नई दिल्ली। भारतीय रुपया आज शुरुआती कारोबार में अमेरिकी डॉलर के मुकाबले 38 पैसे गिरकर 81.24 के ऑल-टाइम लो पर आ गया। इसका कारण आयातकों की डॉलर की मांग और अमेरिकी फेडरल रिजर्व की ओर से बढ़ाई गई ब्याज दरें है।
एशियन करेंसीज में लंबे समय तक आउटपरफॉर्म करने के बाद रुपया गुरुवार को एशियन पीर्स के बीच सबसे सबसे बड़ा लूजर रहा। ब्लूमबर्ग के अनुसार गुरुवार को रुपया 80.86 पर बंद हुआ था और आज 81.06 पर खुला।
अमेरिकी केंद्रीय बैंक के ब्याज दर बढ़ाने का असर
अमेरिकी केंद्रीय बैंक ने बुधवार को लगातार तीसरी बार ब्याज दरों में बढ़ोतरी की है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व के चेयरमैन जेरोम पॉवेल ने ब्याज दरों में 0.75% की बढ़ोतरी की। ब्याज दरें बढ़ाकर 3-3.25% की गई हैं। महंगाई को नियंत्रित करने के लिए लगातार तीसरी बार ब्याज दरें बढ़ी हैं।
अमेरिका में घूमना और पढ़ना महंगा
रुपए में गिरावट का मतलब अमेरिका में घूमना और पढ़ना महंगा होना है। मान लीजिए कि जब डॉलर के मुकाबले रुपए की वैल्यू 50 थी तब अमेरिका में भारतीय छात्रों को 50 रुपए में 1 डॉलर मिल जाते थे। अब 1 डॉलर के लिए छात्रों को 81 रुपए खर्च करने पड़ेंगे। इससे फीस से लेकर रहना और खाना और अन्य चीजें महंगी हो जाएंगी।
करेंसी की कीमत कैसे तय होती है?
डॉलर की तुलना में किसी भी अन्य करेंसी की वैल्यू घटे तो इसे उसे मुद्रा का गिरना, टूटना, कमजोर होना कहते हैं। अंग्रेजी में करेंसी डेप्रिशिएशन। हर देश के पास फॉरेन करेंसी रिजर्व होता है, जिससे वह इंटरनेशनल ट्रांजैक्शन करता है। फॉरेन रिजर्व के घटने और बढ़ने का असर करेंसी की कीमत पर दिखता है।
अगर भारत के फॉरेन रिजर्व में डॉलर, अमेरिका के रुपयों के भंडार के बराबर होगा तो रुपए की कीमत स्थिर रहेगी। हमारे पास डॉलर घटे तो रुपया कमजोर होगा, बढ़े तो रुपया मजबूत होगा। इसे फ्लोटिंग रेट सिस्टम कहते हैं।
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