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क्या नेपाल वाकई भारत में विलय चाहता था ? पंडित जवाहरलाल नेहरू ने किया था अस्वीकार, जाने सच्चाई

नई दिल्ली: नेपाल में हालिया राजनीतिक संकट और केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बीच एक ऐतिहासिक दावा फिर से चर्चा में है — क्या नेपाल 1951 में भारत में विलय करना चाहता था, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने. . .

नई दिल्ली: नेपाल में हालिया राजनीतिक संकट और केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बीच एक ऐतिहासिक दावा फिर से चर्चा में है — क्या नेपाल 1951 में भारत में विलय करना चाहता था, जिसे तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने ठुकरा दिया? यह दावा वर्षों से सोशल मीडिया और कुछ लेखों में दोहराया जाता रहा है, लेकिन ऐतिहासिक तथ्यों और विशेषज्ञों की राय इस दावे को लेकर संदेह प्रकट करती है।

प्रणब मुखर्जी की आत्मकथा में दावा

पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने अपनी पुस्तक “The Presidential Years” में यह उल्लेख किया कि जवाहरलाल नेहरू ने नेपाल के विलय प्रस्ताव को आगे नहीं बढ़ाया। उन्होंने लिखा कि यदि उस समय नेहरू की जगह इंदिरा गांधी होतीं, तो शायद वह इस अवसर का लाभ उठातीं — जैसा कि उन्होंने 1975 में सिक्किम के मामले में किया था।

मुखर्जी का यह कथन उनके अध्याय “My Prime Ministers: Different Styles, Different Temperaments” में दर्ज है, जिसमें वे विभिन्न प्रधानमंत्रियों की नेतृत्व शैली की तुलना करते हैं।


1950 की भारत-नेपाल संधि की पृष्ठभूमि

नेपाल और भारत के बीच 1950 में एक महत्वपूर्ण शांति और मित्रता संधि हुई थी, जिसमें राजनीतिक, आर्थिक और रक्षा सहयोग की नींव रखी गई। इस पर भारत के चंद्रशेखर प्रसाद नारायण सिंह और नेपाल के तत्कालीन प्रधानमंत्री मोहन शमशेर जंग बहादुर राणा ने हस्ताक्षर किए थे।

इसी संधि और उसके बाद की घटनाओं के कारण यह धारणा बनी कि नेपाल भारत में विलय करना चाहता था।

राजा त्रिभुवन की भूमिका

1951 में नेपाल के राजा त्रिभुवन वीर विक्रम शाह ने राणा शासन को समाप्त करने और संवैधानिक लोकतंत्र की बहाली का नेतृत्व किया। इस दौरान नेपाली कांग्रेस और भारत के बीच मजबूत संबंध स्थापित हुए।

कई लोग त्रिभुवन की भारत-निर्भरता और लोकतंत्र समर्थक प्रयासों को विलय की मंशा से जोड़ते हैं। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि उन्होंने कभी भारत में औपचारिक विलय का प्रस्ताव दिया था।

इतिहासकार क्या कहते हैं?

कई इतिहासकार और राजनयिक इस कथित विलय प्रस्ताव को एक मिथक मानते हैं। उनका कहना है कि भारत के विदेश मंत्रालय के अभिलेखों में ऐसा कोई सबूत नहीं है जिससे यह साबित हो सके कि राजा त्रिभुवन ने कभी भारत में शामिल होने की पेशकश की थी।

विशेषज्ञों के अनुसार, नेहरू का झुकाव नेपाल की संप्रभुता बनाए रखने की ओर था। वे ब्रिटेन और अमेरिका जैसे पश्चिमी देशों की संभावित प्रतिक्रियाओं को लेकर सतर्क थे और मानते थे कि कोई भी राष्ट्र अपनी स्वतंत्रता और पहचान नहीं खोना चाहता।

भारत में नेपाल के पूर्व राजदूत की राय

नेपाल के भारत में पूर्व राजदूत लोक राज बराल के अनुसार, उन्हें ऐसा कोई प्रमाण नहीं मिला जिससे यह कहा जा सके कि राणा या त्रिभुवन नेपाल का भारत में विलय चाहते थे।

हाँ, उन्होंने यह अवश्य स्वीकारा कि राजा त्रिभुवन भारत के साथ निकट सहयोग के पक्षधर थे। उन्होंने यह भी बताया कि सरदार पटेल द्वारा नेपाल को भारत में मिलाने की चर्चा सिर्फ एक अनुमान रही है, जिसका कोई आधिकारिक प्रमाण नहीं है।

नेहरू का रुख नेपाल की स्वतंत्रता और संप्रभुता के पक्ष में था

नेपाल के भारत में विलय की कहानी इतिहास के दस्तावेजों में नहीं मिलती। यह विचार शायद कुछ व्यक्तियों के दृष्टिकोण या अटकलों पर आधारित रहा हो, लेकिन जवाहरलाल नेहरू का रुख स्पष्ट रूप से नेपाल की स्वतंत्रता और संप्रभुता के पक्ष में था।

ऐसे में यह कहना कि नेपाल भारत में शामिल होना चाहता था और नेहरू ने इनकार कर दिया, एक अपुष्ट और विवादास्पद दावा है — जिसकी पुष्टि ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं करते।