हिन्दू मुस्लिम भाईचारे का अनोखा मिशाल, दुर्गा पूजा विसर्जन के दौरान लालटेन से रोशनी दिखाते हैं मुस्लिम संप्रदाय के लोग, 350 वर्षों से चली आ रही है परम्परा
मालदा। भारत धर्म-निरपेक्ष देश है, यहां सब धर्मों का सार देखने को मिलता है। देश में समय समय पर भाईचारे की मिसाल देखने को मिल जाती है। मगर वर्तमान सामाजिक परिदृश्य लोगों को अंदर से झकजोर रहा है। धार्मिक उन्माद एवं व्यापक हो रही वैमनष्यता के चलते अलगाव की भावना को बल मिल रहा है। जाति और धर्म के नाम पर बन रही खाई पाटे जाने के बजाए गहराती जा रही है। लेकिन मालदा में सांप्रदायिक सौहार्द की अनोखा मिशाल देखने को मिलता है, जो भारतीय संस्कृति में बहुत सी जगह ‘अनेकता में एकता’ की झलक को दर्शाता है।
चांचल राजबाड़ी की दुर्गा प्रतिमा के विसर्जन के दिन शाम के समय मुस्लिम समुदाय के लोग तालाब के किनारे लालटेन लेकर खड़े होते हैं। बताया जाता है जब तक इस समुदाय के पुरुष और महिलाएं के लालटेन से यह इलाका आलोकित नहीं होता तब तक यहाँ देवी दुर्गा की मूर्ति का विसर्जन नहीं किया जाता। लगभग 350 वर्षों की सद्भाव की इस परंपरा का पालन आज भी उसी सिद्द्त के साथ किया जा रहा है।
चांचल राजबाड़ी में दुर्गा पूजा के बाद पूरे भक्ति भाव से मूर्ति का विसर्जन किया जाता है। मुस्लिम समुदाय के पुरुष और महिलाएं दशमी की शाम को विसर्जन के दौरान लालटेन की रोशनी से माँ देवी दुर्गा का मार्गदर्शन करते हैं। देवी दुर्गा को चांचल महकमा के पहाड़पुर क्षेत्र में महानंदा नदी के पश्चिमी तट पर सतीघाट नामक जलाशय में विसर्जन किया जाता है।
एक तरफ जहां हिंदू समुदाय के लोग मां दुर्गा की पूजा में लगे रहते हैं। वहीं दूसरी तरफ मुस्लिम समुदाय के लोग आसपास के तालाब को लालटेन की रौशनी से आलोकित करते हैं। चांचल राजबाड़ी की दुर्गा पूजा की इस प्राचीन परंपरा को देखने के लिए हजारों की संख्या में लोग पहाड़पुर क्षेत्र के तालाब के किनारे उमड़ते हैं।
उल्लेखनीय है कि 350 साल पुराने चांचल शाही महल की अष्टकोणीय मूर्ति की पूजा देवी दुर्गा के रूप में की जाती है। इसके साथ ही देवी दुर्गा की मिट्टी की मूर्ति भी बनाई जाती है। परम्परा के अनुसार चांचल के राजा रामचंद्र रॉय चौधरी ने स्वप्नदेश में चंडी मूर्ति के माध्यम से देवी दुर्गा की पूजा शुरू की। बाद में रामचंद्र रॉयचौधरी के पुत्र शरतचंद्र रॉयचौधरी ने उस पूजा की कमान संभाली। इसके बाद चांचल राजा के शरतचंद्र रॉय चौधरी की मृत्यु के बाद उसके चाचा के निःसंतान होने के कारण उनके निधन के बाद ट्रस्ट बोर्ड का गठन किया गया और इसके अधीन चांचल राजबाड़ी की पूजा जारी रही ।
वर्तमान में चांचल राजबाड़ी की पूजा में स्थानीय लोग भी शामिल होते हैं। यहाँ के लोगों के अनुसार एक बार पहाड़पुर क्षेत्र में महामारी फैल गई थी। खासकर मुस्लिम समुदाय के लोग महामारी से प्रभावित थे। उस मुस्लिम समुदाय के कई बुजुर्गों को देवी ने गोधूलि अनुष्ठान के दौरान रोशनी जलाकर मां का मार्गदर्शन करने का निर्देश दिया था। तब बिजली नहीं थी। परिणामस्वरूप लालटेन ही एकमात्र आशा थी। उस समय लोगों के विभिन्न रोग धीरे-धीरे ठीक हो गए थे। उसके बाद से इलाके के लोगों की देवी की मूर्ति में गहरी आस्था बनी हुई है।
चांचल राजबाड़ी के राज पुरोहित भोलानाथ पांडेय ने कहा, हर साल की तरह इस साल भी चंडीमाता को चार दिनों तक पहाड़पुर दुर्गा मंदिर ले जाया जाएगा। वहां मां दुर्गा की मूर्ति बनाई जाती है। पूजा के अंत में, देवी चंडी माता को फिर से चांचल के राजबाड़ी में लाया जाता है। विसर्जन के दिन बड़ी संख्या में लोग तालाब के किनारे जमा होते हैं। वहां एक समुदाय के लोग लालटेन की रोशनी दिखाते हैं और फिर देवी माता का विसर्जन कर दिया जाता है।
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