नई दिल्ली। नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी (एनआईए) ने बड़ा खुलासा किया है।एनआईए के अनुसार देश में आतंकियों ने एक नए हाईटेक नेटवर्क का जाल बिछाया है। इसके जरिए आतंकी संगठन आईएसईएस और अलकायदा दोनों मिलकर स्लीपर सेल तैयार कर रहे हैं। यह संगठन इसके लिए टेक्नोलॉजी का सहारा ले रहे हैं। दरअसल, यह आतंकी आपस में कम्युनिकेशन के लिए एक मोबाइल एप को हशियार की तरह इस्तेमाल कर रहे हैं। यह आतंकी संगठन देश के अलग-अलग राज्यों में सक्रिय हैं।
एप पर करतें हैं बातचीत :
यह आतंकी संगठन अपनी खुफिया बातचीत के लिए मोबाइल एप का सहारा ले रहें हैं। कम्युनिकेशन होने के बाद यह एप को डिलीट भी कर देतें हैं ताकि इनको आसानी से ट्रेस न किया जा सके। हालांकि एनआईए को हाल ही में एक सोशल मीडिया चैट से इन आतंकी गुटों को ट्रेस करने में सफलता मिली है। एनआईए को पता चला कि यह आतंकी संगठन कम्युनिकेशन के बाद एप से सभी डिजिटल फुटप्रिंट साफ कर देतें हैं और बाद में कम्युनिकेशन के लिए एक नया एप डेवलप कर लेते हैं।
कई राज्यों में सक्रिय हैं यह संगठन :
बता दें कि एनआईए को आईएसईएस और अलकायदा के देश के कई राज्यों में होने के सुराग मिले हैं। एनआईए के अनुसार ये आतंकी संगठन देश के 10 अलग-अलग राज्यों में सक्रिय हैं। पिछले कुछ समय में एनआईए ने इन्हें ट्रेस करने के लिए कई सारी छापमार कार्रवाई भी की हैं, लेकिन अब तक नेशनल इन्वेस्टीगेशन एजेंसी को कोई सफलता नहीं मिल पाई है। हाल ही में एनआईए द्वारा आईएसईएस और अलकायदा संगठनों को ट्रेस करने के लिए 7 राज्यों के 14 शहरों में भी छापमारी की गई थी।
संगठन बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का ले रहे सहारा :
ये आतंकी संगठन नफरत फैलाने और अपने संगठन को बढ़ाने के लिए सोशल मीडिया का सहारा ले रहे हैं। ये लोग पहले सोशल मीडिया पर धार्मिक भावनाओं को भड़काने वाली और नफरत फैलाने वाली पोस्ट करते हैं। फिर जो मुस्लिम युवा इसकी पोस्ट को लाइक और इन्हें फॉलो करते हैं, उन्हें टारगेट किया जाता है। यह संगठन इन युवाओं को आतंकी संगठन आईएसईएस और अलकायदा में जोड़ने के लिए इनका ब्रेनवॉश करते हैं, और जो युवा इनसे जुड़ने को तैयार हो जाते हैं उन्हें स्लीपर सेल बना लिया जाता है।
फॉलो करने वालों को ही बना देते हैं स्लीपर सेल :
आईएसईएस और अलकायदा से जुड़े कुछ लोग देश के बाहर रहकर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म के जरिए मुस्लिम युवाओं को बरगलाने के लिए बार-बार वीडियो संदेश जारी करते हैं। इन वीडियो के जरिए देश और समाज के प्रति नफरत पैदा की जाती है। फिर धीरे-धीरे कट्टरता बढ़ाने वाले वीडियो-संदेश भेजे जाते हैं।
इनसे प्रभावित होकर जो युवा कट्टरपंथी बन जाता है, उसे अलग ग्रुप में रखा जाता है। उसके बाद ब्रेनवॉश किया जाता है। जब आतंकी संगठनों को लगता है कि युवा उनके नेटवर्क में जुड़ने के लिए तैयार है तो वे उसे स्लीपर सेल बना लेते हैं। बीते दिनों एनआईए को बिहार में जांच के दौरान गजवा-ए-हिंद नाम से ऐसे ही कई सोशल मीडिया चैट ग्रुप मिले थे। इनका इस्तेमाल युवाओं को जोड़ने के लिए किया गया था।
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