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आर-पार की चुनावी लड़ाई तो बंगाल में

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दीपेंद्र कुमार सिंह

देश के कुल पांच राज्यों में विधानसभा के चुनाव हो रहे हैं, लेकिन हर किसी की निगाह पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव पर टिकी हुई हैं। यहां दो चरणों में 60 सीटों के लिए चुनाव कराये जा चुके हैं, जिसमें नंदीग्राम की वह सीट भी शामिल है, जिस पर स्वयं मुख्यमंत्री ममता बनर्जी लड़ रही हैं। इस सीट पर मुख्यमंत्री की प्रतिष्ठा दाव पर लगी हुई है। दरअसल बंगाल चुनाव में जीत व हार के कई मायने हैं। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जहां हैट्रीक लगाने का सपना देख रही हैं, वहीं बीजेपी बंगाल विधानसभा चुनाव जीतकर जनसंघ के संस्थापक डाॅक्टर श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि देना चाहेगी। 2016 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी कुछ खास कमाल नहीं दिखा पायी थी और वह यहां से महज 3 सीट ही जीत पायी थी। इस बार बीजेपी जहां तीन सीटों से आगे बढ़ते हुए बंगाल की सत्ता पर कब्जा कर लेने का दावा कर रही है, वहीं तृणमूल कांग्रेस के राजनीतिक सलाहकार प्रशांत किशोर की माने तो बीेजेपी किसी भी सूरत में 100 से अधिक सीट नहीं जीत पायेगी। अब देखना है कि बाजी किसके हाथ लगती है और इसके लिए 2 मई का इंतजार करना होगा। इससे इतर यह कहना मुनासिब होगा कि तृणमूल कांग्रेस को छोड़कर जिस तरह से नेता पाला बदलते हुए बीजेपी में शामिल हो रहे हैं, उससे कहीं न कहीं एक संदेश जा रहा है कि तृणमूल कांग्रेस कमजोर होती चली जा रही है। वहीं तृणमूल कांग्रेस की ओर से उन नेताओं के प्रति किसी भी प्रकार की संवेदना जताने के बजाय यह कहा जा रहा है कि जिसे भी जाना है वह जल्द से जल्द चला जाये। लेकिन यह कहते हुए तृणमूल कांग्रेस के नेता शायद इस बात को भूल गये कि 2017 में जिस मुकुल राय को उन्होंने छोड़ा था, उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनाव में कमाल की रणनीति दिखाते हुए 42 में 18 सीट बीजेपी के लिए जीत ली थी। मुकुल राय के जाने के बाद नुकसान की भरपाई अभी हुई भी नहीं थी कि तृणमूल कांग्रेस के बड़े कद के नेता शुवेंदु अधिकारी ने विधानसभा चुनाव 2021 से ठीक पहले तृणमूल कांग्रेस को बाय बाय करते हुए बीजेपी का दामन थाम लिया। यह वहीं शुवेंदु अधिकारी हैं, जिन्होंने नंदीग्राम के आंदोलन में बड़ी भूमिका अदा की थी। कहा तो यह भी जाता है कि बंगाल की राजनीति में करीब 40 सीटों पर अधिकारी परिवार अपना प्रभुत्व रखता है। अब शुभेंदु के भाजपा के पाले में जाने के बाद कहानी कहीं न कहीं बदली बदली सी नजर आ रही है। नंदीग्राम विधानसभा सीट पर शुवेंदु के खिलाफ सीधे मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के भिड़ जाने से वहां की लड़ाई भी काफी दिलचस्प हो गयी है। यानी कि एक बात तो साफ है कि यहां या तो ममता हारेंगी या फिर शुवेंदु अधिकारी की हार होगी। यदि ममता बनर्जी हारती हैं तो उनका खेल खत्म हो जायेगा और शुवेंदु कही न कहीं राज्य की राजनीति में बड़ी भूमिका में होंगे। लेकिन यदि शुवेंदु हारते हैं तो उनके लिए आगे की राजनीति कुछ मुश्किल हो जायेगी। इधर माकपा व कांग्रेस गठबंधन के लिए 2021 का विधानसभा चुनाव एक अवसर की तरह है। क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि बीजेपी व तृणमूल से नाराज लोग गठबंधन के पाले में जा सकते हैं। गठबंधन के नेताओं को भी पूरी उम्मीद है कि जनता पहले से अधिक सीट उन्हें देगी तथा ऐसा भी हो सकता है कि यदि त्रिशंकु विधानसभा की स्थिति बन जाये तो गठबंधन की भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जायेगी। जिस तरह से राज्य में कड़ी चुनावी प्रतिस्पर्धा हो रही है, उसमें इससे इंकार नहीं किया जा सकता है कि सत्ता की चाभी गठबंधन के पाले में भी आ सकती है। हालांकि इसके लिए अभी कुछ दिन और यानी 2 मई का इतंजार करना होगा। क्योंकि लोकतंत्र में जनता सबसे बड़ी होती है। जनता जिसे चाहेगी उसे सत्ता में लायेगी। सत्ता के इस खेल में सभी पार्टियां अपने दांव बखूबी आजमां रही है। अब देखना है कि रेस में नंबर 1 कौन आता है। कौन नवान्न के चेयर पर विराजमान होता है? लेकिन अंदरखाने की माने तो बंगाल में ऐसा कुछ होने जा रहा है जिसकी उम्मीद शायद ही किसी ने की हो।


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