अखिलेश और ममता के साथ से क्या बदलेगी सियासत : ‘कांग्रेस को छोड़ विपक्षी दलों को एकजुट करनरे में जुटीं बंगाल की मुख्यमंत्री
कोलकता। तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो और पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल में लोकसभा चुनाव अकेले लड़ने का ऐलान किया है। ममता बनर्जी ने कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी बनाते हुए बीजेपी विरोधी दलों को एकजुट करने की कवायद शुरू कर दी है। इसी सिलसिले में तीन राज्यों के विधानसभा चुनाव के बाद ममता बनर्जी और समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव की पहली बैठक होने वाली है। इस बैठक में इस साल होने वाले तीन विधानसभा चुनावों और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव को लेकर रणनीति बनाई जाएगी। यहां यह महत्वपूर्ण है कि समाजवादी पार्टी ने भी उत्तर प्रदेश में तृणमूल कांग्रेस की तरह अकेले चुनाव लड़ने कर दिया है।
ऐसे में ममता बनर्जी ने पहल महत्वपूर्ण मानी जा रही है. आज ही समाजवादी पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की दो दिवसीय बैठक में भी कोलकाता में शुरू हो रही है। इस बैठक में पार्टी की रणनीति पर मुहर लगेगी. वहीं, सीएम ममता बनर्जी ने अगले सप्ताह ओडिशा के दौरे पर जाने वाली है। उस दौरे के दौरान वह ओडिशा के सीएम नवीन पटनायक के साथ भी मुलाकात करेंगी।
तृणमूल कांग्रेस ने कांग्रेस ने बना ली है दूरी
गोवा विधानसभा चुनाव के बाद त्रिपुरा और मेघालय विधानसभा चुनाव के दौरान तृणमूल कांग्रेस और कांग्रेस अलग-थलग दिखे थे। राहुल गांधी ने सीधे तौर पर तृणमूल कांग्रेस पर बीजेपी की मदद करने का आरोप लगाया था। उसके बाद लगातार दोनों पार्टियों के बीच तकरार चल रही है। राहुल गांधी के बयान का तृणमूल कांग्रेस ने जवाब देते हुए कहा था कि कांग्रेस पूरी तरह से फेल हो गई है। हाल में संसद सत्र के दौरान कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सांसद अलग-थलग दिखे।तृणमूल कांग्रेस के नेता कांग्रेस के नेतृत्व में हुई न तो विपक्षी पार्टियों की बैठक में हिस्सा लिया और न ही उनके आंदोलन के साथ रहे। तृणमूल कांग्रेस के नेताओं ने अडानी के मुद्दे पर अलग से संसद भवन के बाहर प्रदर्शन किया।
ममता बनर्जी ने पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव में जीत के बाद भी विरोधी दलों को एकजुट करने की कोशिश की थी। राष्ट्रपति चुनाव के लिए विपक्ष का यशवंत सिन्हा उम्मीदवार भी बने थे, लेकिन उपराष्ट्रपति के चुनाव पर तृणमूल कांग्रेस अलग-थलग पड़ गयी थी। उसके बाद से तृणमूल कांग्रेस पर भाजपा के साथ सेटिंग के आरोप लगे थे। माकपा, कांग्रेस, भाजपा और क्षेत्रीय स्तर के राजनीतिक दलों सहित कई राजनीतिक दलों के नेताओं ने कहना शुरू कर दिया है कि राष्ट्रीय राजनीति में तृणमूल कांग्रेस अकेले पड़ गई है, लेकिन हाल के दिनों में ममता बनर्जी ने फिर से कोशिश शुरू की है। राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि ममता बनर्जी भाजपा और कांग्रेस से दूरी बनकर तीसरे मोर्चा के गठन की ओर बढ़ रही है। हालांकि कांग्रेस का आरोप है कि इससे भाजपा का फायदा होगा और ममता बनर्जी भाजपा का फायदा पहुंचा रही हैं।
अखिलेश और ममता के साथ से क्या बदलेगी सियासत
अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव ममता बनर्जी के करीब आए हैं। अखिलेश ने भी कहा है कि वह अब तक कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगे और कुछ हद तक उन्हें लगता है कि राष्ट्रीय राजनीति के लिहाज से ममता बनर्जी के साथ जाना बेहतर है। लेकिन 1 मार्च को डीएमके प्रमुख एमके स्टालिन के जन्मदिन पर वे कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे के साथ ही मंच पर नजर आए। झारखंड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक अध्यक्ष शिबू सोरेन के साथ कांग्रेस के हमेशा अच्छे संबंध रहे हैं, इसलिए यह माना जा सकता है कि जीएमएम ममता बनर्जी के कांग्रेस छोड़ने के आह्वान का जवाब नहीं देगी।
हाल के चुनावों से ताकतवर बनकर उभरे हैं केजरीवाल
जिस तरह से आप पश्चिम बंगाल में एक संगठन बनाने की कोशिश कर रही है, उसमें अरविंद केजरीवाल भी ममता का समर्थन नहीं करते दिख रहे हैं। ऐसे में ममता बनर्जी के लिए यह बड़ी चुनौती होगी कि वह बीजेपी विरोधी दलों को एकजुट करे, क्योंकि पंजाब की जीत और गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद अरविंद केजरीवाल भी दूसरे राज्य में विस्तार और राष्ट्रीय राजनीति में एंट्री की महत्वाकांक्षा पाले हुए हैं। ऐसे में देश की सियासत में कई कुनबे हैं, जिनके लोकसभा चुनाव के पहले एकजुट करना होगा। कोशिश पहले भी हुई थी और फिर से शुरू हुई है।यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि यह कोई मंच बन पाता या फिर केवल ख्याली पुलाब ही बनकर रह जाएगा।
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