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100 साल से अनसुलझा रहस्य सुलझा : भारतीय टेलिस्कोप ने सुना ब्रह्मांड का वो ‘शोर’, 100 साल पहले आइंस्टीन के समय से था रहस्य

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नई दिल्ली। 100 साल से भी अधिक समय पहले अल्बर्ट आइंस्टीन ने जिस बात की संभावना जताई थी, वह सच निकली। जी हां, सात भारतीय संस्थानों के वैज्ञानिकों समेत दुनियाभर के खगोल विज्ञानियों की टीम को एक बड़ी सफलता मिली है। पहली बार इन्होंने ब्रह्मांड की रहस्यमय आवाज का प्रत्यक्ष प्रमाण खोजा है। खास बात यह है कि पुणे के करीब स्थित भारत की अपग्रेडेड विशाल दूरबीन ‘जाइंट मीटरवेव रेडियो टेलीस्कोप’ (uGMRT) दुनिया की उन 6 बड़ी संवेदनशील रेडियो टेलिस्कोप में से एक है जिसने इस ‘कंपन’ को सुना है। बहुत कम आवृत्ति वाली गुरुत्वाकर्षण तरंगों की वजह से ब्रह्मांड में लगातार हो रहे कंपन को महसूस किया गया है।
गुरुवार को दुनियाभर के वैज्ञानिकों की एक टीम ने इसके बारे में जानकारी साझा की। गणितीय विज्ञान संस्थान, चेन्नई के प्रतीक ने कहा, ‘हम ऐसी गतिशील परिधि हासिल करने के करीब हैं जहां कोई इस ब्रह्मांडीय गुरुत्वाकर्षण-तरंग की गूंज को सुन सकता है।’ वैज्ञानिकों का कहना है कि इन तरंगों के बड़ी संख्या में घूमते विशालकाय ब्लैक होल जोड़े के मर्जर से पैदा होने की उम्मीद है, जो सूर्य से कई लाख गुना भारी हैं।
इस खोज के साथ ही वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि ब्रह्मांड के कई रहस्यों से परदा उठ सकता है। ब्लैक होल के मर्ज होने से क्या होता है और कुछ फिजिकल रिएलिटी के बारे में जानकारी मिल सकती है। उत्तरी अमेरिका, यूरोप, चीन, भारत और ऑस्ट्रेलिया के सैकड़ों वैज्ञानिक कई साल से इस मिशन में जुटे थे। आखिरकार जो परिणाम मिले वो चौंकाने वाले थे। हाई फ्रिक्वेंसी वेव्स धरती की तरफ आ रही हैं लेकिन दशकों से साइंटिस्ट लो-फ्रिक्वेंसी ग्रैविटेशनल वेव्स की तलाश कर रहे थे, जो बैकग्राउंड नॉइज की तरह अंतरिक्ष में सुनाई दे रही हैं। पहले यह माना जाता था कि ब्रह्मांड में कोई आवाज नहीं होती है।
uGMRT का संचालन करने वाले राष्ट्रीय रेडियो खगोल भौतिकी केंद्र पुणे के यशवंत गुप्ता ने कहा, ‘गुरुत्वाकर्षण तरंग खगोल विज्ञान पर जारी अंतरराष्ट्रीय प्रयासों में हमारे डेटा का उपयोग करना शानदार है।’

 


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