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कभी भारत पर राज करने वाले मुगलों के वंशज चला रहे हैं चाय की दुकान , दिल्ली से दूर जाने कहाँ रह रहें हैं वंशज

डेस्क। बाबर ने भारत में जिस मुगल वंश की स्थापना की थी, उसके आखिरी बादशाह थे बहादुर शाह जफर द्वितीय. उन्होंने साल 1857 की क्रांति की अगुवाई की तो अंग्रेजों के कोप का शिकार बन गए. दिल्ली पर कब्जा करने. . .

डेस्क। बाबर ने भारत में जिस मुगल वंश की स्थापना की थी, उसके आखिरी बादशाह थे बहादुर शाह जफर द्वितीय. उन्होंने साल 1857 की क्रांति की अगुवाई की तो अंग्रेजों के कोप का शिकार बन गए. दिल्ली पर कब्जा करने के बाद अंग्रेजों ने उन्हें देश से निर्वासित कर रंगून भेज दिया था. वहीं पर 7 नवंबर 1862 को उनका निधन हो गया था. ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर मुगलों के अंतिम बादशाह के निधन के बाद उनके परिवार का क्या हश्र हुआ? उनका परिवार पश्चिम बंगाल में क्यों रह रहा? अंतिम मुगल बादशाह की डेथ एनिवर्सिरी पर जानिए इन्हीं सवालों के जवाब.
सैयद मेहंदी हसन की एक किताब है बहादुर शाह जफर एंड द वार ऑफ 1857 इन डेली. इसमें उन्होंने बहादुर शाह जफर के कर्मचारी रहे अहमद बेग के हवाले से लिखा है कि रंगून में अंग्रेजों की कैद में बादशाह की तबीयत 26 अक्तूबर 1862 से ही खराब थी. वह बड़ी मुश्किल से खाना खा पा रहे थे. दिनोंदिन उनकी तबीयत और खराब होती गई. दो नवंबर को मुगल बादशाह की हालत काफी खराब हो गई. तीन नवंबर को डॉक्टर ने बताया कि बादशाह की गले की हालत काफी खराब है और वह थूक तक नहीं निगल पा रहे. छह नवंबर को डॉक्टर ने बताया कि बादशाह के गले को लकवा मार गया है. यह उनको पड़ा तीसरा लकवा था. इसके अगले ही दिन यानी सात नवंबर को मिर्जा अबूजफर सिराजुद्दीन मुहम्मद बहादुर शाह जफर यानी भारत के अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफर द्वितीय ने हमेशा के लिए अपनी आंखें मूंद लीं.

रंगून से टोकरी में जमशेदपुर पहुंचा था पड़पोता

वर्तमान में बहादुरशाह जफर द्वितीय के वंशज पश्चिम बंगाल की राजधानी कोलकाता से सटे हावड़ा में रहते हैं. जो दिल्ली से करीब 1500 किलोमीटर दूर है. उनके पड़पोते की पत्नी सुल्ताना बेगम अब 60 साल की हो चुकी हैं. हावड़ा की झुग्गी में रहने वाली सुल्ताना की कहानी अक्सर मीडिया में आती रहती है. बेहद कठिनाइयों भरा जीवन व्यतीत करने वाली सुल्ताना ने मीडिया रिपोर्ट्स में बताया है कि बादशाह बहादुर शाह जफर के साथ ही उनके परिवार को भी रंगून (अब यांगून-म्यांमार) भेज दिया गया था. वहीं पर उनके पति मिर्जा बेदार बुख्त के पिता और बादशाह के पोते का जन्म साल 1920 में हुआ था. तब तक उनके माता-पिता यानी बादशाह के बेटों का भी निधन हो चुका था.
सुल्ताना बेगम के पति का जन्म होने पर अंग्रेजों ने उनको रंगून से बाहर ले जाने पर रोक लगा दी थी. हालांकि, मिर्जा बेदार के नाना ने एक टोकरी में उन्हें फूलों के नीचे छिपा दिया और पैदल ही रंगून से निकल गए. किसी तरह बचते-बचाते वह जमशेदपुर पहुंच गए.

पति के निधन के बाद हावड़ा पहुंचीं सुल्ताना

मिर्जा बेदार बुख्त का साल 1980 में निधन हो गया. पति के निधन बाद सुल्ताना बेगम पश्चिम बंगाल चली गईं और हावड़ा की एक झुग्गी में बने दो कमरों की झोपड़ी में रहने लगीं. वहां वह कपड़े धोने के लिए सड़क किनारे के सार्वजनिक नल का इस्तेमाल करती हैं. खाना पकाने के लिए पड़ोसियों के साथ रसोई साझा करनी पड़ती है. औपनिवेशिक काल में अंग्रेजों ने और बाद में भारत सरकार ने बहादुर शाह जफर के वंशजों के लिए भी पेंशन की व्यवस्था की.
हालांकि, यह पेंशन बेहद कम है. बहादुर शाह जफर द्वितीय का कानूनी उत्तराधिकारी होने के कारण पहले मिर्जा बेदार बुख्त को भी पेंशन मिलती थी. यह पेंशन जरूर उनकी मृत्यु के बाद सुल्ताना को मिलने लगी. केंद्र सरकार की ओर से दी जाने वाली यह पेंशन छह हजार रुपए महीना है. सुल्ताना के साथ ही उनकी अविवाहित बेटी मधु बेगम भी रहती हैं.

हावड़ा में चलाती हैं चाय की दुकान

बेहद कम पेंशन में गुजारा करना मुश्किल है. ऐसे में सुल्ताना बेगम को कई छोटे-मोटे व्यवसाय करने पड़े. उन्होंने महिलाओं के कपड़े बेचे पर बात नहीं बनी. आर्थिक स्थिति में कोई सुधार नहीं आया. इसके बाद हावड़ा में चाय की दुकान खोल ली. उसी के जरिए अपना और अपनी बेटी का भरण-पोषण करती हैं. जिन मुगलों ने आगरा से पूरे देश पर शासन किया. फतेहपुर सीकरी जैसे जाने कितने शहर बसाए, किले बनवाए. जिस मुगल वंश का अंतिम बादशाह दिल्ली के लालकिले से शासन करता था, अब उसी के वंशज गुमनामी में जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

बहादुर शाह जफर के निवास पर हक मांगा

सुल्ताना बेगम ने अपने हक के लिए बार-बार अदालतों में अपील की पर उनकी ज्यादातर याचिकाएं कानूनी तकनीकी कारणों से खारिज कर दी गईं. साल 2021 में उन्होंने दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर कर लालकिले पर दावा किया था. हालांकि कोर्ट ने यह कहते हुए याचिका खारिज कर दी थी कि यह बहुत देर से दायर की गई है. उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में भी गुहार लगाई थी.
सुप्रीम कोर्ट ने इसी साल (2025) मई में उनकी याचिका को गलत बता कर खारिज कर दिया. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, एक न्यायाधीश ने इस याचिका पर यहां तक सवाल किया था कि लाल किला ही क्यों? फतेहपुर सीकरी क्यों नहीं?
इस बारे में सुल्ताना बेगम का जवाब था कि हमने लाल किला या फतेहपुर सीकरी नहीं मांगा था. हमने तो बस इतना कहा था कि अगर हम बहादुर शाह जफर के वंशज हैं तो फिर उनका निवास स्थान तो हमें दिया जाए. उन्होंने यह भी कहा कि सर्वोच्च अदालत से ही मेरी उम्मीद बची थी, अब वह भी खत्म हो गई.

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