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शतक दिमाग में नहीं होकर भी पीछे पड़ा था, विराट कोहली ने किया द्रविड़ से ‘ईमानदारी’ भरा खुलासा

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डेस्क। भारत के सुपरस्टार बल्लेबाज विराट कोहली जिस तरह से अपनी फिटनेस और मैच के प्रति जागरुकता को लगातार आगे बढ़ा रहे हैं वह युवाओं के लिए बहुत ही सीखने वाली बात है। कोहली ने अहमदाबाद की आसान पिच पर रन बनाने के लिए मुश्किल हो गए हालातों में धैर्य दिखाते हुए बहुत अच्छा डिफेंस प्ले किया और अपना स्कोर 186 रन किया। ये टेस्ट फॉर्मेट में 1205 दिनों के बाद आया उनका शतक था। इस मैच के बाद विराट ने बीसीसाआई टीवी पर हेड कोच राहुल द्रविड़ से बात की और डिफेंस को अपना सबसे मजबूत पक्ष बताया है। ये वो डिफेंस है जिसको इस समय अधिकतर छोड़ने की ओर बढ़ रहे हैं। इंग्लैंड में तो अब डिफेंस देखा ही नहीं जाता लेकिन टेस्ट क्रिकेट में टर्निंग हालातों में ये तकनीक आज भी कारगर है।
मुझे अपने डिफेंस पर यकीन करना पड़ा
भारत-ऑस्ट्रेलिया के बीच अहमदाबाद का मुकाबला ड्रा हुआ और कोहली को प्लेयर ऑफ द मैच दिया गया। विराट ने द्रविड़ से बात करते हुए कहा कि मैं ये जानता था कि इस पारी से पहले भी इस सीरीज में मैंने अच्छा खेल दिखाया है। ये विकेट वाकई में बल्लेबाजी के लिए अच्छा था लेकिन आउटफील्ड धीमी थी, बॉल सॉफ्ट थी और बाउंड्री आनी इतनी आसान नहीं थी। मुझे अपने डिफेंस पर यकीन करना पड़ा और यही मेरा टेस्ट क्रिकेट खेलने का हमेशा तरीका होता है। मैंने हर सेशन 30 के हिसाब से रन बनाने की कोशिश की और मुझे पता था कि छह सेशन टिकने के बाद यहां खुद ही डेढ़ सौ रन बन जाएंगे। इसलिए मेरे लिए सिंगल्स और डबल्स निकालने में कोई समस्या नहीं थी। यही पर आपकी फिटनेस और फिजिकल तैयारियां काम आती हैं।
टेस्ट सेंचुरी ना लगाना दिमाग में घूमता था?
राहुल द्रविड़ ने इस दौरान विराट की तारीफ की लेकिन ये भी पूछा कि लंबे समय तक टेस्ट सेंचुरी ना लगाने के चलते क्या उनके दिमाग में ये चीजें घूमती रहती थी। इस पर कोहली ने कहा कि शतक ना लगाना कहीं ना कहीं आपको एक बल्लेबाज के तौर पर और ज्यादा करने के लिए प्रेरित करता है। कुछ हद तक ये चीजें मैंने अपने ऊपर हावी होने दी। लेकिन मैं टीम के लिए स्कोर करना चाहता हूं। मुझे पता है 40-45 रन के बाद मैं डेढ़ सौ की ओर देखता हूं ताकि मेरी टीम के लिए अधिक से अधिक योगदान कर सकूं।
शतक दिमाग में नहीं होकर भी पीछे पड़ा था
कोहली ने कहा कि शतक ना लगाने से उनको दिक्कत नहीं हुई क्योंकि वे माइलस्टोन के लिए नहीं खेलते लेकिन परेशानी की बात यह थी कि वे टीम की ज्यादा मदद नहीं कर पा रहे थे। शतक भी तब आते हैं जब आप टीम के लिए भरपूर योगदान देने की भावना से खेलते हो। तो टीम की मदद ना कर पाना ज्यादा तकलीफदेह है क्योंकि शतक तो फिर खुद आते रहते हैं। हालांकि जब होटल रूम से निकलते ही लोग शतक के बारे में पूछते हैं तो ना चाहते हुए भी ये आपके दिमाग में चलने लगता है कि मुझे शतक लगाना है। मैं खुश हूं ये शतक वर्ल्ड टेस्ट चैम्पियनशिप से पहले आया क्योंकि अब मैं वहां रिलेक्स माइंड से जा सकता हूं।


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