मुजफ्फरपुर। ‘शहीदों के मजारों पर लगेंगे हर बरस मेले। वतन पर मरने वालों का बाकी यही निशा होगा’। ये उन जवानों के लिए लिखा गया था जिन्होंने देश की आजादी के लिए हंसते हंसते फांसी के फंदे को चूम लिया। जिन्होंने अपना जीवन देश की आजादी के लिए हंसते-हंसते न्योछावर कर दिया। देश के ऐसे ही वीर जवानों में सबसे पहला नाम शहीद खुदीराम बोस और प्रफुल्ल चाकी का आता है। जिन्होंने आजादी की लड़ाई में किंग्सफोर्ड की बग्गी पर बम विस्फोट कर अंग्रेजों के मन में दहशत पैदा करने का काम किया था। उनकी इस वीरता के बाद ब्रिटानिया हुकूमत ने उन्हें मुजफ्फरपुर की जेल में फांसी पर चढ़ा दिया। लेकिन इन्हीं शहीदों के साथ बिहार के बिजली विभाग ने जो किया है वो हैरतअंगेज है।
शहीद खुदीराम बोस को ही नोटिस
कहां हमें इन शहीदों को हमें सम्मान देना था । उनके धरोहर को संजोना था। उनकी वीरता से जमाने को अवगत कराना था । उल्टे मुजफ्फरपुर में बिजली विभाग ने शहीद खुदीराम बोस को नोटिस भेज कर अजब काम कर डाला है। बिजली विभाग के असिस्टेंट इंजीनियर ने दस्तावेज के आधार पर शहीद स्मारक के नाम 1,36,943 रूपये विपत्र का बकाया वसूली का नोटिस भेजा है। इसमें सीधे शहीद खुदीराम बोस को ही चेतावनी दी गई है कि ‘अगर आप एक सप्ताह के अंदर समय से विपत्र का भुगतान नहीं करते हैं तो स्मारक स्थल की बिजली काट दी जाएगी। जब आप बकाया विपत्र का भुगतान करेंगे तो नए कनेक्शन की राशि भी चुकता करनी होगी।’
बिजली विभाग के अफसर के पास कॉमन सेंस नहीं?
इसमें बड़ा सवाल तो बिजली विभाग के उस अफसर पर ही उठ रहे हैं कि क्या उनमें कॉमन सेंस नहीं है। खुदीराम बोस की शहादत को सालों बीत गए। उसके बाद उन्हीें को नोटिस भेज दिया गया। अब खुदीराम बोस इस बिल का भुगतान करने कहां से आएंगे। ये भी तय है कि अगर बिजली विभाग ने स्मारक स्थल की बिजली काटी तो इसका बड़े पैमाने पर विरोध होना। कोई भी जल्दबाजी करने से पहले विद्युत विभाग और जिला प्रशासन को आपसी सामंजस्य बिठाना चाहिए था। ये पता करना चाहिए था कि अगर बिजली बिल बकाया है तो नोटिस किसके नाम जाए। लेकिन यहां जल्दबाजी में एक शहीद का अपमान ही कर दिया गया।
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