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फ़राज़ रिव्यू : ये फिल्म नहीं आसां बस इतना समझ लीजे, फराज के किस्सों में बात नशेब की भी है….

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मुंबई। पाकिस्तान के शायर जावेद सबा की गजल का एक शेर है, गुजर रही थी जिंदगी गुजर रही है जिंदगी, नशेब के बगैर भी फराज के बगैर भी। नशेब मतलब ढलान और फराज मतलब चढ़ाई, जीवन में कुछ अच्छा हासिल करना या फिर कि शिखर। ओटीटी पर धूम मचाए रहने वाले निर्देशक हंसल मेहता की नई फिल्म का नाम ‘फराज’ का मतलब समझ आने के बाद आपको ये फिल्म बेहतर तरीके से समझ आएगी। लेकिन, अनुभव सिन्हा और टी सीरीज की जुगलबंदी में बनी फिल्म ‘फराज’ क्या है, ये रिलीज से पहले दर्शकों को समझाने की कोई कोशिश दोनों ने नहीं की। कारण कुछ भी हो सकता है। दो नए कलाकार हैं फिल्म में। आदित्य रावल के तेवर उनकी पहली फिल्म ‘बमफाड़’ से ही लोगों को पता चल चुके हैं। हंसल ने फिल्म का नाम ‘फराज’ दरअसल फिल्म के दूसरे सितारे जहान कपूर के किरदार के नाम पर रखा है। जहान को मुंबई के पृथ्वी थिएटर आने जाने वाले खूब पहचानते हैं। वह शशि कपूर के पोते और कुणाल कपूर के बेटे हैं।
हंसल मेहता ने 1 जुलाई 2016 को बांग्लादेश की राजधानी ढाका में हुए आतंकवादी हमले पर फिल्म ‘फराज’ बनाई है। ढाका के होली आर्टिसन कैफे एंड बेकरी में हुए आतंकी हमले में सात आतंकवादियों ने 22 विदेशी नागरिकों को मौत के घाट उतार दिया था और बाकी लोग जो मुस्लिम समुदाय से थे उन्हें 10 घंटे तक बंधक बनाए रखने के बाद दिया था। बाद में बांग्लादेश की फौज ने सभी आतंकियों को मार गिराया था। कहानी फराज और निब्रस (आदित्य रावल) के बहाने ये बात बताने की है कि सभी आतंकवादी मुसलमान नहीं होते और सभी मुसलमान आतंकवादी भी नहीं होते। इस्लाम खतरे में है, का शिगूफा छोड़कर युवाओं को बरगलाने वालों के चेहरे पर ये फिल्म एक तमाचा भी है और एक सबक उन लोगों के लिए भी जो धर्म के नाम पर अपनी सियासत करते हैं।
फिल्म ‘फराज’ को बनाकर हंसल मेहता और अनुभव सिन्हा दोनों ने अपने दौर में एक मजबूत कदम इस दिशा में उठाया है कि आज के युवा ये जानें कि इस्लाम क्या है और मुसलमान क्या है। फिल्म में जब एक आतंकवादी फराज से पूछता है कि तुम्हें क्या चाहिए? तो फराज कहता है, ”तुम जैसे लोगों से अपना इस्लाम वापस चाहिए।” फिल्म में यह बताने की कोशिश भी की गई है कि हर मुसलमान बुरा नहीं होता है। दो तरह की विचारधाराओं के लोग दिखाए गए हैं। एक कट्टर विचारधारा के हैं जो एक फरमान पर खून खराबा करने को आतुर हो जाते हैं। दूसरी तरफ ऐसे लोग भी हैं जिनका मानना है कि इस्लाम हो या कोई और धर्म, कोई धर्म किसी की हत्या करने की इजाजत नहीं देता है। आतंकवाद पर ‘फराज’ से पहले भी हंसल मेहता फिल्म ‘ओमेर्टा’ बना चुके हैं। इस फिल्म में उन्होंने पाकिस्तानी-ब्रिटिश मूल के आतंकी उमर सईद शेख के आतंकवादी बनने का पर्दाफाश किया था, तो वहीं फिल्म ‘शाहिद’ में भी वह इसी विषय के आसपास से गुजरे हैं। इन फिल्मों में हंसल मेहता ने आतंकवाद के मानवीय पहलुओं को बहुत ही संजीदगी से दिखाया। अब ‘फराज’ के माध्यम से हंसल मेहता ने ये बताने की कोशिश की है कि आतंकवाद फैलाना महज कुछ चंद लोगों की सोच है।
‘फराज’ से शशि कपूर के पोते जहान कपूर बॉलीवुड में डेब्यू कर रहे हैं। फिल्म में उन्होंने बांग्लादेश के राजकुमार फराज हुसैन का किरदार निभाया है। परेश रावल के बेटे आदित्य रावल फिल्म में आतंकी सरगना बने हैं। देखा जाए तो ये फिल्म एक तरह से दोनों की शो रील है। कमाल काम किया है दोनों ने। पता नहीं चलता कि कौन उन्नीस है और कौन इक्कीस। दोनों की शानदार परफॉर्मेंस । फराज हुसैन की मां के किरदार में जूही बब्बर ने भी कमाल का अभिनय किया है। पुलिस कमिश्नर के किरदार में दिखे दानिश इकबाल भी दर्शकों को प्रभावित करने की कोशिश में दिखते हैं। इंटरवल से पहले फिल्म थोड़ी कमजोर दिखती है पर दूसरे भाग में हंसल मेहता सब कुछ ठीक कर देने की कोशिश करते दिखते हैं और इसमें उन्हें अपने सिनेमैटोग्राफर और म्यूजिक टीम से काफी मदद मिलती है।
‘फराज’ जैसी फिल्में उसी सोच से निकली फिल्म है जिसके तहत निर्माता, निर्देशक अनुभव सिन्हा ने ‘मुल्क’ बनाई थी। ‘मुल्क’ ने ही अनुभव सिन्हा को एक संवेदनशील और रचनाशील ऐसे निर्देशक के रूप में सिनेमा में फिर से स्थापित किया जो बीती बातें बिसार कर दुनिया को नए चश्मे से देखना चाहता है। हंसल मेहता इस बात को काफी पहले समझ चुके हैं। दोनों की संवेदनशीलताओं का संगम है फिल्म ‘फराज’ लेकिन ऐसा सिनेमा देखने के लिए सिनेमाघर तक दर्शकों को खींचकर लाना अब बदले माहौल में बहुत मुश्किल है। ओटीटी पर देखने के लिए बिल्कुल मुफीद इस फिल्म से आम दर्शक शुरू से लेकर आखिर तक एकरस नहीं हो पाते हैं और वह इसलिए क्योंकि ये फिल्म विचारधारा की बात करती है, मनोरंजन की नहीं। और, यही इस फिल्म की सबसे कमजोर कड़ी है।


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