नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 21 से 24 जून तक अमेरिका दौरे पर रहेंगे। दोनों देशों के रिश्तों के लिहाज से इस दौरे को काफी अहमियत दी जा रही है। इस बीच, व्हाइट हाउस से एक बड़ा बयान सामने आया है। इसमें व्हाइट हाउस ने बताया कि पीएम मोदी के आगामी दौरे पर क्या-क्या होगा? किन-किन मुद्दों पर दोनों देशों के प्रमुखों के बीच बातचीत होगी?
भारतीय प्रधानमंत्री के दौरे पर पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान, चीन से लेकर रूस और यूक्रेन तक की नजर है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि आखिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का ये दौरा इतना खास क्यों है? इस दौरे के बीच हिंद प्रशांत महासागर से लेकर अंतरिक्ष तक से जुड़े क्या-क्या समझौते हो सकते हैं? इसके मायने क्या हैं? क्या अलग होने वाला है? आइए समझते हैं…
किन मुद्दों पर होगी बातचीत और क्यों है जरूरी?
1. हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र को लेकर: पश्चिमी देशों से एशिया को प्रशांत क्षेत्र ही जोड़ता है। यहां 50 से ज्यादा छोटे देश और आईलैंड हैं। इस क्षेत्र में चीन का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है। चीन ने बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव परियोजना के तहत पापुआ न्यू गिनी के करीब सोलोमन द्वीप समूह के साथ एक सुरक्षा समझौता किया था, जिसके बाद चीन ने राजधानी होनियारा में बंदरगाह बनाने का एक अनुबंध हासिल किया।
चीन के इस कदम को देखते हुए पापुआ न्यू गिनी बीजिंग की ओर झुकाव दिखा रहा है, जो क्वाड समूह के देश भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के लिए एक बड़ी चिंता है। पापुआ न्यू गिनी के प्रधानमंत्री जेम्स मरापे ने साल 2022 में बैंकॉक में चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग से मुलाकात की थी, जिसके बाद बीजिंग ने कहा था कि चीन और पापुआ न्यू गिनी दोनों अच्छे दोस्त हैं।
अब पश्चिमी देशों ने हिंद-प्रशांत महासागर क्षेत्र के देशों को एकजुट करने के लिए भारत को आगे किया है। भारतीय पीएम मोदी इसे बखूबी कर भी रहे हैं। पिछले दिनों जब पीएम मोदी पापुआ न्यू गिनी पहुंचे थे तो वहां के प्रधानमंत्री ने पीएम मोदी के पैर छूकर उनका अभिवादन किया था।
इसके अलावा भारतीय प्रधानमंत्री पहली बार फोरम फॉर इंडिया पैसिफिक आईलैंड को-ऑपरेशन यानी FIPIC में शामिल हुए। इसके जरिए उन्होंने हिंद क्षेत्र में चीन के बढ़ते कदम को रोकने की दिशा में पहला और बड़ा कदम बढ़ाया। जिस तरह से प्रशांत क्षेत्र में बसे देश और आईलैंड्स ने पीएम मोदी का स्वागत किया वो भी बड़ा कूटनीतिक संदेश दे रहा है।
अब अमेरिकी दौरे के दौरान पीएम मोदी और राष्ट्रपति जो बाइडेन के बीच इस मसले पर भी बातचीत होगी। अमेरिका चाहता है कि पीएम मोदी प्रशांत महासागर क्षेत्र के साथ-साथ अन्य एशियाई देशों को एकजुट करें और उसका नेतृत्व करें। इससे चीन का प्रभाव कम हो सकता है।
2. अंतरिक्ष के क्षेत्र में साथ काम करेंगे अमेरिका और भारत के वैज्ञानिक: ये दूसरा सबसे अहम मुद्दा है, जिसपर भारत के पीएम और अमेरिका के राष्ट्रपति के बीच बातचीत होगी। ये इसलिए जरूरी है, क्योंकि चीन ने अंतरिक्ष पर भी एक तरह से कब्जा करने की तैयारी शुरू कर दी है।
ऐसा होता है तो आने वाले दिनों में ये सिर्फ भारत और अमेरिका ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के लिए संकट की स्थिति होगी। हाल ही में पहली बार चीन ने किसी आम एस्ट्रोनॉट को स्पेस में भेजा है। इससे पहले चीन की तरफ से सिर्फ सेना के एस्ट्रोनॉट्स अंतरिक्ष में गए हैं।
एक रिपोर्ट के मुताबिक, 2030 तक चीन चांद पर पहुंचने की तैयारी कर रहा है। इसके लिए चीन की मिलिट्री के स्पेस प्रोग्राम पर कई बिलियन खर्च किए जा चुके हैं। चीन स्पेस रेस में अमेरिका और रूस की बराबरी करना चाहता है। चीन ने पिछले साल अपना तीसरा परमानेंट स्पेस स्टेशन बनाने का काम पूरा कर लिया था। जिसे तियानगोंग नाम दिया गया है।
इसे लॉन्च करने के बाद 10 साल तक धरती के ऑर्बिट में रखा जाएगा। इससे सबसे लंबे वक्त तक इंसान के स्पेस में रहने का रिकॉर्ड बनेगा। 2011 में अमेरिका ने अपनी स्पेस एजेंसी नासा को चीन की स्पेस एजेंसी के साथ काम करने से इनकार कर दिया था। तब से चीन इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन से बाहर है।
नासा के अधिकारी बिल नेल्सन के अनुसार, चीन चांद के एक हिस्से पर साइंटिफिक रिसर्च फैसिलिटी बना रहा है। आशंका इस बात की है कि चीन बाद में इस इलाके पर कब्जा कर सकता है। ऐसी आशंका इसलिए भी है, क्योंकि अंतरिक्ष के नियम पहले आओ, पहले पाओ की तरह काम करते हैं।
इसे रोकने के लिए दुनिया के बड़ी ताकतों को एकसाथ आना ही पड़ेगा। स्पेस मिशन के मामले में भारत ने काफी तरक्की कर ली है। भारतीय वैज्ञानिक पूरी दुनिया में चर्चित हैं। ऐसे में चीन को रोकने के लिए अमेरिका को भारत की जरूरत जरूर पड़ेगी।
क्या है पीएम मोदी के अमेरिका दौरे का प्लान?
पीएम मोदी, अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन और प्रथम महिला जिल बाइडन के बुलावे पर 21 जून से 24 जून तक अमेरिका के दौरे पर रहेंगे। इस दौरान वह 22 जून को अमेरिकी संसद को संयुक्त सत्र को संबोधित भी करेंगे। अमेरिकी संसद के संयुक्त सत्र को दो बार संबोधित करने वाले पीएम मोदी देश के पहले नेता होंगे। बता दें कि इससे पहले साल 2016 में भी अपने अमेरिका दौरे पर पीएम मोदी वहां की संसद के संयुक्त सत्र को संबोधित कर चुके हैं।
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