नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को उद्धव बनाम शिंदे की शिवसेना का मामला सुप्रीम कोर्ट की बेंच को सौंप दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि 2016 का फैसला सही नहीं था। इसमें कहा गया था कि डिप्टी स्पीकर या स्पीकर के खिलाफ अयोग्यता का मामला है तो उसे कोई फैसला लेने का अधिकार नहीं होगा।
महाराष्ट्र में शिवसेना विधायकों की बगावत के बाद महाराष्ट्र विकास अघाड़ी गठबंधन सरकार पिछले साल जून में गिर गई थी। इसके बाद 30 जून को शिंदे ने मुख्यमंत्री पद की शपथ ली थी।
इसके खिलाफ उद्धव ठाकरे सुप्रीम कोर्ट गए। मामला पांच जजों की कॉन्स्टिट्यूशनल बेंच को ट्रांसफर हुआ। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की बेंच इस पर फैसला देगी।
16 शिवसेना विधायकों पर अब बड़ी बेंच करेगी फैसला
शिवसेना के 16 विधायकों के मामले में अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच फैसला करेगी। सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने इस मामले को बड़ी बेंच के पास भेज दिया है। इसके साथ ही फिलहाल एकनाथ शिंदे समेत 16 विधायकों के भविष्य पर फैसला टल गया है। अब सुप्रीम कोर्ट की बड़ी बेंच शिवसेना विधायकों की अयोग्यता के मामले पर फैसला सुनाएगी। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने इस मामले को सात जजों की बड़ी बेंच के पास भेज दिया है।
शिंदे और ठाकरे गुट की तरफ से ये वकील
उद्धव ठाकरे खेमे की तरफ से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, देवदत्त कामत और अधिवक्ता अमित आनंद तिवारी ने इस केस में नुमाइंदगी की है। वहीं एकनाथ शिंदे समूह का प्रतिनिधित्व वरिष्ठ अधिवक्ता नीरज किशन कौल, हरीश साल्वे, महेश जेठमलानी और अधिवक्ता अभिकल्प प्रताप सिंह ने किया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने मामले में राज्यपाल के कार्यालय का प्रतिनिधित्व किया। मामले की सुनवाई इस साल 21 फरवरी को शुरू हुई थी
16 मार्च को सुनवाई में क्या हुआ था
प्रधान न्यायाधीश ने कहा: अदालत को एक सरकार (जिसने इस्तीफा दे दिया है) को बहाल करने के लिए कहा जा रहा है। सिंघवी ने कहा कि यह देखने का एक प्रशंसनीय तरीका है, लेकिन यह अप्रासंगिक है। सिंघवी ने पीठ से कहा कि वह उन्हें अपनी दलीलों को स्पष्ट करने का अवसर दे।इस पर न्यायमूर्ति शाह ने कहा: अदालत एक ऐसे मुख्यमंत्री को कैसे बहाल कर सकती है, जिसने फ्लोर टेस्ट का सामना भी नहीं किया? सिंघवी ने कहा कि अदालत किसी को बहाल नहीं कर रही है, बल्कि यथास्थिति बहाल कर रही है।प्रधान न्यायाधीश ने सिंघवी से आगे पूछा: लेकिन, यह एक तार्किक बात होती, अगर आप विधानसभा के पटल पर विश्वास मत हार जाते। स्पष्ट रूप से, तब आप विश्वास मत के कारण सत्ता से बेदखल हो जाते, जो अलग रखा गया है। बौद्धिक पहेली को देखें कि ऐसा नहीं है कि आपको विश्वास मत के परिणामस्वरूप सत्ता से बेदखल कर दिया गया है, जिसे राज्यपाल द्वारा गलत तरीके से तलब किया गया था। आपने नहीं चुना, चाहे जिस कारण से आपको विश्वास मत का सामना नहीं करना पड़ा।
16 मार्च को सुनवाई में सिंघवी पर सवालों की झड़ी
16 मार्च को इससे पहले सुप्रीम कोर्ट में मामले पर सुनवाई हुई थी। सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ और न्यायमूर्ति एम.आर. शाह, कृष्ण मुरारी, हिमा कोहली और पीएस नरसिम्हा ने फैसला सुरक्षित रखा था। इस दौरान उद्धव ठाकरे समूह का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी पर पीठ ने सवालों की झड़ी लगा दी।प्रधान न्यायाधीश ने सिंघवी से पूछा: तो वास्तव में सवाल यह है कि क्या राज्यपाल द्वारा विश्वास मत के लिए शक्ति का वैध प्रयोग किया गया था? और क्या होता है, अगर हम इस निष्कर्ष पर आते हैं कि राज्यपाल को विश्वास मत के लिए बुलाने में शक्ति का कोई वैध अभ्यास नहीं था?सिंघवी ने कहा कि सब कुछ गिर जाता है, पीठ ने कहा कि सब कुछ सरल होगा। सिंघवी ने जोर देकर कहा कि यह मूल प्रश्न है और उन्होंने अदालत से आग्रह किया कि उन्हें अपना मामला पेश करने की अनुमति दी जाए। प्रधान न्यायाधीश ने आगे सवाल किया: फिर, आपके अनुसार, क्या हम उद्धव ठाकरे सरकार को बहाल करें? लेकिन उन्होंने इस्तीफा दे दिया। सिंघवी ने कहा कि ठाकरे का इस्तीफा और विश्वास मत का सामना नहीं करना अप्रासंगिक है।
मुंबई में पुलिस ने बढ़ाई सुरक्षा
महाराष्ट्र में सत्ता संघर्ष के फैसले के मद्देनजर मुंबई में कुछ जगहों पर पुलिस सुरक्षा बढ़ा दी गई है। फैसले के बाद किसी तरह की अप्रिय घटना न हो इसके लिए एहतियात बरते गए हैं। महाराष्ट्र समेत मुंबई में मातोश्री, शिवसेना भवन और सामना ऑफिस के बाहर समेत कुछ जगहों पर पुलिस तैनात की गई है। उद्धव ठाकरे गुट के सांसद संजय राउत ने कहा कि हम को कुछ नहीं कहना है। हमको अपने लिए न्याय की उम्मीद है।
उद्धव ठाकरे गुट को अरुणाचल पर 2016 के फैसले से उम्मीद
उद्धव ठाकरे गुट को अरुणाचल प्रदेश पर सुप्रीम कोर्ट के 2016 के एक फैसले से उम्मीद है। सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान इस केस का उल्लेख हुआ था। फरवरी 2016 में कलिखो पुल ने कांग्रेस से बगावत की थी। इसके बाद बीजेपी के समर्थन से वह मुख्यमंत्री बन गए थे। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने चार महीने के अंदर ही उनकी नियुक्ति को असंवैधानिक करार दिया और पुल को इस्तीफा देना पड़ा था। अगर सुप्रीम कोर्ट भगत सिंह कोश्यारी के 2022 के उस आदेश को रद्द करता है, जिसमें उद्धव ठाकरे से बहुमत साबित करने को कहा गया था तो शिंदे के लिए बहुत बड़ा झटका होगा। ऐसे में उन्हें मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है।
अगर शिंदे अयोग्य हुए तो विधान परिषद का रास्ता खुला है!
अगर 16 विधायक अयोग्य घोषित होते हैं तो भी बीजेपी के पास सरकार बचाए रखने का मौका है। एकनाथ शिंदे को मनोनीत करके विधान परिषद के रास्ते भेजा जा सकता है। इसी तरह से उद्धव ठाकरे खुद मनोनीत एमएलसी बनकर मुख्यमंत्री पद पर बने रह गए थे। कोरोना के दौरान चुनाव नहीं हो पा रहे थे और उद्धव को बिना विधायक बने छह महीने पूरे होने वाले थे। तब मनोनीत विधान परिषद सदस्य के रूप में उनका निर्वाचन हुआ था।
अगर एकनाथ शिंदे के खिलाफ आया फैसला तो…
अगर एकनाथ शिंदे के खिलाफ फैसला आता है तो महाराष्ट्र विधानसभा में बहुमत का जादुई आंकड़ा घट जाएगा। अभी महाराष्ट्र विधानसभा में 288 सदस्य हैं। अगर 16 विधायक अयोग्य घोषित किए जाते हैं तो संख्याबल घटकर 272 हो जाएगा। ऐसे में सरकार बचाए रखने के लिए 137 विधायकों की जरूरत होगी। लेकिन एकनाथ शिंदे भी 16 विधायकों में हैं। अगर सुप्रीम कोर्ट से विधायकों को अयोग्य ठहराया जाता है तो फिर सरकार बचाने के लिए संख्याबल घट जाएगा। अभी बीजेपी के साथ 162 विधायक हैं। 16 विधायकों को घटाने पर भी 146 विधायक बचे रह जाएंगे। ऐसे में बहुमत की राह फिलहाल तो मुश्किल नहीं दिखती है।
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