क्या धरती में समा जाएगा जोशीमठ, मिट जाएगा नामोनिशान, उत्तराखंड ही नहीं पूरे देश के लिए बढ़ गया बड़ा खतरा !
उत्तराखंड में पवित्र बद्रीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब पहुंचने के अंतिम पड़ाव जोशीमठ में रहने वाले लोग दहशत में हैं। इसका कारण है की जहां घरों और होटल में दरारें आ गयी है, जो लगातार बढ़ती जा रही है। गेटवे ऑफ हिमालय कहे जाने वाले इस शहर में अब धरती फाड़कर जगह-जगह से पानी निकलने लगा है। यहां तक कि इसके चलते इमारतें भी झुक रही है। ऐसा लग रहा है कि जल्द ही प्रलय आने वाला है। यही कारण है कि पवित्र बद्रीनाथ धाम और हेमकुंड साहिब पहुंचने के अंतिम पड़ाव जोशीमठ में रहने वाले लोग दहशत में हैं।
कुछ लोग अपना घर छोड़कर इधर-उधर शिफ्ट हो रहे हैं। वहीं, आपदा प्रबंधन विभाग ने यहां होटल में यात्रियों के रुकने पर रोक लगा दी है और जल निकासी का प्लान और सीवर सिस्टम का काम पूरा करने की तैयारी की है। ऐसे में सवाल उठ रहा है कि क्या क्या धरती से जोशीमठ का नामों निशान मिट जाएगा।
आपको बात दें कि दरअसल जोशीमठ गेटवे ऑफ हिमालय’ के नाम से मशहूर है। यह उत्तराखंड के चमोली जिले में स्थित है। साथ ही यह बद्रीनाथ जैसे तीर्थ केंद्रों का भी प्रवेश द्वार है। हेमकुंड साहिब, औली, फूलों की घाटी आदि स्थानों पर जाने के लिए जोशीमठ से ही होकर गुजरना पड़ता है। यहां से भारत चीन (तिब्बत) की सीमा सिर्फ 100 किलोमीटर पर है। लिहाजा ऐसे में यह धार्मिक, पौराणिक और एतिहासिक की नहीं बल्कि स्टैटिजीकली भी महत्वपूर्व है।
मगर पिछले कुछ वर्षों से जोशीमठ में भू-धसांव शुरू हो गया है। हालाँकि जोशीमठ में भू-धसांव की घटना अचानक नहीं है बल्कि इस खतरे को लेकर साल 1976 में भी भविष्यवाणी कर दी गई थी। सालों से यहां दरारें है, लेकिन बीते कुछ दिनों में यह दरारें तेजी से बढे हैं। 1976 में तत्कालीन गढ़वाल कमिश्नर एमसी मिश्रा की अध्यक्षता वाली समिति ने एक रिपोर्ट दी थी, जिसमें जोशीमठ पर खतरे का जिक्र किया गया था। इतना ही नहीं बल्कि साल 2001 और 2006 में भी अलग अलग रिपोर्ट्स में इसे लेकर आगाह किया गया था।
गौरतलब है कि उत्तराखंड का जोशीमठ तब से धंस रहा है जब ये यूपी का हिस्सा हुआ करता था। उस समय गढ़वाल के आयुक्त रहे एमसी मिश्रा की अध्यक्षता में एक 18 सदस्यीय समिति गठित की गई थी। इसे मिश्रा समिति नाम दिया गया था, जिसने यह इस बात की पुष्टि की थी कि जोशीमठ धीरे-धीरे धंस रहा है। समिति ने भूस्खलन और भू धसाव वाले क्षेत्रों को ठीक कराकर वहां पौधे लगाने की सलाह दी थी। इस समिति में सेना, आईटीपी समेत बीकेटीसी और स्थानीय जनप्रतिनिध शामिल थे। 1976 में तीन मई को इस संबंध में बैठक भी हुई थी, जिसमें दीर्घकालिक उपाय करने की बात कही गई थी।
यूं तो जोशमठ का धंसना कई साल पहले ही शुरू हो चुका है, लेकिन 2020 के बाद से समस्या ज्यादा बढ़ गई है। फरवरी 2021 में बारिश के बाद आई बाढ़ से सैकड़ों मकानों में दरार आ गई। 2022 सितंबर में उत्तराखंड के राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से विशेषज्ञों की टीम ने सर्वे किया। खराब सीवरेज, वर्षा जल और घरेलू अपशिष्ट जल के जमीन में रिसने से मिट्टी में उच्च छिद्र-दबाव की स्थिति पैदाहोने की बात कही गई इसके अलावा अलकनंदा के बाएं किनारे में कटाव को जोशीमठ शहर पर हुए प्रतिकूल प्रभाव का कारण माना जा रहा है। वैज्ञानिकों ने कहा कि जोशीमठ शहर में ड्रेनेज सिस्टम नहीं है। यह शहर ग्लेशियर के रोमैटेरियल पर है। ग्लेशियर या सीवेज के पानी का जमीन में जाकर मिट्टी को हटाना, जिससे चट्टानों का हिलना, ड्रेनेज सिस्टम नहीं होने से जोशीमठ का धंसाव बढ़ा है।
एक्सपर्ट्स का यह भी कहना है कि उत्तराखंड के ज्यादातर गांव 1900 से 2500 मीटर की ऊंचाई पर बसे हैं। यह गांव भारतीय और तिब्बती प्लेट पर बेस हुए हैं। लिहाजा ऐसे में यहां भूकंप भी आते जहां, साथ ही अलकनंदा और धौलीगंगापानी भी जोशी मठ के नीचे से भू कटाव कटाव कर रही है, जिसके चलते यह स्थिति बनी. साथ ही पिछले दो दशक में यहां अंधाधुंध विकास हुआ। जिसके चलते निर्माण कार्य और टनल के निर्माण कार्य किए गए। जिसके चलते यहां का प्राकर्तिक स्वरुप भी बिगाड़ा है। जिसके चलते आज यह हालात बन गए हैं।
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