पुरि। कोरोना महामारी के दो साल बाद विश्व प्रसिद्ध ओडिशा के पुरी जिले में भव्य रूप से भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 1 जुलाई 2022 से आरंभ होगा। इस बीच भक्तों द्वारा दो सालों के इंतजार के बाद भगवान जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथों पर सवार होकर दर्शन देंगे। कोरोना के मद्देनजर रथ यात्रा में शामिल होने वाले सभी श्रद्धालुओं को मास्क पहनना अनिवार्य किया है। साथ ही पुलिस प्रशासन की ओर से सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया गया है। माना जाता है कि रथयात्रा में शामिल होने से 100 यज्ञों के बराबर लाभ मिलता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है.।ओडिशा के पुरी जिले के जगन्नाथ नगरी में विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा का आयोजन भव्य तरीके से 1 जुलाई को निर्धारित किया गया है। इस दौरान महाप्रभु जगन्नाथ अपने भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथों पर सवार होकर लाखों भक्तों को दर्शन देंगे। हालांकि, कोरोना के मद्देनजर रथ यात्रा में शामिल होने वाले सभी श्रद्धालुओं को मास्क पहनना अनिवार्य किया है। इन दिनों रथों की तैयारी अंतिम छोर पर हैं। वहीं ओडिशा पुलिस के महानिदेशक सुनील बंसल ने बताया रथयात्रा के दौरान 180 प्लाटून फोर्स को तैनात किया जाएगा। साथ ही पुलिस बल के वरिष्ठ अधिकारी शामिल होंगे।
क्या है रथयात्रा की मान्यता?
पुरी स्थित जगन्नाथ मंदिर भारत के चार पवित्र धामों में से एक है। जगन्नाथ का अर्थ होता है जगत के नाथ. भगवान जगन्नाथ श्री हरि विष्णु के अवतार श्रीकृष्ण का ही रूप माना जाता है। हर साल पुरी में बड़े ही हर्षोल्लास के साथ भव्य तरीके से जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है। इस बार आषाढ़ मास के तिथि 1 जुलाई 2022, दिन शुक्रवार को रथ यात्रा का आरंभ होगा। विश्व प्रसिद्ध रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ, भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा की प्रतिमाओं को तीन अलग-अलग दिव्य रथों पर नगर भ्रमण कराया जाता है। ये उत्सव पूरे 10 दिनों तक मनाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार रथ यात्रा निकालकर भगवान जगन्नाथ को प्रसिद्ध गुंडिचा माता के मंदिर माता के मंदिर पहुंचाया जाता है। जहां, भगवान 7 दिनों तक विश्राम करते हैं। इसके बाद भगवान जगन्नाथ की वापसी यात्रा की शुरुआत होती है। यात्रा के पीछे यह मान्यता है कि भगवान अपने गर्भगृह से निकलकर प्रजा का हाल जानने के लिए निकलते हैं।
क्या होती है रथयात्रा के पहले परम्पराएं?
मान्यताओं के अनुसार, जगन्नाथ रथ यात्रा के दौरान कई नियमों का पालन किया जाता है और बहुत सी विधियां या परम्पराएं अत्यंत ही अनोखे रूप से पाल की जाती हैं। उन्हीं में से एक है सफाई के लिए सोने की झाड़ू का इस्तेमाल। हालांकि रथ यात्रा के मद्देनजर परम्पराओं की शुरुआत हो चुकी है. इन्हीं परम्पराओं को निभाते हुए ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि पर जगन्नाथ मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और बड़े भाई बलभद्र को स्नान कराया जाता है। इस वर्ष 14 जून 2022 को ज्येष्ठ पूर्णिमा तिथि थी और इसी दिन तीनों देवी-देवता को स्नान करवाया गया। स्नान के बाद पारंपरिक रूप से तीनों देवता बीमार हो जाते हैं और उन्हें राज वैद्य की देखरेख में एकांत में स्वस्थ होने के लिए एक कमरे में रखा जाता है। इस दौरान उन्हें काढ़ा आदि का भोग लगाया जाता है। मान्यताओं के अनुसार राज वैद्य की तरह से दिए गए आयुर्वेदिक दवा से वे 15 दिनों में ठीक हो जाते हैं और फिर रथ यात्रा का भव्य आयोजन किया जाता है।
15 दिन का एकांतवास क्यों?
भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और देवी सुभद्रा जी को 108 घड़ों के जल से स्नान कराया जाता है। इस स्नान को सहस्त्रधारा स्नान के नाम से जाना जाता है। मान्यता है कि 108 घड़ों के ठंडे जल से स्नान के कारण जगन्नाथ जी बलभद्र जी और माता सुभद्रा जी तीनों बीमार हो जाते हैं। ऐसे में वे एकांतवास में चले जाते हैं और जब तक वे तीनों एकांतवास में रहते हैं। तब मंदिर का कपाट नहीं खुलता है. एकांतवास से आने के बाद महाप्रभु जगन्नाथ अपने भाई बहन के साथ रथ पर सवार होकर भक्तों को दर्शन देते हैं।
यात्रा में भाग लेने वाले को मिलता है ये पुण्य!
भगवान जगन्नाथ (भगवान श्रीकृष्ण) उनके भाई बलभद्र (बलराम) और बहन सुभद्रा रथयात्रा के मुख्य आराध्य होते हैं। जो भक्त इस रथ यात्रा में शामिल होकर भगवान के रथ को खींचते हैं उन्हें 100 यज्ञ करने का फल प्राप्त होता है। कहा जाता है कि इस यात्रा में शामिल होने वालों को मोक्ष की प्राप्ति होती है। यात्रा में शामिल होने के लिए देश-विदेश से श्रद्धालु पहुंचते हैं। स्कंद पुराण में वर्णन है कि आषाढ़ मास में पुरी तीर्थ के दर्शन का पुण्य फल प्राप्त होता है और भक्त को शिवलोक की प्राप्ति होती है।
जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा इतिहास
कहते हैं, श्रीकृष्ण की मौत के पश्चात् जब उनके पार्थिव शरीर को द्वारिका लाया जाता है, तब बलराम अपने भाई की मृत्यु से अत्यधिक दुखी थे। जिसके बाद वो कृष्ण के शरीर को लेकर समुद्र में कूद गए और उनके पीछे-पीछे बहन सुभद्रा भी कूद गईं। इसी समय भारत के पूर्व में स्थित पुरी के राजा इन्द्र द्विमुना को स्वप्न आता है कि भगवान का शरीर समुद्र में तैर रहा है, अतः: उन्हें यहां कृष्ण की एक विशाल प्रतिमा बनवानी चाहिए और मंदिर का निर्माण करवाना चाहिए। उन्हें स्वप्न में देवदूत बोलते हैं कि कृष्ण के साथ बलराम और बहन सुभद्रा की लकड़ी की प्रतिमा बनाई जाए। साथ ही श्रीकृष्ण की अस्थियों को उनकी प्रतिमा के पीछे छेद करके रखा जाए।