मालदा। महज 18 वर्ष की उम्र में फांसी के फंदे को गले लगाया क्रांतिवीर खुदीराम बोस ने आज वही तारीख है, जब अंग्रेजों ने 18 साल के युवा की आंखों में भारत की आजादी का जुनून देखा था। 11 अगस्त 1908 को क्रांतिकारी खुदीराम बोस हंसते-हंसते फांसी चढ़ गए थे। इस साल हम ब्रिटिश राज से आजादी का 75वां स्वतंत्रता दिवस मना रहे हैं, इस आजादी के अनेकों देशप्रेमियों ने अपनी जान की बाजी लगाई थी, उन्हीं में एक थे खुदीराम बोस। खुदीराम बोस स्वतंत्रता संघर्ष के इतिहास में सबसे कम उम्र के क्रांतिकारियों में से एक थे
आज महान क्रांतिकारी के आत्म बलिदान दिवस के अवसर । गुरुवार को विवेकानंद शिशु मंदिर और भारत स्काउट्स एंड गाइड्स की ओर से क्रांतिवीर खुदीराम बोस याद करते हुए श्रद्धांजली दी गयी। साथ ही ओल्ड मालदा के बाचामारी क्षेत्र में स्वैच्छिक रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया। गुरुवार को विवेकानंद शिशु मंदिर और भारत स्काउट्स एंड गाइड्स की ओर से मालदा जिला शाखा के सहयोग से रक्तदान शिविर का आयोजन किया गया था। स्कूल के शिक्षकों और अभिभावकों सहित 60 लोगों ने स्वेच्छा से रक्तदान किया। शिविर में विवेकानंद शिशु मंदिर प्रमुख आचार्य पंकज सरकार, जिला उप स्वास्थ्य अधिकारी डॉ अमिताभ मंडल, भारत स्काउट्स एंड गाइड्स मालदा जिला रक्तदान शिविर संयोजक अनिल कुमार साहा आदि उपस्थित थे।
आपको बता दें कि खुदीराम बोस का जन्म 3 दिसंबर, 1889 को बंगाल में मिदनापुर जिले के हबीबपुर गांव में हुआ था। खुदीराम के पिता त्रिलोकक्यनाथ बसु नाराजोल स्टेट के तहसीलदार थे। मां लक्ष्मीप्रिया देवी ने बेटे को जन्म देने के बाद उसकी अकाल मृत्यु को टालने के लिए किसी ओर को दे दिया था, जिसे बाद में बहन ने तीन मुट्ठी खुदी यानी चावल देकर वापस लिया था, क्योंकि बच्चे को खुदी देकर वापस लिया गया था इसलिए नाम खुदीराम रखा गया। बहुत कम उम्र में उन्होंने अपने माता-पिता को खो दिया था। उनकी बड़ी बहन ने ही उनकी परवरिश की।
अपने स्कूल के दिनों में खुदीराम बोस आजादी के लिए आंदलनों में शामिल हो गए थे। 8वीं क्लास में ही वे 1905 में बंग भग विरोधी आंदोलन में कूद पड़े और बंगाल विभाजन का विरोध किया। सत्येन बोस के नेतृत्व में खुदीराम बोस ने अपना क्रांतिकारी जीवन शुरू किया। 30 अप्रैल, 1908 को खुदीराम बोस और प्रफुल्ल कुमार ने किंग्सफोर्ड की बग्घी पर बम फेंका लेकिन बम गलत बग्घी पर गिर गया। इस हमले में वकील प्रिंगल केनेडी की पत्नी और बेटी मारी गईं, इस घटना के बाद उनके साथी प्रफुल्ल कुमार चाकी ने तो खुद को गोली मार ली लेकिन खुदीराम पकड़े गए। मुज़फ्फरपुर जेल में जिस मजिस्ट्रेट ने फांसी देने का आदेश सुनाया था। इस वक्त कई पत्रकारों ने लिखा कि कैसे खुदीराम बोस निर्भीक होकर फांसी के तख्ते की तरफ बढ़ा और हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर लटक गया।।
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