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बांग्लादेश फतह, पेशावर में कत्लेआम… भारत का विजय दिवस, पाकिस्तान के लिए मनहूस क्यों है 16 दिसंबर?

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यूनिवर्सटीवी डेस्क। 16 दिसंबर : हालांकि, कैलेंडर में हर दिन महत्वपूर्ण है और हर दिन का अपना अलग अलग इतिहास है, लेकिन 16 दिसंबर भारत और पाकिस्तान के लिए काफी ज्यादा महत्वपूर्ण है। हालांकि, 16 दिसंबर को कई उल्लेखनीय घटनाएं हुईं हैं, जैसे 1773 में बोस्टन टी पार्टी से लेकर दक्षिण अफ्रीका में ज़ुलु और वोओरट्रेकर बोअर्स के बीच खूनी लड़ाई तक। अंग्रेजी साहित्य के सबसे प्रसिद्ध लेखकों में से एक, जेन ऑस्टेन का जन्म भी 16 दिसंबर 1775 को हुआ था। वह अपने उपन्यासों के लिए पीढ़ियों से प्रिय हैं, जिनमें प्राइड एंड प्रेजुडिस, सेंस एंड सेंसिबिलिटी, एम्मा और पर्सुइज़न शामिल हैं। लेकिन, 16 दिसंबर को ना तो भारत के लोग कभी भूल सकते हैं और पाकिस्तान के लिए 16 दिसंबर को भुलना नामुमकिन है। आइये जानते हैं 16 दिसंबर को इतिहास की कौन-कौन बड़ी घटनाएं हुई हैं।
भारत का विजय दिवस
16 दिसंबर 1971 को भारत ने 13 दिनों तक युद्ध करने के बाद पाकिस्तान के खिलाफ युद्ध जीत लिया था। पाकिस्तानी सेना के तत्कालीन प्रमुख जनरल अमीर अब्दुल्ला खान नियाज़ी ने 93,000 पाकिस्तानी सैनिकों के साथ भारतीय सेना और बांग्लादेश की मुक्ति बाहिनी की संयुक्त सेना के सामने आत्मसमर्पण कर दिया था। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यह अब तक का सबसे बड़ा सैन्य आत्मसमर्पण भी था। इसके साथ ही भारत ने पाकिस्तान पर बहुत बड़ी विजय हासिल कर ली थी और पाकिस्तान को ऐसी हार मिली, जिसके जख्म उसके लिए आज भी हरे हैं, लिहाजा पाकिस्तान में सैनिकों के आत्मसर्पण को लेकर आज तक झूठ बोला जाता है। पिछले महीने आर्मी चीफ के पद से रिटायर्ड हुए जनरल कमर जावेद बाजवा ने कहा था, कि सिर्फ 32 हजार सैनिक ही लड़ाई में हारे थे। पाकिस्तान लगातार 16 दिसंबर के इतिहास को बदलने की कोशिश करता रहता है और उसने स्कूली किताबों को बदल डाला है, ताकि नई पीढ़ी को 16 दिसंबर के बारे में कुछ भी ना पता हो।
युद्ध किस वजह से हुआ?
पाकिस्तान सरकार के खिलाफ पूर्वी पाकिस्तान (अब बांग्लादेश) में विद्रोह के बाद युद्ध शुरू हो गया था। पाकिस्तानी सेना, पूर्वी पाकिस्तान में बंगालियों और अल्पसंख्यक हिंदू आबादी पर अत्याचार कर रही थी। यह अनुमान लगाया गया है कि करीब 3 लाख से 5 लाख बांग्लादेशी नागरिकों को पाकिस्तानी सैनिकों ने मौत के घाट उतार दिया। हालांकि, बांग्लादेश सरकार का आधिकारिक तौर कहना है, कि करीब 30 लाख नागरिकों की हत्या पाकिस्तानी सैनिकों ने की थी। वहीं, पूर्वी पाकिस्तान में इस्लामाबाद सरकार के अत्याचार के खिलाफ पूर्व भारतीय प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी ने तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान को सहायता प्रदान करने का फैसला लिया। उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान से भागे लोगों को शरण देने का फैसला किया। अनुमान है कि 80 लाख से एक करोड़ लोग देश छोड़कर भारत आए थे।
भारत-पाकिस्तान युद्ध कैसे शुरू हुआ
युद्ध तब शुरू हुआ, जब पाकिस्तान ने 3 दिसंबर 1971 को 11 भारतीय एयरबेसों पर हवाई हमले शुरू कर दिए। और ये पहला मौका था, जब शायद पहली बार भारत की तीनों सेनाएं एक साथ लड़ीं थीं। बदले में, इंदिरा गांधी ने सेना प्रमुख जनरल सैम मानेकशॉ को पड़ोसी के खिलाफ पूर्ण पैमाने पर युद्ध शुरू करने का आदेश दिया। भारतीय सैनिक पूर्वी पाकिस्तान में घुस गये और बांग्लादेश के लोगों की सेना मुक्तिवाहिनी के साथ मिलकर युद्ध करने लगे, लिहाजा पाकिस्तानी सैनिकों के पैर युद्ध के मैदान से उखड़ने लगे।
युद्ध के बाद क्या हुआ?
युद्ध के परिणामस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ, जो उस समय पूर्वी पाकिस्तान था। इस दिन को बांग्लादेश में ‘बिजॉय डिबोस’ के रूप में भी मनाया जाता है, जो पाकिस्तान से बांग्लादेश की औपचारिक स्वतंत्रता का प्रतीक है। युद्ध में 3,800 से अधिक भारतीय और पाकिस्तानी सैनिकों ने अपनी जान गंवाई थी। भारत ने 16 दिसंबर को युद्ध के अंत तक 93,000 युद्धबंदियों को भी रखा था। युद्ध के आठ महीने बाद, अगस्त 1972 में, भारत और पाकिस्तान के बीच शिमला समझौता किया गया था और भारत ने सभी युद्धबंदियों को रिहा कर दिया। शिमला समझौते के तहत, भारत 93,000 पाकिस्तानी युद्ध बंदियों को रिहा करने पर सहमत हुआ। बाद में कश्मीर पर पाकिस्तान के साथ भारत के संघर्ष पर बातचीत करने में विफल रहने के लिए इस समझौते की आलोचना की गई। आलोचकों ने कहा था कि, भारत 93 हजार सैनिकों के बदले कश्मीर पर समझौता कर सकता था।
पेशावर स्कूल नरसंहार
भारत के लिए 16 दिसंबर विजय का प्रतीक बन चुका है, तो पाकिस्तान के लिए ये एक काला दिन है। पाकिस्तान के लोग यही चाहते हैं, कि कैलेंडर में 16 दिसंबर का दिन कभी नहीं आए। सिर्फ बांग्लादेश विभाजन ही एक बात नहीं है, बल्कि उस दिन पेशावर के एक स्कूल में आतंकवादियों ने घुसकर जमकर मारकाट मचाई थी। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) के सात सदस्य, एक इस्लामी आतंकवादी संगठन, जो तालिबान से निकला हुआ है, उसने पेशावर में एक सैनिक स्कूल पर हमला कर दिया। आतंकवादियों ने 150 लोगों की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी थी, जिसमें कम से कम 134 छात्र शामिल थे। आतंकवादियों ने करीब 8 घंटे तक स्कूल को बंधक बनाकर रखा और स्कूल को आजाद करवाया गया। हमलावर, जिनमें से सभी आत्मघाती जैकेट पहने हुए थे, उन्हें पाकिस्तानी सैनिकों ने मार गिराया। टीटीपी ने बाद में दावा किया था, कि नरसंहार उसके सदस्यों पर सरकार के हमले का प्रतिशोध था।


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