पटना। बिहार की राजनीति हमेशा से दिलचस्प रही है, लेकिन जितनी दिलचस्प इसकी जमीन है, उतनी ही उलझी हुई इसकी सियासत भी। यहां सत्ता का रास्ता कई बार जेल की सलाखों के बीच से होकर गुजरा है। जब कोई उम्मीदवार बैरक में बंद रहते हुए नामांकन दाखिल करता है और फिर वहीं कैदी लोकतंत्र के उत्सव में विजयी घोषित होता है तो सवाल उठता है, क्या बिहार में जेल जाना राजनीति की विफलता है या उसकी नई पहचान?
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 में कई प्रत्याशी जेल से चुनाव लड़ रहे हैं। इनमें महागठबंधन और एनडीए दोनों के उम्मीदवार शामिल हैं। मोकामा से जदयू के उम्मीदवार अनंत सिंह को बाहुबली नेता दुलारचंद यादव की हत्या के आरोप में गिरफ्तार किया गया है। इस वक्त, वह जेल से ही मैदान में हैं। उधर, महागठबंधन में दानापुर से राजद ने रीतलाल यादव को फिर से टिकट दिया है। वह भी कई दिनों से रंगदारी के आरोप में भागलपुर जेल में बंद हैं। 2020 में भी दानापुर सीट से रीतलाल यादव ने ही राजद के टिकट पर जीत दर्ज की थी।
वहीं, बिहार की सासाराम सीट से राजद ने सत्येंद्र साह को अपना उम्मीदवार बनाया है। वह भी फिलहाल जेल में बंद हैं। उन्हें 21 अक्टूबर को नामांकन करने के तुरंत बाद झारखंड पुलिस ने 2004 के एक बैंक लूटकांड मामले में गिरफ्तार कर लिया था। सत्येंद्र साह पर लूट, डकैती और आपराधिक षड्यंत्र समेत 20 से अधिक मामले दर्ज हैं।
बिहार में इन नेताओं को जेल से मिल चुकी है जीत
मोहम्मद शहाबुद्दीन : बाहुबली नेता शहाबुद्दीन ने 23 साल की उम्र में ही जेल से अपना पहला चुनाव लड़ा और जीत हासिल की। उन्होंने 1990 में विधानसभा चुनाव जीता और सिवान उनका किला बन गया। बाद में 2004 में भी उन्होंने जेल से ही सिवान सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा था, जिसमें जीत दर्ज की थी। वे राष्ट्रीय जनता दल के प्रमुख नेताओं में से एक थे।
अनंत सिंह : अनंत सिंह दो बार जेल से चुनाव जीत चुके हैं। 2015 में उन्होंने निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर जेल में रहते हुए मोकामा विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी। इसके अलावा, 2020 में भी वे जेल में रहते हुए राजद के टिकट पर मोकामा से मैदान में उतरे थे और जीत दर्ज की थी।
देवेंद्र दुबे : देवेंद्र दुबे बिहार के बड़े बाहुबली नेताओं में से एक थे। 1998 में उनकी गोली मारकर हत्या कर दी गई थी। 1995 के विधानसभा चुनाव में देवेंद्र ने समता पार्टी के उम्मीदवार के रूप में जेल से ही चुनाव लड़ा था और जीत दर्ज की थी।
आनंद मोहन : आनंद मोहन भी जेल में रहते हुए एक बार चुनाव जीत चुके हैं। 1996 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने शिवहर लोकसभा सीट से समता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी।
पप्पू यादव : राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव भी जेल से चुनाव जीत चुके हैं। 2004 के लोकसभा चुनाव में उन्होंने जेल से ही मधेपुरा सीट से चुनाव लड़ा और जीत दर्ज की थी।
बिहार में इन नेताओं को जेल से मिल चुकी है हार?
जगन्नाथ मिश्रा : 1996 के लोकसभा चुनाव में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्रा कांग्रेस के टिकट पर दरभंगा सीट से मैदान में उतरे थे। तब उन्हें चारा घोटाला के मामले में गिरफ्तार किया गया था। जेल से उन्होंने पर्चा तो भर दिया, लेकिन हार का सामना करना पड़ा।
रीतलाल यादव : रीतलाल यादव ने साल 2010 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में दानापुर सीट से विधानसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन जीत नहीं दर्ज कर पाए थे।