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बंगाल तक ‘अग्निपथ’ की आग, विरोध में युवकों ने हावड़ा ब्रिज किया अवरोध, पुलिस ने किया लाठीचार्ज, अब पीएम मोदी की अग्निपरीक्षा

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कोलकाता । देश भर में केंद्र सरकार की अग्निपथ योजना के खिलाफ चल रहा प्रदर्शन अब पश्चिम बंगाल के महानगर तक पहुंच गया। शुक्रवार की सुबह अचानक हावड़ा ब्रिज पर पहुंचे और बीच ब्रिज बैठ कर सड़क अवरोध कर दिया। इसके कारण हावड़ा ब्रिज पर वाहनों की जाम लग गई। मौके पर पहुंचे पुलिस कर्मियों ने हल्का लाठीचार्ज कर सड़क अवरोध हटाया।

कई शहरों में प्रदर्शन और विरोध की चिंगारी 
देखा जाए तो जैसे ही सरकार ने ‘अग्निपथ’ योजना लॉन्च की, कई शहरों में प्रदर्शन और विरोध की चिंगारी धधक उठी। सेना में भर्ती होने का सपना संजोये कई राज्यों के नौजवान सड़क पर उतर आए। बिहार के लखीसराय, छपरा, समस्तीपुर, आरा समेत कई जिलों में ट्रेनें फूंक दी गईं। सरकार ने 4 साल के लिए भर्ती और आकर्षक इन्क्रीमेंट बताकर इस योजना को शुरू किया था लेकिन अग्निवीर बनने वाले युवाओं को ये रास नहीं आई। उन्होंने सवाल किया कि चार साल की अस्थायी नौकरी करने के बाद वे क्या करेंगे? वरीयता देने का सरकार का ऑफर युवाओं को समझ में नहीं आया। उनका कहना है कि अगर इतनी नौकरियां होतीं तो आज इतनी बेरोजगारी ही क्यों होती। हरियाणा, राजस्थान, यूपी, एमपी, तेलंगाना से लेकर बिहार के 12 जिलों में युवा अभ्यर्थियों का तांडव देखा जा रहा है। विपक्ष सरकार पर उंगली उठा रहा है। लगभग सभी विपक्षी दलों ने सरकार से इस फैसले को वापस लेने की मांग करनी शुरू कर दी है। अपनी मांग मनवाने के लिए हिंसा को किसी भी तरह से उचित नहीं कहा जा सकता। इधर, सरकार ने युवाओं को शांत करने के लिए 24 घंटे में ही संशोधन किया पर कोई फायदा नहीं हुआ। सड़कों पर भले ही युवा दिख रहे हों, पर उनके घरवाले, आस-पड़ोस और आम लोग भी सरकार की इस योजना से नाराज हैं। ऐसे में यह बातें भी होने लगी हैं कि क्या मोदी सरकार ने 8 साल के भीतर तीसरी बड़ी गलती कर दी है? तीसरी इसलिए क्योंकि जिस तरह से सरकार पर दबाव बढ़ रहा है, उसके चलते पहले की दो गलतियों की तरह उसे तीसरी गलती सुधारने के लिए अपने कदम पीछे खींचने पड़ सकते हैं।
सपना टूट रहा है…
दरअसल, गांव हो या शहर लोगों में आम धारणा यही है कि सरकारी नौकरी मिलने का मतलब करियर सुरक्षित होता है। लोग 18-20 घंटे तैयारी कर कड़ी प्रतिस्पर्धा के जरिए नौकरी में सिलेक्ट होते हैं। अगर वो सपना टूटता दिखाई दे रहा है तो लोग तैयारी छोड़कर गुस्सा दिखाने सड़क और रेलवे स्टेशनों पर आ गए हैं। इनके हाथ में तिरंगा झंडा दिखाई दे रहा है। अभी ज्यादा समय नहीं हुआ जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खुद टीवी पर आकर यह कहना पड़ा था कि शायद मेरी तपस्या में ही कोई कमी रह गई। अब आंदोलनकारी युवा इस फैसले को बिना सोच-विचारकर उठाया गया कदम बता रहे हैं। वैसे तो, 2014 के बाद से भाजपा ने मोदी सरकार को कुशल नेतृत्व, दृढ़ निश्चय और मजबूत फैसले लेने वाली सरकार के तौर पर प्रचारित किया था। 370 खत्म करने का फैसला रहा हो या सर्जिकल स्ट्राइक जैसा बड़ा कदम, देशवासियों में यही संदेश गया कि देशहित में जो भी फैसला सही होगा मोदी सरकार उस पर आगे बढ़ने से हिचकिचाएगी नहीं। सरकार ने भी साफ संदेश दिया कि वह किसी के दबाव में नहीं आएगी। लेकिन कुछ फैसलों ने उसकी इस इमेज को धक्का पहुंचाया है। हाल ही में अपने प्रवक्ताओं पर ऐक्शन लेने के उसके कदम ने लोगों को यही संदेश दिया कि मुस्लिम देशों के दबाव में आकर सरकार ने यह कदम उठाया। इससे पहले कृषि कानून को वापस लेने पर भाजपा के समर्थकों ने नाराजगी जताई थी। उनका तर्क था कि जब स्कीम सही थी तो सरकार को उस पर अटल रहना चाहिए था। कुछ समय तक इसकी खूबियां गिनाई जा रही थीं और बाद में ‘कुछ कमी रह गई’ वाली लाइन रीपीट होने लगी। इससे सख्त फैसले लेने वाली छवि टूटी।
जहां से भर्ती ज्यादा, वहां बवाल ज्यादा
अब ताजा विवाद अग्निपथ योजना को लेकर है। जिन राज्यों से सेना में बड़ी संख्या में लोग भर्ती होते हैं, वहां विरोध ज्यादा है। बिहार में कई ट्रेनों में आग लगाई गई है। अपनी मांगें मनवाने का यह तरीका बिल्कुल भी ठीक नहीं है लेकिन 4 साल की नौकरी के सरकार के ऑफर पर नौजवान हिंसा पर उतारू हो गए हैं। विरोध बढ़ता देख रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने युवाओं को समझाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा है कि नई योजना से ज्यादा लोगों को नौकरी मिलेगी, युवाओं के भविष्य को ध्यान में रखकर फैसला लिया गया है और अग्निवीरों की आयु सीमा बढ़ा दी गई है। कुछ दिनों में भर्ती प्रक्रिया शुरू होगी। नई योजना युवाओं को देशसेवा का सुनहरा मौका देगी।
युवाओं की एक नाराजगी इस बात को लेकर थी कि दो साल से कोई भर्ती नहीं हुई और अब नई स्कीम के आने से वे उम्र सीमा से बाहर हो जाएंगे। ऐसे में रक्षा मंत्रालय ने कुछ घंटे पहले घोषणा करते हुए बताया कि सरकार ने अग्निपथ योजना के लिए ऊपरी आयु सीमा 21 वर्ष से बढ़ाकर 23 वर्ष करने के लिए एकमुश्त छूट प्रदान की है। पिछले दो वर्षों में कोई भर्ती नहीं होने के कारण यह निर्णय लिया गया है। लेकिन नौजवान नहीं माने।
वैसे, यह पहली बार नहीं है जब मोदी सरकार को 8 साल के भीतर अपने फैसले पर भारी विरोध का सामना करना पड़ा। अबतक के दो बड़े फैसले उसे वापस भी लेने पड़े हैं।
युवाओं की एक नाराजगी इस बात को लेकर थी कि दो साल से कोई भर्ती नहीं हुई और अब नई स्कीम के आने से वे उम्र सीमा से बाहर हो जाएंगे। ऐसे में रक्षा मंत्रालय ने कुछ घंटे पहले घोषणा करते हुए बताया कि सरकार ने अग्निपथ योजना के लिए ऊपरी आयु सीमा 21 वर्ष से बढ़ाकर 23 वर्ष करने के लिए एकमुश्त छूट प्रदान की है। पिछले दो वर्षों में कोई भर्ती नहीं होने के कारण यह निर्णय लिया गया है।
मोदी सरकार की गलती नंबर -1
सरकार बने ज्यादा वक्त नहीं हुआ था, मोदी सरकार एक अध्यादेश ले आई। उसने कहा कि इसका मकसद भूमि अधिग्रहण में सही से मुआवजा दिया जाना और पारदर्शिता जैसी बातें हैं। कानून कांग्रेस की पिछली सरकार के समय 2013 में ही बन गया था। लेकिन मोदी सरकार ने कुछ बदलाव किए। RFCTLARR Act (Amendment) Ordinance, 2014 में कहा गया कि राष्ट्रीय सुरक्षा, रक्षा, ग्रामीण बुनियादी ढांचे से संबंधित संरचना, औद्योगिक कॉरिडोर और सार्वजनिक बुनियादी ढांचे से संबंधित परियोजनाओं के लिए बिना सहमति जमीन अधिग्रहित की जा सकती है। इन पांच क्षेत्रों को सोशल इम्पैक्ट सर्वे से भी अलग रखा जाएगा। ऐसे कई पॉइंट्स थे जिस पर लोग नाराज हो गए। सबसे ज्यादा विरोध उस प्रावधान पर हुआ जिसमें सहमति की बात थी। इससे पहले तक सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में 80 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति जरूरी होती थी, सरकारी योजना में सहमति 70 प्रतिशत थी लेकिन नए कानून में ये बाध्यता ही खत्म कर दी गई। इसका मतलब साफ था कि सरकार के लिए जमीन अधिग्रहण काफी आसान कर दिया गया था। विरोध बढ़ता गया। विपक्ष अध्यादेश के खिलाफ खड़ा हो गया। सत्ता पक्ष की ओर से कहा गया कि भ्रम पैदा किया जा रहा है। आखिरकार पीएम मोदी ने खुद ‘मन की बात’ कार्यक्रम में ऐलान किया कि भूमि अधिग्रहण विधेयक वापस लिया जा रहा है। भावुक स्पीच के साथ ही पीएम ने 2015 में इस ऐक्ट को वापस ले लिया। यह मोदी सरकार की पहली बड़ी गलती मानी गई।
मिस्टेक नंबर 2
दिल्ली बॉर्डर पर तंबुओं के गांव बस गए। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन एक साल तक चलता रहा लेकिन सरकार और भाजपा के नेता कानून का बखान करते रहे। विपक्ष किसानों के साथ दिखा। सत्तापक्ष ने फिर कहा कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है। खालिस्तानी ऐंगल, देश विरोधी जैसी कई तरह की बातें कही और कहवाई गईं। कई दौर की बातचीत हुई लेकिन आम सहमति नहीं बन पाई। मोदी सरकार कृषि कानूनों में संशोधन करने के लिए तैयार थी लेकिन किसान पूरी तरह से कानून को ही रद्द कराने के पक्ष में थे। ट्रैक्टर रैली निकली और लाल किले पर भारी बवाल हुआ। किसान नेताओं को ‘विलेन’ की तरह देखा जाने लगा। दिल्ली की सीमा का आंदोलन यूपी से बंगाल तक पहुंच गया। भाजपा नेताओं को काले झंडे दिखाए जाने लगे। बीजेपी के भीतर भी एक वर्ग ऐसा था, जो किसानों के सपोर्ट में था। गवर्नर सत्यपाल मलिक तो खुलेआम भाजपा पर सवाल खड़े करते दिखे। विधानसभा चुनाव नजदीक थे। यूपी और पंजाब में किसानों को नाराज कर चुनाव नहीं जीते जा सकते थे, ऐसे में पीएम मोदी ने तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने का ऐलान कर ही दिया।

अब की गलती नंबर 3 ?
2024 का लोकसभा चुनाव भले ही अभी दूर हो, पर कई राज्यों में चुनाव अगले कुछ महीनों में होने हैं। इससे पहले सरकार की छवि पर दाग लग रहा है। सशस्त्र बलों में भर्ती के लिए घोषित अग्निपथ योजना के विरोध में आग ही आग दिखाई दे रही है। कई ट्रेनों में आगजनी, सार्वजनिक और पुलिस के वाहनों को आग लगाया गया है। सरकार ने साल 2022 के लिए इस प्रक्रिया के तहत भर्ती की उम्र पहले से घोषित 21 साल से बढ़ाकर 23 साल कर दी है। इससे पहले सरकार ने कहा था कि सभी नई भर्तियों के लिए आयु साढ़े 17 से 21 वर्ष के बीच होनी चाहिए। रक्षा मंत्रालय के एक प्रवक्ता ने कहा, ‘पिछले दो वर्षों के दौरान भर्ती करना संभव नहीं हुआ, सरकार ने फैसला किया है कि 2022 के लिए प्रस्तावित भर्ती प्रक्रिया के लिए एक बार में (आयु सीमा में) छूट दी जाएगी।’
सरकार स्पष्टीकरण जारी कर रही है लेकिन नौजवान को यह समझ में नहीं आ रहा है। सरकार ने कहा है कि नया मॉडल न केवल सशस्त्र बलों में नई क्षमता पैदा करेगा बल्कि यह युवाओं को लिए निजी क्षेत्र के रास्ते भी खोलेगा और उन्हें अवकाश प्राप्त करने के समय मिलने वाले वित्तीय पैकेज से उद्यमी बनने में भी मदद करेगा।


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