आगरा । ताजमहल का नाम बदलने की मांग को लेकर नगर निगम के सदन में प्रस्ताव लाया है। नगर निगम ताजगंज वार्ड पार्षद ने ताजमहल का नाम तेजो महालय करने का प्रस्ताव दिया है। आज यानी बुधवार को होने वाली बैठक में भाजपा पार्षद शोभाराम राठौर नगर निगम सदन के अधिवेशन में यह प्रस्ताव पेश करेंगे।
उनका तर्क है कि नगर निगम में पिछले साढे़ 4 साल में करीब 80 सड़क और चौराहों के नाम बदले गए हैं। ताजमहल का नाम बदलने की मांग भी लंबे समय से उठ रही है। जिस जगह ताजमहल है, वो उस क्षेत्र के पार्षद भी हैं। ताजमहल नगर निगम की सीमा में है। ताजमहल में हिंदू सभ्यता से जुडे़ कई चिन्ह मिलने की बात कही जाती है।
ऐसे में उन्होंने नाम बदलने का प्रस्ताव रखा है। इस मामले में मेयर नवीन जैन का कहना है कि पार्षद शोभाराम ने ताजमहल का नाम बदलने का प्रस्ताव लगाया है। प्रस्ताव सदन में पढ़ा जाएगा और इस पर चर्चा होगी।
केंद्र सरकार की अनुमति के बिना नहीं बदल सकता हैं नाम
ताजमहल का नाम अगर आगरा नगर निगम में प्रस्ताव पास होकर तेजोमहालय हो भी गया, तो भी इस पुरातात्विक महत्व के संरक्षित स्मारक का नाम सरकारी दस्तावेजों में बदल नहीं सकेगा। किसी भी पुरातात्विक स्मारक का नाम बदलने का अधिकार सिर्फ केंद्र सरकार को है। ऐसे में आज नगर निगम में आने वाला प्रस्ताव सिर्फ सियासी स्टंट माना जा रहा है।
हालांकि, प्रस्ताव पास होने पर नगर निगम के कागजात में जरूर ताजमहल की जगह तेजोमहालय लिखा जाने लगेगा। ASI के पुरातत्वविद अधीक्षण डॉक्टर राजकुमार पटेल का कहना है कि उनके पास इस तरह की कोई भी लिखित सूचना नहीं आई है। ऐसे में वह इस मामले पर कोई भी टिप्पणी नहीं कर सकते हैं।
नाम बदलने के पीछे ये हैं तर्क
पार्षद शोभाराम ने ताजमहल का नाम बदलने के पीछे कई तर्क दिए हैं। उनका कहना है कि ताजमहल नाम एक विदेशी यात्री द्वारा दिया गया है। जो कि मूलनाम तेजो महालय का अपभ्रंश है।
विश्व में किसी भी कब्रिस्तान के साथ महल शब्द नहीं जुड़ा है।
ऐतिहासिक और लिखित प्रमाण है कि उक्त परिसर राजा जयसिंह की संपत्ति थी, जिसे शाहजहां ने हथिया लिया था।
शाहजहां की प्रेम कहानी काल्पनिक लगती है, क्योंकि शाहजहां की कई पत्नियां थीं।
रानी मुमताज का असली नाम अर्जुमंद बानो था। कथित मुमताज की मृत्यु बुरहानपुर में उक्त स्मारक के निर्माण से 22 साल पहले हुई थी। इतने साल मुमताज के मृत शरीर को कैसे सुरक्षित रखा गया। इसका भी कोई स्प्ष्ट उल्लेख नहीं है।
विवादों से ताज का पुराना नाता
मई 2017 में विश्व हिंदू परिषद और बजरंग दल समेत दक्षिणपंथी संगठनों ने ताजमहल पर विरोध प्रदर्शन किया था।
नवंबर 2018 में राष्ट्रीय बजरंग दल की महिला विंग की जिला अध्यक्ष मीना दिवाकर ताजमहल परिसर के भीतर मस्जिद में आरती की।
जनवरी 2021 में हिंदू जागरण मंच की युवा वाहिनी के चार कार्यकर्ताओं ने ताजमहल परिसर में शिव चालीसा का पाठ किया और भगवा झंडा लहराया था।
अप्रैल मई 2022 को भगवा वस्त्र और धर्मदंड के साथ अयोध्या में पीठाधेश्वर तपस्वी छावनी के जगद्गुरु परमहंस आचार्य को ताजमहल में एंट्री से रोका गया।
7 मई 2022 को हाईकोर्ट में याचिका दायर कर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण को ताजमहल के 22 बंद दरवाजों की जांच करने का निर्देश देने की मांग की गई है। जिससे पता लगाया जा सके कि वहां हिंदू देवताओं की मूर्तियों तो नहीं हैं। याचिका में 1951 और 1958 में बने कानूनों को संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध घोषित किए जाने की भी मांग की गई थी।
पहली बार पीएन ओक की किताब से खड़ा हुआ विवाद
ताजमहल या तेजोमहालय का विवाद इतिहासकार पीएन ओक की किताब “ट्रू स्टोरी आफ ताज’ के बाद शुरू हुआ था। इतिहासविद् राजकुमार का कहना है कि ओक ने अपनी किताब में ताजमहल के शिव मंदिर होने से संबंधित कई दावे किए थे। उन्होंने अपनी किताब में राजा जय सिंह के फरमानों का जिक्र करने के साथ स्थापत्य कला का उदाहरण दिया था। इसके अलावा ताजमहल में गणेश, कमल के फूल और सर्प के आकार की कई आकृतियां दिखाई देती थीं।
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