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ममता बनर्जी जब चढ़ गई थीं जेपी की कार की बोनट पर, जेपी मूवमेंट की याद दिलाई तो ख्याल आया

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पटना। पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी की सलाह पर विपक्षी नेताओं की अगली बैठक बिहार में होने वाली है। पटना में इसकी तैयारियां भी आकार लेने लगी हैं। नीतीश कुमार जेपी मूवमेंट की याद ममता बनर्जी द्वारा दिलाने पर खासा उत्साहित हैं। इसलिए कि नीतीश खुद ही जेपी मूवमेंट की उपज हैं। ममता बनर्जी का भी तार जेपी से जुड़ता है, लेकिन दूसरे संदर्भों में। वह तब जेपी मूवमेंट की विरोधी थीं। उन्होंने आंदोलन का विरोध इसलिए किया कि तब वे कांग्रेस में थीं और आंदोलन कांग्रेस के खिलाफ ही था। उस वक्त ममता बनर्जी ने जेपी के विरोध का अनोखा तरीखा अख्तियार किया था। इसके बाद से वो और मशहूर होती चली गईं।
जब जेपी की कार पर चढ़ कर नाचने लगीं थीं ममता बनर्जी
कोलकाता। 1955 में कोलकाता में जन्म लेने वाली ममता बनर्जी शुरू से राजनीति में सक्रिय रहीं। वे जब 15 साल की थीं, तो एक ऐसा कारनामा किया कि रातोंरात सुर्खियों में आ गई थीं। तब वह कोलकाता के जोगमाया देवी कॉलेज में पढ़ रही थीं। पढ़ते समय उन्होंने कांग्रेस (आई) के स्टूडेंस विंग छात्र परिषद की स्थापना की। उनका राजनीतिक करियर 1970 के दशक में कांग्रेस से शुरू हुआ। साल 1975 की बात है। उन्होंने समाजवादी कार्यकर्ता और राजनेता जयप्रकाश नारायण के छात्र आंदोलन का विरोध अपने अंदाज में किया। जेपी की कार के बोनट पर चढ़ कर उन्होंने अपना विरोध जताया। जयप्रकाश नारायण कोलकाता के दौरे पर पहुंचे थे। जेपी अन्य आंदोलन समर्थक नेताओं के साथ कोलकाता में एक सभा को संबोधित करने वाले थे। जैसे ही उनका काफिला शहर में पहुंचा, कांग्रेस के कार्यकर्ताओं ने रास्ता रोक दिया। इसी दौरान ममता बनर्जी जेपी की कार के बोनट पर चढ़ गईं। उन्होंने जमकर नारेबाजी की। कहते तो हैं कि उन्होंने जेपी की कार के बोनट पर चढ़ कर डांस भी किया। उसके बाद ममता बनर्जी मीडिया में छा गईं।
जनता पार्टी के पीएम मोरारजी को काला झंडा दिखाया
कांग्रेस में रहते ममता बनर्जी का यह पहला कारनामा था। जेपी मूवमेंट की वजह से 1977 में कांग्रेस के पांव उखड़ गए। जनता पार्टी के नेतृत्व में बनी सरकार में पीएम बने मोरारजी देसाई। मोरारजी भाई जब कोलकाता आए तो उन्हें काला झंडा दिखाने की कांग्रेसियों ने योजना बनाई। कड़ी सुरक्षा के बीच यह संभव नहीं था। इसका जिम्मा ममता बनर्जी को सौंपा गया। रास्ता बदल कर बदले लिबास में ममता बनर्जी अचानक रेड रोड पर पीएम की कार के सामने प्रकट हो गईं। उनके हाथ में काला झंडा था। उन्होंने लहराना शुरू किया। फिर तो बाकी कांग्रेसी भी सामने आ गए थे। ममता के चर्चा में आने का यह दूसरा मौका था। उसके बाद तो ममता बनर्जी सियासत में दनादन पांव बढ़ाने लगीं।
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जेपी का विरोध, पर जेपी आंदोलन की जमीन पसंद है
ममता बनर्जी ने भले ही जेपी का विरोध किया, लेकिन उनके आंदोलन की सफलता को वे शिद्दत से स्वीकारती हैं। तभी तो उन्होंने नीतीश कुमार से मुलाकात के दौरान कहा कि बिहार आंदोलन की भूमि है। सत्ता के खिलाफ जेपी का आंदोलन पटना से ही शुरू हुआ था। आंदोलन सफल भी हुआ। इसलिए विपक्षी दलों की अगली बैठक पटना में ही बुलाई जानी चाहिए। नीतीश ने ममता का प्रस्ताव मान लिया है। पटना में बैठक आयोजित करने की तैयारी शुरू हो गई है।
अभी आनंद मोहन के लिए नीतीश सरकार ने कारा नियमों में ही बदलाव कर दिया है। जल्द ही वो रिहा भी होने वाले हैं। एक समय था जब कोसी बेल्ट में आनंद मोहन की तूती बोलती थी। तत्कालीन डीएम जी कृष्णैया की हत्या के दोषी आनंद मोहन उस वक्त सुर्खियों में आए थे जब बिहार में अगला बनाम पिछड़ा की लड़ाई चल रही थी। वो उस दौर के पहले राजपूत नेता थे जिन्होंने भूमिहारों के साथ लालू यादव के खिलाफ झंडा बुलंद किया था।
मोहम्मद शहाबुद्दीन का निधन हो चुका है। लेकिन तेजाब कांड से लेकर कई ऐसे कांड हैं जिनके बारे में पढ़ कर आज भी लोग थर्रा उठते हैं। सिवान के साहेब के नाम से मशहूर शहाबुद्दीन लालू प्रसाद यादव के खासमखास हुआ करते थे। एक वक्त था कि लालू इनसे ज्यादा भरोसा किसी पर नहीं करते थे। हालांकि आज की तारीख में उनके परिवार ने RJD से नाता तोड़ लिया है।
अनंत सिंह उर्फ छोटे सरकार पटना से सटे मोकामा में रॉबिनहुड की छवि रखते हैं। अनंत सिंह को एके 47 कांड में सजा हुई जिसके बाद उन्होंने अपनी विधायिकी गंवा दी। लेकिन मोकामा सीट पर उपचुनाव में इनकी पत्नी ने विधायक की कुर्सी बरकरार रखी। अपनी खरी बोली के लिए जाने वाले अनंत सिंह ने कभी मोकामा में नीतीश कुमार को सिक्कों से तौल दिया था। पुटुस हत्याकांड में अनंत सिंह का नाम उछलने के बाद उन्हें जेल जाना पड़ा था। इसके बाद से उनके बाहर निकलने का रास्ता बंद होता चला गया।
बाहुबलियों की चर्चा हो और सूरजभान सिंह का नाम न आए, ये कैसे हो सकता है। लोग कहते हैं कि एक समय पटना से लेकर गोरखपुर तक रेलवे टेंडरों में सूरजभान सिंह का जलवा था। 90 के दशक से अपनी धमक की शुरूआत करने वाले सूरजभान सिंह ने कभी पीछे का रास्ता नहीं देखा। पहले विधायक बने और फिर बाद में सांसद। लेकिन सूरजभान ये जानते थे कि कभी न कभी उन पर लगे दाग कुर्सी को बरकरार नहीं रहने देंगे। इसलिए उन्होंने पत्नी और भाई को राजनीतिक विरासत सौंप दी। अब वो बैकस्टेज पॉलिटिक्स करते हैं।
मूलरूप से रोहतास के नवाडीह के निवासी सुनील पांडेय के पिता बालू का कारोबार करते थे। इसी दौरान उनकी हत्या कर दी गई। तब सुनील पांडेय बिहार से बाहर कहीं इंजीनियरिंग कर रहे थे। पढ़ने-लिखने में ठीक थे, लेकिन पिता की हत्या ने इन्हें विचलित कर दिया और ये बाहुबल के मैदान में कूद गए। इनकी धमक ऐसी थी कि साल 2000 में इन्होंने भोजपुर के पीरो से पहली बार विधानसभा चुनाव लड़ा और जीत गए। इसके बाद इन्होंने पीछे का मुंह नहीं देखा।
पप्पू यादव का यही नाम अब प्रचलित हो चुका है, हालांकि उनका असली नाम राजेश रंजन है। पप्पू यादव ने भी 90 के दशक में ही बाहुबल के मैदान में कदम रखा। फिर वो आगे बढ़ते चले गए। सिर पर लालू का हाथ भी आ गया। उसी समय पप्पू पर CPI विधायक अजीत सरकार की हत्या का आरोप लगा। दोषी साबित होने पर अदालत ने पप्पू यादव को उम्रकैद की सजा सुनाई। लेकिन उन्होंने इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी और बरी कर दिए गए।
बिहार में RJD के कद्दावर नेता प्रभुनाथ सिंह को कभी छपरा का नाथ भी कहा जाने लगा था। एक समय में प्रभुनाथ सिंह ने यहां ऐसी धाक जमा ली थी, जिसका कई जोड़ नहीं था। 1990 के विधानसभा चुनाव में प्रभुनाथ सिंह ने जनता दल के टिकट पर भारी मतों के अंतर से जीत दर्ज की थी। इसके बाद वो नीतीश के साथ हो लिए, फिर बाद में लालू के साथ भी आए। लेकिन पूर्व विधायक अशोक सिंह हत्याकांड में उन्हें हजारीबाग की अदालत ने दोषी ठहराया और अब वो जेल में हैं।
काली प्रसाद पांडेय, वो नाम जो 80-90 के दशक में बाहुबलियों का गुरु कहा जाता था। काली पांडेय के ऊप कई संगीन आरोप लगे थे। इसके चलते वो जेल भी जा चुके थे। इन्होंने 1984 में गोपालगंज सीट से लोकसभा के चुनावी मैदान में ताल ठोक दी। इनका प्रभाव कितना था, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि 1984 के लोकसऊा चुनाव में इन्हें रेकॉर्ड वोट मिले थे। काली पांडेय ने उस वक्त सारे देश में सबसे अधिक वोटों से जीतने वाले लोकसभा सदस्य का रेकॉर्ड बना डाला था
बिहार के बाहुबलियों में राजन तिवारी का नाम भी शुमार है। राजन तिवारी पर हत्या और अपहरण के कई आरोप लगे थे। पड़ोसी यूपी में भी राजन तिवारी की तूती बोलती थी। ये दो-दो बार बिहार में विधायक बने। राजन तिवारी पर किडनैपिंग का आरोप साल 2005 में लगा था। फिलहाल राजन तिवारी यूपी की फर्रूखाबाद जेल में बंद हैं। हालांकि इनकी सियासी विरासत इनके भाई राजू तिवारी ने संभाल रखी है जो अभी लोजपा (रामविलास) के नेता हैं।
रामा किशोर सिंह बिहार के बाहुबलियों के चैप्टर
बिहार के वैशाली जिले से ताल्लुक रखने वाले रामा किशोर सिंह भी बिहार के बाहुबलियों के चैप्टर का एक हिस्सा हैं। इन्होंने कई दफे महनार विधानसभा सीट से जीत दर्ज की। 2014 में मोदी लहर में उन्होंने RJD के दिवंगक नेता रघुवंश प्रसाद सिंह को लोकसभा चुनाव में हरा दिया था। लेकिन उसके बाद छत्तीसगढ़ के कारोबारी जयचंद वैद्य के अपहरण कांड में इन्हें जेल जाना पड़ा।
जेपी ने कांग्रेस के खिलाफ विपक्ष को एक किया था
जेपी ने 1977 के लोकसभा चुनाव के पहले तत्कालीन कांग्रेस सरकार के खिलाफ विपक्ष को एक मंच पर ला दिया था। वामपंथियों को छोड़ सभी विपक्षी दल जेपी के आह्वान पर अपनी पहचान को तिलांजलि दे एक मंच पर जमा हो गए थे। जनता पार्टी का गठन हुआ। जनता पार्टी सरकार के पहले पीएम बने मोरारजी देसाई। हालांकि जनता पार्टी की सरकार दोहरी सदस्यता के सवाल पर अधिक दिन तक टिक नहीं पाई। दो साल में ही सरकार गिर गई। 1980 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा गांधी फिर से सत्ता में लौट आई थीं।


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