नई दिल्ली। शीर्ष अदालत ने आज मंगलवार को दिल्ली और इसके आसपास के राज्यों की सरकारों से वायु प्रदूषण को रोकने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों का विवरण देने वाले हलफनामे मांगे। जज एस.के. कौल, सुधांशु धूलिया और प्रशांत कुमार मिश्रा की पीठ ने टिप्पणी की कि जमीनी स्तर पर हवा की गुणवत्ता में कोई सुधार नहीं हुआ है और प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए दिखाए गए कदम केवल कागजों पर हैं। ऐसा खतरनाक है। बेंच ने देश की राजधानी और इसके आसपास के राज्यों में वायु प्रदूषण से निपटने के लिए उठाए जा रहे कदमों पर वायु गुणवत्ता प्रबंधन आयोग (सीएक्यूएम) द्वारा दायर रिपोर्ट पर ध्यान दिया।
सीएक्यूएम ने रिपोर्ट में क्या कहा
सीएक्यूएम ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि दो-तीन वर्षों की तुलना में वायु प्रदूषण में 40 प्रतिशत की कमी आई है, जबकि फसल जलाना वायु गुणवत्ता खराब होने का एक प्रमुख कारण बना हुआ है। बेंच ने हरियाणा, उत्तर प्रदेश, पंजाब, राजस्थान और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली की संबंधित सरकारों से एक सप्ताह के भीतर हलफनामा दाखिल करने को कहा, जिसमें वायु प्रदूषण की समस्या को नियंत्रित करने के लिए उनके द्वारा उठाए गए कदमों की पूरी जानकारी हो।
बता दें कि इससे पहले 10 अक्टूबर को, शीर्ष अदालत ने सर्दियों के मौसम के दौरान दिल्ली में बढ़ते वायु प्रदूषण और फसल अवशेष (पराली) जलाने के मुद्दे के बारे में वरिष्ठ वकील अपराजिता सिंह की दलील पर संज्ञान लिया था। इसके बाद शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर के लिए स्थगित करते हुए उसने सीएक्यूएम को इस बीच एक रिपोर्ट दाखिल करने को कहा था। अपराजिता सिंह प्रदूषण नियंत्रण से संबंधित एक जनहित याचिका में एमिकस क्यूरी (अदालत के मित्र) के रूप में सुप्रीम कोर्ट की सहायता करती हैं।
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