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यूएन के मंच से रूस को नसीहत, अब एफ-16 पर जयशंकर का अमेरिका को कड़वा डोज…वैश्विक मंच पर बेबाकी से अपनी आवाज उठा रहा भारत

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नई दिल्ली : यूक्रेन युद्ध को लेकर यूएन के मंच से रूस को दो टूक नसीहत के बाद अब विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने अमेरिका को आईना दिखाया है। अमेरिकी विदेश मंत्री एंटोनी ब्लिंकेन से मुलाकात से पहले उन्होंने पाकिस्तान को यूएस की तरफ से दिए F-16 के अपग्रेडेशन को लेकर सार्वजनिक तौर पर नाराजगी का इजहार किया। उन्होंने कहा कि आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई के नाम पर F-16 फाइटर जेट देकर आप किसको मूर्ख बना रहे हैं। भारतीय विदेश मंत्री ने अमेरिका को पाकिस्तान के साथ अपने रिश्तों को लेकर आईना देखने की सलाह दी। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर नए भारत की बेबाक आवाज है। जयशंकर जब संयुक्त राष्ट्र के मंच से यह कहते हैं कि आजादी के समय सबसे गरीब अर्थव्यवस्थाओं में रहा देश 75 साल बाद दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में खड़ा है तो यह नए भारत के आत्मविश्वास और आशाओं की स्पष्ट मुनादी है।
F-16 को लेकर अमेरिका को दिखाया आईना
रविवार को एस. जयशंकर वॉशिंगटन में भारतीय अमेरिकी समुदाय के एक कार्यक्रम में थे। तभी उनसे अमेरिका की तरफ से पाकिस्तान को दिए गए एफ-16 के रखरखाव पैकेज और दोनों देशों के आपसी रिश्तों पर सवाल हुआ। जवाब में जयशंकर ने कहा कि पाकिस्तान के साथ वॉशिंगटन के रिश्ते ‘अमेरिकी हितों’ की पूर्ति नहीं करते। उन्होंने कहा, ‘आज अमेरिका को इस रिश्ते की मेरिट के बारे में सोचना चाहिए कि उसे इससे क्या मिला…आप काउंटर-टेररिज्म की बात करते हैं और जब F-16 जैसी क्षमताओं वाले एयरक्राफ्ट की बात हो जिसे हर कोई जानता है, आप जानते हैं कि उन्हें कहां तैनात किया गया है और उनका इस्तेमाल क्या है। आप ऐसी बातों को कहकर किसी को मूर्ख नहीं बना रहे।’ इस तरह जयशंकर ने आतंक-रोधी अभियान के नाम पर पाकिस्तान को दिए गए अमेरिका के एफ-16 पैकेज पर वॉशिंगटन के पाखंड की सार्वजनिक तौर पर बखिया उधेड़ दी।
पाकिस्तान को F-16 के रखरखाव के लिए दिए पैकेज से भारत नाराज
दरअसल, अमेरिका ने पाकिस्तान को उसके F-16 बेड़े के आधुनिकीकरण और रखरखाव के लिए 45 करोड़ डॉलर के पैकेज का ऐलान किया है। 7 सितंबर को अमेरिका ने यह ऐलान किया। यह पूर्ववर्ती राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की उस नीति के खिलाफ था जिसमें पाकिस्तान को दी जाने वाली सैन्य मदद को यह कहकर सस्पेंड कर दिया था कि वह अफगान तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के आतंकियों के लिए सुरक्षित पनाहगाह है। 11 सितंबर को भारत ने इसे लेकर उसके सामने कड़ा विरोध दर्ज कराया। 14 सितंबर को रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने अपने अमेरिकी समकक्ष लॉयड ऑस्टिन को भारत की चिंताओं की जानकारी दी। 22 सितंबर को अमेरिका को सफाई देनी पड़ी कि पाकिस्तान को F-16 के कल-पुर्जे और उपकरण बेचे जाने को ‘भारत के लिए संदेश’ के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए। उसने कहा कि पाकिस्तान के साथ वॉशिंगटन की साझीदारी का मुख्य उद्देश्य काउंटर-टेररिज्म और न्यूक्लियर सिक्यॉरिटी है। दरअसल, तब माना गया कि दबाव के बावजूद रूस के साथ रिश्ते रखने वाले भारत को अमेरिका ने पाकिस्तान को F-16 पैकेज देकर संदेश देने की कोशिश की है।
दोस्त रूस को भी नसीहत
इससे पहले समरकंद में एससीओ समिट से इतर रूस के साथ द्विपक्षीय बातचीत में भारत ने उसे यूक्रेन युद्ध को लेकर दो टूक नसीहत दी थी। बगल में रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन बैठे थे और पीएम मोदी ने कैमरे के सामने दो टूक कहा- यह युद्ध का युग नहीं है। पीएम मोदी का यह बयान अमेरिकी मीडिया में छाया रहा। इसे रूस को सार्वजनिक तौर पर फटकार के तौर पर देखा गया। फ्रांस के राष्ट्रपति समेत तमाम नेताओं ने पीएम मोदी के इस बयान की तारीफ की। इसके बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पीएम मोदी के बयान को दोहराते हुए बिना नाम लिए रूस को नसीहत दी कि संघर्ष की स्थिति में भी मानवाधिकारों या अंतरराष्ट्रीय कानूनों के उल्लंघन को सही नहीं ठहराया जा सकता। कहा कि भारत ने बूचा की घटना की स्‍वतंत्र जांच का समर्थन किया था। यूक्रेन के बूचा में सामूहिक कब्रें मिलने के बाद रूस पर युद्धअपराध के आरोप लग रहे हैं। भारतीय विदेश मंत्री ने युद्ध को बंद कर बातचीत और कूटनीति के जरिए मुद्दों के समाधान पर जोर दिया।
भारत को नजरअंदाज नहीं कर सकती दुनिया
एस. जयशंकर ने संयुक्त राष्ट्र महासभा के 77वें सालाना सत्र में भारत की असाधारण उपलब्धियों की चर्चा की। उन्होंने कहा कि 18वीं सदी में भारत का ग्लोबल डीजीपी में करीब एक चौथाई हिस्सेदारी थी। लेकिन उपनिवेशवाद ने भारत को सबसे गरीब देशों में से एक बना दिया था। 20वीं सदी के मध्य तक हम सबसे गरीबी देशों में से एक थे लेकिन आजादी के 75 साल बाद भारत आज गर्व से दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के तौर पर खड़ा है। अब 2047 तक विकसित देश बनना उसका लक्ष्य है। अपने भाषण में जयशंकर ने सुरक्षा परिषद में सुधार और स्थायी सदस्यता के लिए भारत की दावेदारी को पुरजोर तरीके से रखा।
रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत किसकी तरफ, जयशंकर ने दिया जवाब
यूएन की अपनी स्पीच में जयशंकर ने कहा कि हमसे अक्सर पूछा जाता है कि यूक्रेन संघर्ष में हम किसकी तरफ हैं। हर बार हमारा जवाब एक ही होता है, सीधा-सपाट और ईमानदार। भारत शांति के पक्ष में हैं और मजबूती से वहां बना रहेगा। हम यूएन चार्टर और उसके बुनियादी सिद्धांतों के पक्षम में हैं। हम बातचीत और कूटनीति के जरिए समाधान के पक्ष में हैं।
आक्रामक चीन को दो-टूक जवाब
यूएनजीए में जयशंकर ने बिना नाम लिए चीन को भी खूब लताड़ा था। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र की ओर से घोषित आतंकियों को ब्लैकलिस्ट करने में चीन की तरफ से रोड़े अटकाने पर उसकी खिंचाई की। जयशंकर ने बिना नाम लिए कहा कि संयुक्त राष्ट्र आतंकियों को प्रतिबंधित करता है और आतंक के प्रायोजक देश उन्हें बचाने के लिए आगे आ जाते हैं। सुरक्षा परिषद में उन्होंने इशारों-इशारों में चीन को नसीहत दी थी, ‘जवाबदेही से बचने के लिए कभी राजनीति का सहारा नहीं लेना चाहिए। दोषी को दंड से बचाने के लिए भी नहीं। दुखद है कि हमने हाल में इसी परिषद में ऐसा होते देखा है जब दुनिया के कुछ सबसे खतरनाक आतंकवादियों पर पाबंदी लगाने की बात हुई थी।’ उन्होंने कहा, ‘यदि दिन के उजाले में किए गए भयानक हमलों को नजरअंदाज कर दिया जाता है, तो इस परिषद को दंड से मुक्ति के मसले पर हमारे भेजे संकेतों पर विचार करना चाहिए। यदि हम विश्वसनीयता सुनिश्चित करना चाहते हैं तो निरंतरता होनी चाहिए।’
पूर्वी लद्दाख सेक्टर में चीन की तरफ से एलएसी में एकतरफा बदलाव की कोशिशों का भी भारत ने बहुत ही मजबूती से जवाब दिया है। उसकी धौंस की रणनीति का भारत हर मोर्चे पर जवाब देता आ रहा है। अभी पिछले महीने ही विदेश मंत्री जयशंकर ने कहा कि चीन ने भारत के साथ सीमा संधि का अपमान किया है जिसकी छाया द्विपक्षीय संबंधों पर भी पड़ी है। उन्होंने दो टूक कहा कि रिश्ते कभी वन-वे स्ट्रीट नहीं हो सकते। इसमें आपसी सम्मान रहना चाहिए। उन्होंने उम्मीद जताई कि चीन को सद्बुद्धि आएगी।
पहले भी अमेरिका और यूरोप को आईना दिखा चुके हैं जयशंकर
जयशंकर पहले भी अमेरिका और यूरोप को आईना दिखा चुके हैं। वह तमाम मौकों पर दो टूक कहते आए हैं कि भारत की विदेश नीति स्वतंत्र है और वह किसी भी तरह के दबाव की परवाह किए बिना हमेशा अपने राष्ट्रीय हितों को तरजीह देगी। रूस के साथ भारत के तेल खरीदने पर जब सवाल उठे तो उन्होंने यूरोपीय देशों को आईना दिखाने में देरी नहीं कि जो रूस से खुद तो गैस खरीद रहे लेकिन नहीं चाहते कि कोई और देश उसके साथ कारोबार करे। अमेरिका ने जब धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के कथित उल्लंघन को लेकर भारत को घेरने की कोशिश की तो उसे उसी की धरती से करारा जवाब दिया। दो टूक संदेश दिया कि भारत भी अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता और मानवाधिकारों के उल्लंघन पर नजर रख रहा है।


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