मुंबई। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को चुनाव आयोग के उस आदेश पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, जिसमें एकनाथ शिंदे गुट को असली शिवसेना के रूप में मान्यता दी गई थी। उद्धव ठाकरे खेमे की तरफ से शीर्ष कोर्ट में याचिका दाखिल कर चुनाव आयोग के फैसले को चुनौती दी गई थी और मांग की गई थी की शिंदे गुट को ‘शिवसेना’ नाम और पार्टी का चिन्ह ‘धनुष-बाण’ का उपयोग करने से तत्काल रोका जाये।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जेबी परदीवाला की पीठ ने आज ठाकरे गुट की याचिका पर सुनवाई की। हालांकि, पीठ ने पुणे के चिंचवाड़ और कस्बा पेठ उपचुनाव में उद्धव ठाकरे गुट को ‘शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे)’ नाम और ‘जलता मशाल’ प्रतीक का उपयोग करने की अनुमति दी है।
उद्धव ठाकरे गुट की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट से अंतरिम राहत देने का आग्रह किया। सिब्बल ने मामले पर निर्णय होने तक यथास्थिति बनाये रखने का आदेश पारित करने की गुजारिश की। हालांकि कोर्ट ने इसे नहीं माना।
कोर्ट ने कहा, “चुनाव आयोग का आदेश एक चिन्ह तक ही सीमित है। कुछ ऐसा जो चुनाव आयोग के आदेश का हिस्सा हो, उस पर हम निर्णय ले सकते हैं। लेकिन हम चुनाव आयोग के आदेश पर रोक लगाने का आदेश पारित नहीं कर सकते है। हम इस स्तर पर आदेश पर रोक नहीं लगा सकते है। उन्होंने (शिंदे गुट) आयोग में सफलता पाई है।”
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में नोटिस जारी कर शिंदे गुट से जवाब मांगा है और मामले को दो सप्ताह के बाद सूचीबद्ध किया है। जबकि इस अवधि में सीजेआई चंद्रचूड़ ने शिवसेना (शिंदे गुट) द्वारा उद्धव गुट के विधायकों पर कोई एक्शन नहीं लेने के लिए कहा गया है।
चुनाव आयोग ने शुक्रवार (17 फरवरी) को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री शिंदे के नेतृत्व वाले समूह को ‘शिवसेना’ नाम और उसका चुनाव चिह्न ‘धनुष-बाण’ आवंटित किया। इससे उद्धव ठाकरे खेमे को बहुत बड़ा झटका लगा।
बता दें कि दिवंगत बालासाहेब ठाकरे द्वारा स्थापित शिवसेना में पिछले साल जून महीने में सबसे बड़ी बगावत हुई। जिसके बाद शिवसेना दो गुटों में विभाजित हो गई, एक का नेतृत्व ठाकरे कर रहे है, जबकि दूसरे का एकनाथ शिंदे। यहां तक की जून 2022 में उद्धव ठाकरे को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा और उनकी जगह शिंदे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने। तीन सदस्यीय चुनाव आयोग ने शिंदे द्वारा दायर छह महीने पहले एक याचिका पर बीते शुक्रवार को सर्वसम्मत आदेश पारित किया और कहा कि उसने शिंदे गुट को शिवसेना के तौर पर मान्यता दी है। आयोग ने स्पष्ट कहा कि इस फैसले के पीछे उसने विधायक दल में पार्टी के संख्या बल पर गौर किया है।
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