सलमान खान की फिल्म ‘किसी का भाई-किसी की जान’ ने जीता फैंस का दिल ?, ‘बच्चन पांडे’ का दर्जा ऊंचा करती है यह फिल्म, जाने कहानी
Movie Review : किसी का भाई किसी की जान
कलाकार : सलमान खान , पूजा हेगड़े , वेंकटेश , जगपति बाबू , भाग्यश्री , भूमिका चावला , राघव जुयाल , शहनाज गिल , तेज सप्रू , आसिफ शेख और सतीश कौशिक
लेखक : फरहाद सामजी , स्पर्श खेत्रपाल और ताशा भाम्बरा
निर्देशक : फरहाद सामजी
निर्माता : सलमा खान
रिलीज : 21 अप्रैल 2023
रेटिंग : 1/5
मुंबई। ‘धर्मक्षेत्रे कुरुक्षेत्रे समवेता युयुत्सवः। मामकाः पाण्डवाश्चैव किमकुर्वत संजय।’ श्रीमद्भगवतगीता के इस पहले श्लोक में धृतराष्ट्र जानना चाहते हैं कि कुरुक्षेत्र में इकट्ठा हुए मेरे (पुत्रों) और पांडवों के बीच क्या हो रहा है। महाभारत का पूरा आधार यही है कि धृतराष्ट्र ने अपने ही परिवार की अगली पीढ़ी को अपने पुत्रो और पांडवों के बीच अलग अलग बांट दिया। फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ में सलमान खान इसी श्लोक का परदे पर जिस तरह उच्चारण करते दिखते हैं, उसे देख हिंदी सिनेमा की दशा और दुर्दशा दोनों पर तरस आता है। ये दृश्य उनके किरदार भाईजान के गीताज्ञान का है और फिल्म ‘भारत’ के बाद सलमान खान का किरदार एक बार फिर ये जताने की कोशिश करता है कि इंसानियत धर्म, जाति और वर्ण के भेद से ऊपर है। फिल्म निर्देशक फरहाद सामजी की है और पूरी फिल्म में अगर कुछ प्रभावित करता है तो वह है सलमान खान का वह संवाद जिसमे वह कहते हैं, ‘हम सब अपनी पसंद से बने भाई हैं और यही हमारा सबसे अटूट बंधन है।’ वह अपने तीन छोटे भाइयों के भाईजान हैं और बाद में इसी नाम से उन्हें पूरी बस्ती पहचानने लगती है।
‘बच्चन पांडे’ को बेहतर बनाती फिल्म
गीता का श्लोक सलमान खान ने जैसे पढ़ा है, उसी से पता चल जाता है कि फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ से शुरू हुआ उनका सफर अब किस मोड़ पर आ पहुंचा है। उनके आसपास अब एक भी इंसान ऐसा नहीं बचा है जो उनकी आंखों में आंखें डालकर कह सके कि ये सब आप क्या कर रहे हैं। सलमान खान का अपना प्रशंसक वर्ग है लेकिन ये प्रशंसक वर्ग उनकी रियासत नहीं है। ये बात सलमान खान को समझने में भी अब काफी देर हो चुकी है। फिल्म ‘भोला’ के बाद ये इस साल की दूसरी मेगाबजट हिंदी फिल्म है जो एक दक्षिण भारतीय फिल्म का रीमेक है और अपने लक्षित दर्शकों से पूरी तरह कटी हुई है। फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ चार भाइयों, उनकी चार प्रेमिकाओं, मोहल्ले के चार बुजुर्गों और दक्षिण भारत के चार किरदारों की कहानी है। कहानी देखकर लगता है कि सलमान खान ने सूरज बड़जात्या का नाम फिल्म के ट्रेलर लॉन्च मे बिल्कुल सही लिया था। भंसाली भी तब उनको याद आए थे, लेकिन फिल्म ये ‘बच्चन पांडे’ और ‘पॉप कौन’ निर्देशित करने वाले फरहाद सामजी की है और फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ देखने के बाद फिल्म ‘बच्चन पांडे’ भी एक बेहतर फिल्म लगने लगती है
सलमान ने फिर खराब की ईद
फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ ईद पर रिलीज होने वाली सलमान खान की ऐसी चौथी फिल्म है जिसे देखने भले उनके प्रशंसक भरपूर संख्या में आएं लेकिन इसने ईद का जश्न मनाने का मौका उनसे छीन लिया है। पूरी फिल्म में सलमान खान ही सलमान खान छाए हुए हैं। कभी लंबे बालों के साथ, कभी मेहंदी रचे बालों के साथ, कभी बिल्कुल टिंच बालों के साथ। चेहरे को सुंदर दिखाने के लिए खूब फोटोशॉपिंग हुई है। छह या आठ जो भी ऐब्स हों, उनको दिखाने के लिए उनकी शर्ट भी हवा में उड़ती है, लेकिन सुभाष घई की फिल्म ‘युवराज’ की तरह ही बदलती उनकी इन छवियों ने उनके किरदार की अहमयित को एक मजाक बनाकर रख दिया है। सलमान के किरदार का कोई नाम नहीं है। ना फर्स्ट नेम और न ही सरनेम। और, इसे दर्शक समझ जाएं, इसके लिए इसे फिल्म में कई बार दोहराया गया है। उसने तीन अनाथ बच्चों को अपनी किशोरावस्था से पाला है, और इन्होंने दिल्ली में रहने के बावजूद भाईजी, दद्दा, दादा या भैया कहने के बाद अपने बड़े भाई को ‘भाईजान’ कहना क्यों शुरू कर दिया, फरहाद सामजी ही बता सकते हैं।
साथी कलाकारों की बेअसर कहानियां
तीन भाइयों की तीन ऐसी प्रेमिकाएं हैं जो कौन हैं, कहां से आई हैं, घर परिवार में उनके कौन है, किसी को नहीं पता, बस वह कहानी में जब भी जरूरत होती है एक साथ आ टपकती हैं। तीनों भाई भी कहानी को घटाने, बढ़ाने में कोई मदद नहीं करते। सतीश कौशिक, तेज सप्रू और आसिफ शेख मोहल्ले के बुजुर्ग हैं और कहानी में जो फरहाद सामजी शूट नहीं कर पाए, उसे किस्सों के जरिये सुनाते हैं। फ्लैशबैक की भरमार वाली फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ की कहानी हालांकि 2014 में रिलीज हुई अजित कुमार की फिल्म ‘वीरम’ से ली गई है लेकिन फरहाद सामजी का अपना अलग स्टाइल है, वह कहानी गढ़ते ही नहीं है, वह बस 10-12 सीन सोचते हैं और फिर उनको आपस में जोड़ने के लिए कुछ न कुछ गढ़ लेते हैं। यहां दिल्ली के बिल्डर का लालच, हैदराबाद के कारोबारी की दुश्मनी ये काम करती है। फिल्म की पटकथा ऐसी है कि सब कुछ पहले सीन में ही साफ हो जाता है कि आगे क्या होने वाला है। जो काम सिनेमाहाल में दर्शकों को करना चाहिए था, वह फरहाद सामजी अपनी फिल्म के मुख्य कलाकारों और सैकड़ों जूनियर कलाकारों से कराते हैं। फिल्म वही सफल होती है जिसमें हीरो की एंट्री पर दर्शक सीटियां बजाएं न कि फिल्म के कलाकार। खैर हिंदी सिनेमा के इतिहास में पूजा हेगड़े के बाद फरहाद सामजी का नाम भी इसलिए याद रखा जाएगा कि उन्होंने चमकते सितारों को धूमकेतु में बदल देने की महारत कैसे हासिल की।
पूजा हेगड़े हैं तो फिर..
पूजा हेगड़े की हिंदी में 2016 से लेकर अब तक ये पांचवी फिल्म है। ऋतिक रोशन, अक्षय कुमार, प्रभास और रणवीर सिंह के बाद अब सलमान खान। एक अदद हिट फिल्म का इंतजार उनको अभी और करना है। परदे पर अभिनय वह अच्छा करती हैं लेकिन पता नहीं क्यों पूरी फिल्म में यूं लगता रहा कि उनकी डबिंग कहीं आलिया भट्ट ने तो नहीं की, या हो सकता है कि वह अपना पूरा अभिनय ही आलिया भट्ट की नकल करके कर रही हैं। जो काम वह पहले के चार हीरो की बॉक्स ऑफिस ब्रांड वैल्यू के साथ कर चुकी हैं, वही काम वह अपनी पांचवी हिंदी फिल्म में सलमान खान के साथ करती दिख रही हैं। 57 साल के सलमान खान से वह करीब 25 साल छोटी हैं। लेकिन उनका किरदार भाग्य फिल्म में पहली नजर में ही भाईजान से प्यार कर बैठता है। सलमान के साथ अपना करियर शुरू करने वाली भाग्यश्री अपनी पहली फिल्म ‘मैंने प्यार किया’ के गाने के साथ मौजूद हैं, पति हिमालय दसानी और बेटे अभिमन्यु को लेकर। भूमिका चावला को भाभी का किरदार मिला है।
तकनीकी टीम की तिकड़मबाजी
फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ के संवाद और भी अटपटे हैं। सिनेमा के संवादों के लिए जरूरी है कि वह कहानी का असर दर्शकों पर डाल सकें। ये संवाद सहज तरीके से निकलने वाली बातचीत में चुपके से आने वाली गहरी बात से असर लाते हैं या फिर किसी किरदार का अपना एक स्टाइल भी बना सकते हैं। हिंदी सिनेमा के दिग्गज लेखक सलीम खान के बेटे सलमान खान ने इस काम में भी अपना हुनर फिल्म की शूटिंग के दौरान दिखाया ही होगा लेकिन उनका परदे पर बोला गया हर संवाद बनावटी लगता है। उनके किरदार अब चौड़ाई में बढ़ने लगे हैं और सिनेमैटोग्राफर वी मणिकंदन को भी शायद अपने हीरो की हाइट का ये अंदाजा रहा नहीं। फिल्म का एक और सबसे ज्यादा परेशान करने वाला पहलू है इसका पार्श्वसंगीत। पता नहीं रवि बसरूर को ये दिव्य ज्ञान कहां से हासिल हुआ है कि शोर ही संगीत है। उन्होंने पूरी फिल्म को ट्रेलर समझकर इसका संगीत रचा है। उम्मीद थी कि फिल्म के गानों में इसकी कसर पूरी होगी, लेकिन वहां भी मामला चौपट ही है।
वेंकटेश और जगपति से भी नहीं बनी बात
फिल्म कितने चलताऊ अंदाज से बनी है इसका अंदाजा फिल्म के क्लाइमेक्स में होने वाली मारधाड़ को देखकर लगाया जा सकता है। क्लोजअप शॉट में सलमान खान के चेहरे के ऊपर से फिसलता मुक्का इसके नकलीपन का एहसास दिलाने के लिए काफी है। हैरानी वाली बात ये भी है कि सलमान को देसी जॉन विक बनाने के कीशिश करती फिल्म ‘किसी का भाई किसी की जान’ की कहानी दिल्ली से लेकर हैदराबाद तक घूमती रहती है और इसके बस एक दो दृश्यों में ही पुलिस दिखती है। हरियाणवी बोली वाले विलेन बने विजेंदर कुमार से लेकर हैदराबाद के खूंखार विलेन के रोल में दिखे जगपति बाबू, सब कैरीकेचर बन गए हैं। और, वेंकटेश के बारे में तो क्या ही लिखें। नेटफ्लिक्स की सीरीज ‘राणा नायडू’ से उन्होंने अपनी ब्रांडिंग का हाल वैसा ही कर लिया है जैसा नवाजुद्दीन सिद्दीकी का हाल हिंदी सिनेमा में ‘सेक्रेड गेम्स’ ने कर दिया।
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