के पदार्थ पहले ही महंगे चल रहे है। इससे लोगो की पहले ही कमर टूटी जा रही है। महंगाई से मिडिल क्लास किचन में आग लगी हुई है, महंगाई की आग में सभी जल रहे हैं। सरकार ने साथ ही छेना और मिठाइयों पर पांच प्रतिशत जीएसटी लागू किया हैं। स्वाभाविक रूप से, स्वादिष्ट बंगाली भोजन मिठाइयों की कीमत में वृद्धि से खरीदार और विक्रेता चिंतित हैं।
जीएसटी की कीमतों में वृद्धि के बाद पहले दिन बाजारों में पहले दिन पड़ताल की गई तो पाया गया कि बड़ी संख्या में दुकानदारों ने दाल, चावल, चीनी, तेल, दूध दही आदि पर रुपए बढ़ा दिए है। खाद्य पदार्थों और अन्य वस्तुओ पर रुपए बढ़ने से लोग एक बार फिर कराह उठे हैं। लोगो का कहना है कि जिसको जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए था उसको नही लाया गया। खाद्य पदार्थों पर जीएसटी लगाने से लोगो पर बड़ा बोझ बढ़ गया है। लोगों का कहना है कि महंगाई कम थी जो जीएसटी लगाकर और बढ़ाई गई। पेट्रोलियम पदार्थो को जीएसटी के दायरे में लाना चाहिए था लेकिन पेट्रोलियम पदार्थो को जीएसटी के दायरे से अलग रखा गया है, और खाद्य पदार्थों पर जीएसटी लगाई गई है यह आम लोगो पर बड़ा बोझ है। एक गृहणी ने बताया इससे घर का पूरा बजट बिगड़ जाएगा सरकार को यह फैसला वापस लेना चाहिए।
सरकार ने मिठाइयों सहित अन्य वस्तुओं पर 5 प्रतिशत जीएसटी लगाया है। मिठाई विक्रेताओं का भी कहना है कि सरकार को अपन फैसला वापस लेना चाहिए, ताकि लोगों पर महंगाई की बोझ और न बढ़ें।


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