26 वीक प्रेग्नेंसी टर्मिनेशन केस में सुप्रीम कोर्ट बोला- एम्स का बोर्ड महिला की जांच करे, अगर मनोविकृति मिले तो भ्रूण को बचाने का तरीका बताए
नई दिल्ली। 26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी को मेडिकली अबॉर्ट करने के केस में शुक्रवार 13 अक्टूबर को लगातार 5वें दिन सुनवाई हुई। दलीलें सुनने के बाद चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने निर्देश दिया कि एम्स के डॉक्टर्स का बोर्ड महिला की मानसिक और शारीरिक जांच करके उसकी मनोविकृत्ति का पता लगाए। सीजेआई ने यह भी कहा कि याचिकाकर्ता महिला को दोपहर 2 बजे बोर्ड के सामने पेश होना होगा। इसके बाद बोर्ड रिपोर्ट बनाए कि महिला को दी जा रही डिप्रेशन की दवाओं से भ्रूण को कैसे बचाया जा सकता है।
एक दिन पहले पूछा था- क्या महिला कुछ दिन और इंतजार नहीं कर सकती
12 अक्टूबर को सीजेआई की बेंच ने याचिकाकर्ता महिला के वकील से पूछा था कि 26 सप्ताह तक इंतजार करने के बाद, क्या वह कुछ दिन और इंतजार नहीं कर सकती। साथ ही ASG ऐश्वर्या भाटी और महिला की वकील को इस संबंध में उससे बात करने भी कहा था।
सिलसिलेवार पढ़िए इस केस में अब तक क्या-क्या हुआ
9 अक्टूबर : 26 हफ्ते की प्रेग्नेंसी खत्म करने की इजाजत दी, कहा- AIIMS जाएं जस्टिस हिमा कोहली और जस्टिस बीवी नागरत्ना की बेंच ने कहा कि अपने शरीर पर महिला का अधिकार है। अगर अनचाहे गर्भधारण से बच्चा पैदा होगा, तो उसे पालने की जिम्मेदारी महिला पर ही आएगी। इस वक्त वह इसके लिए तैयार नहीं है। उसे अबॉर्शन की इजाजत दी जाती है। कोर्ट ने महिला से कहा था कि वो 10 अक्टूबर को AIIMS जाए।
10 अक्टूबर: SC ने अबॉर्शन रोका, मां की अपील- मेरे 2 बच्चे, तीसरा नहीं चाहिए AIIMS के डॉक्टरों ने मंगलवार को कोर्ट में बताया कि भ्रूण के पैदा होने की संभावना है। इसके बाद कोर्ट ने डॉक्टरों को अबॉर्शन प्रोसेस रोकने का निर्देश दिया। कोर्ट ने कहा कि इस मामले की सुनवाई के लिए बुधवार को एक नई बेंच का गठन किया जाएगा। हालांकि, कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर गर्भ में शिशु जीवित मिले तो डॉक्टरों की सलाह से उसे इन्क्यूबेशन में रख सकते हैं।
11 अक्टूबर: नई मेडिकल रिपोर्ट देखकर फैसला पलटा, 2 जज बंटे, केस बड़ी बेंच को भेजा कोर्ट ने नई मेडिकल रिपोर्ट पर नाराजगी जाहिर की। बेंच ने कहा कि रिपोर्ट में लिखा है कि 26 हफ्ते के भ्रूण के जीवित रहने की काफी संभावना है। जस्टिस हिमा कोहली प्रेग्नेंसी टर्मिनेट करने के पक्ष में नहीं थीं, लेकिन जस्टिस बीवी नागरत्ना उनसे सहमत नहीं थीं। दोनों जजों के बीच मतभेद के बाद मामले को बड़ी बेंच के पास रेफर कर दिया गया।
12 अक्टूबर: सुप्रीम कोर्ट ने कहा- महिला इतने दिन रुकी, क्या और इंतजार नहीं कर सकती चौथे दिन की सुनवाई के दौरान बेंच ने कहा था- हमें अजन्मे बच्चे के अधिकार को मां के अधिकार के साथ बैलेंस करने की जरूरत है। वो एक जीवित भ्रूण है। क्या आप चाहते हैं कि हम AIIMS के डॉक्टरों को उसके दिल को रोकने के लिए कहें, हम ऐसा नहीं कर सकते। हम किसी बच्चे को नहीं मार सकते।
क्या है यह पूरा मामला- महिला बोली- प्रेग्नेंट हुई, पता नहीं चला
याचिकाकर्ता ने अपनी अपील में कहा था कि उसका दूसरा बच्चा अभी छोटा है और ब्रेस्ट फीडिंग करता है। ऐसे में महिला ने लैक्टेशनल अमेनोरिया नाम के कॉन्ट्रासेप्टिव तरीके का इस्तेमाल किया, लेकिन ये तरीका फेल हो गया और वह प्रेग्नेंट हो गई। इसके बारे में उसे काफी समय बाद पता चला। कोर्ट ने भी माना कि ब्रेस्टफीडिंग के दौरान प्रेग्नेंसी की संभावना बेहद कम होती है। सोमवार को कोर्ट ने याचिकाकर्ता को वर्चुअली पेश होने को कहा और उससे पूछा कि क्या वह प्रेग्नेंसी को जारी रखना चाहती है, लेकिन महिला ने कोर्ट से अबॉर्शन की इजाजत मांगी।
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