नई दिल्ली। 27 साल की उम्र ही क्या होती है। अगर फैक्ट्री में काम करने वाले वर्कर का हाथ बुरी तरह से कुचल उठे तो सोचिए, वो मंजर कैसा रहा होगा। घटना नवंबर 2019 की है। सुबह के 5 बज रहे थे और यूपी के सहारनपुर के रहने वाले जख्मी युवक को अस्पताल में भर्ती किया जाता है। उसका बायां हाथ (फोरआर्म) हाइड्रोलिक प्रेशिंग मशीन से पूरी तरह से क्रश हो गया था। फोरआर्म का मतलब अग्रभुजा यानी हाथ की कोहनी से आगे का हिस्सा पूरी तरह से जख्मी था। पूरे तीन साल तक कई स्तर की सर्जरी करने वाले एम्स दिल्ली के डॉक्टरों ने आखिरकार कमाल कर दिया। उस मरीज के लिए यह चमत्कार से कम नहीं है। इसके साथ ही एम्स देश का पहला अस्पताल बन गया, जहां एक मरीज के लिए सफलतापूर्वक नया फोरआर्म ही तैयार कर दिया गया।
बस एक राहत की बात थी
डॉक्टर बताते हैं कि उस दिन जब फैक्ट्री वर्कर अस्पताल आया था तो कोहनी के जोड़ से चोट 5 सेमी दूर तक थी। कलाई की तरफ स्किन, सॉफ्ट टिशूज, नर्व्स, मशल्स और हड्डी चोटिल हुई थी, बाकी हाथ को उतना नुकसान नहीं पहुंचा था। फैक्ट्री में बड़ी-बड़ी मशीनों को हैंडल करने में हाथ का ही इस्तेमाल होता है और ऐसे में काफी जोखिम होता है। इस केस में डॉक्टरों ने तीन स्टेज में आगे बढ़ने का फैसला किया। राहत की बात यह थी कि युवक की हथेली अब भी सामान्य स्थिति में थी और अपना फंक्शन कर रही थी।
डॉक्टरों ने बनाया प्लान
डॉ. मनीष सिंघल की अगुआई वाली प्लास्टिक सर्जरी की टीम ने मरीज की स्थिति का गंभीरता से आकलन किया। साफ हो चुका था कि यह बहुत ही जटिल केस है। हाथ जख्मी नहीं है और आगे के हिस्से यानी फोरआर्म में काफी चोट है जिससे अलग तरह की समस्या पैदा हो जाती है और ऐसे केस में हाथ का रीअटैचमेंट संभव नहीं होगा क्योंकि आगे का हाथ तो बुरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका था।
6 घंटे का टाइम कीमती होता है
प्लास्टिक, पुनर्निर्माण और बर्न सर्जरी डिपार्टमेंट के प्रमुख सिंघल ने कहा, ‘ऐसे मामलों में सर्जरी तभी संभव हो पाती है जब मरीज को दुर्घटना के 6 घंटे के भीतर अस्पताल लाया गया हो। किस्मत से, इस मरीज को इस समय के भीतर लाया गया था।’
इस केस में आमतौर पर दो विकल्प बनते थे, मरीज को प्रोस्थेटिक हाथ दिया जाए या हाथ के क्षतिग्रस्त हिस्से को हटाकर फंक्शन कर रही हथेली को हाथ से अटैच किया जाए। लेकिन बाद वाले विकल्प में हाथ की लंबाई घट सकती थी। ऐसे में डॉक्टरों की टीम ने फोरआर्म को फिर से बनाने का फैसला किया और उसके साथ हथेली को जोड़ा जाना था।
पहला स्टेप
चोटिल हाथ से हथेली को जल्द से जल्द अलग करना था और क्रश हो चुके हिस्से को अलग। ऐसे में कोहनी की चोट की फिर से सिलाई की गई।
दूसरा स्टेप
अब हथेली को शरीर के दूसरे हिस्से से अटैच करना था। डॉक्टरों ने टखने के करीब बाएं पैर से इसे अटैच कर दिया। देखने और समझने में यह अजीब बात थी लेकिन डॉक्टरों के ऐसा करने के पीछे वजह चिकित्सकीय थी।
प्लास्टिक और बर्न्स सर्जरी विभाग के डॉ. राजा तिवारी ने बताया कि हम हथेली की संवेदनशीलता को बरकरार रखना चाहते थे इसीलिए इसे पैर से जोड़ा गया। अगर इसे शरीर के किसी दूसरे हिस्से से जोड़ा गया होता तो सेंसेशन खत्म हो सकता था। जब हाथ को वापस अपनी जगह लाया गया तो हमने बाएं पैर की उसी नर्व्स को भी लिया था। यही नहीं, हथेली को अस्थायी तरीके से अटैच करने के लिए पैर की हड्डियों का पता लगाना आसान था। डॉ. तिवारी ने कहा कि हमने पैर को चुना क्योंकि उसमें अतिरिक्त नसें, रक्त वाहिकाएं और मांसपेशियां होती हैं।
आगे की चुनौती
अब नया फोरआर्म बनाने के लिए डॉक्टरों ने पैरों से दो टिशू यूनिट निकाला। पहला हिस्सा घुटने के नीचे वाले हिस्से से लिया गया और दूसरा जांघ के पास से निकाला गया। आखिर में पैर में लगाई गई हथेली को अलग कर नए फोरआर्म के आगे जोड़ना था जिससे तंत्रिका तंत्र की मरम्मत या कहिए ऑपरेशन पूरा होता।
सर्जरी टीम में शामिल डॉ. शिवांगी साहा ने बताया कि धमनियां, नसें और मांसपेशी को हड्डी से जोड़ने वाले ऊतक होते हैं जो अंगुलियों को मांसपेशियों से कनेक्ट करते हैं। हाथों का मूवमेंट करने के लिहाज से कमांड और कंट्रोल करने में ब्रेन के लिए कोई समस्या नहीं थी। बस इतना जरूर है कि मांसपेशी की ताकत कम हो जाती है।
आज की तारीख में मरीज चाबी का इस्तेमाल कर सकता है, कुछ उठा सकता है, पानी की बोतल ले सकता है और कोहनी की ताकत भी अच्छी है। वह अपने बाएं हाथ से बड़ी चीजें भी पकड़ सकता है। वह अपनी अंगुलियों और अंगूठे के बीच में पेन पकड़ सकता है और पास की मांसपेशियों की मदद से लिख सकता है।
सिंघल ने बताया कि महामारी के दौरान फॉलोअप कर पाना एक और बड़ी चुनौती रहा। हमने लॉकडाउन के दौरान एक टेली-रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम भी किया। प्लास्टिक सर्जरी डिपार्टमेंट से डॉ. शशांक चौहान और डॉ. सुवशीष दाश और ऑर्थोपेडिक व एनेस्थीशिया विभागों से डॉ. समर्थ मित्तल और डॉ. सुलगना भी टीम में शामिल थे। फिजियोथेरेपी का भी एक बड़ा रोल था जिसे डॉ. मीसा ने लीड किया था।
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