ज्ञानवापी मस्जिद सर्वे पूरा, मूर्तियां और कलश से लेकर शिवलिंग तक मिले, आसान भाषा में समझे आखिर क्या है पूरा विवाद
वाराणसी। वाराणसी के ज्ञानवापी मस्जिद में तीन दिन तक चले सर्वे का काम खत्म हो गया है। तीसरे दिन सर्वे टीम ने नंदी की मूर्ति के पास के कुएं की पड़ताल हुई। हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन का दावा है कि कुएं के अंदर शिवलिंग मिला और वो कब्जे में लेने के लिए सिविल कोर्ट जा रहे हैं। हालांकि हिंदू पक्ष के दावे को मुस्लिम पक्ष ने खारिज कर दिया।
तीसरे दिन सर्वे टीम ने उस कुएं की पड़ताल की, जो नंदी की मूर्ति के पास है। प्राचीन कुएं की वीडियोग्राफी के लिए अंदर वाटर प्रूफ कैमरा डाला गया। तीसरे राउंड के साथ ही सर्वे का काम खत्म हो गया। तीन दिनों के सर्वे में ज्ञानवापी मस्जिद में तहखाने से लेकर गुंबद और पश्चिमी दीवारों की वीडियोग्राफी हुई। अब यह सबूत कोर्ट के सामने पेश किया जाएगा।
कोर्ट ने दिया वीडियोग्राफी का आदेश
दरअसल काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर विवाद चर्चा में बना हुआ है। लगातार इस मस्जिद को लेकर सवाल हो रहे हैं। दरअसल हाल ही में कोर्ट ने एएसआई को निर्देश दिया है कि वह मस्जिद के भीतर वीडियोग्राफी करे और यहां सर्वे करे। कोर्ट ने 17 मई तक इस सर्वे को पूरा करके इसकी रिपोर्ट देने को कहा है। ऐसे में आखिर यह पूरा विवाद क्या है और क्यों यह चर्चा में है इसे विस्तार से और बेहद सरल भाषा में हम आपको समझाने की कोशिश करेंगे।
ज्ञानवापी मस्जिद की बात करें तो वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर के बिल्कुल बगल में स्थित है। 8 अप्रैल 2021 में उत्तर प्रदेश की सिविल कोर्ट में यह मामला पहुंचा और कोर्ट ने एएसआई को निर्देश दिया कि वह ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के भीतर सर्वे करे और पता करने की कोशिश करे कि क्या यहां पहले मंदिर था, जिसके ऊपर मस्जिद बनाया गया है। सिविल कोर्ट में यह याचिका स्वंयभू भगवान विश्वेश्वर के भक्तों की ओर से दायर की गई थी। जिसमे दावा किया गया था कि 1669 में मंदिर को तोड़कर इसके ऊपर मस्जिद को बनाया गया है। इसे औरंगजेब ने तोड़कर मस्जिद बनवाया था। याचिकाकर्ताओं की मांग है कि मस्जिद को तोड़कर इस पर मंदिर बनाया जाए।
मुगलकाल में इस मंदिर को तोड़े जाने के बाद इसपर मस्जिद बनाया गया था। इसके कुछ साल बाद ही सवाई जयसिंह द्वितीय ने यहां पर एक अलग मंदिर बनवा दिया था, जिसे आज काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। लेकिन लोगों का विश्वास है कि मूल मंदिर उस जगह पर है जहां पर यह मस्जिद बनी है, लिहाजा इसे तोड़कर फिर से यहां पर मंदिर को बनाया जाए।
बाबरी मस्जिद जैसा ही विवाद
यह पूरा मामला बाबरी मस्जिद विवाद जैसा ही है। बाबरी मस्जिद मामले में भी कोर्ट ने एएसआई को कहा था कि यहां पर सर्वे करके पता लगाया जाए कि क्या यहां पर मंदिर था। यहां याद रखने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट ने 2019 के अपने फैसले में एएसआई के साक्ष्यों को पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया था और कहा था यह निर्णायक तथ्य नहीं हैं जिसके आधार पर फैसला दिया जा सके। हालांकि कोर्ट ने यह जरूर कहा था कि हम मानते हैं कि यहां पर कुछ पुराने साक्ष्य जरूर हैं। इसी तरह से ज्ञानवापी मस्जिद का विवाद भी चर्चा में आया है।
क्या है हिंदू पक्ष की मांग
ज्ञानवापी मस्जिद की दीवारों में साफ तौर पर दिखता है कि इसके पिलर हिंदू मंदिर से मिलते-जुलते लगते हैं। इस वक्त जो केस दायर किया गया है इसमे कहा गया है कि मस्जिद को हिंदू पक्ष को सौंप दिया जाए। 1991 में भी इस मंदिर को लेकर केस दायर किया गया था, जिसे खारिज कर दिया गया था। लेकिन अलग-अलग कोर्ट में इस मामले को लेकर लगातार याचिका दायर की गई। जिसके बाद इस पूरे मामले पर कोर्ट ने तकरीबन 20 साल का स्टे लगा दिया था। ऐसे में जब स्टे खत्म हुआ तो एक बार फिर से यह पूरा मामला कोर्ट पहुंच गया।
क्या कहना है कि मुस्लिम पक्ष का
8 अप्रैल 2021 को वाराणसी की स्थानीय कोर्ट ने एएसआई को निर्देश दिया है कि वह पता लगाए कि मस्जिद के नीचे मंदिर था या नहीं और एएसआई के सर्वे को हम साक्ष्य मानेंगे। कोर्ट के आदेश के बाद मुस्लिम पक्ष ने हाई कोर्ट के स्टे ऑर्डर का हवाला देते हुए कहा कि आखिर कैसे इसकी फिर से सुनवाई की जा सकती है।
क्या एएसआई को सौंपा जा सकता है?
यहां गौर करने वाली बात यह है कि अगर ज्ञानवापी मस्जिद को एएसआई को सौंपा जाता है तो भी एएसआई स्मारक के मूल स्वरूप में बदलाव नहीं कर सकती है। वह सिर्फ इसका रखरखाव कर सकती है। हालांकि एक विकल्प केंद्र सरकार के पास जरूर है कि वह इस बिल्डिंग को अपने पास लेकर इसे किसी प्राइवेट पार्टी को दे सकती है। लेकिन इसको लेकर संवैधानिक सवाल खड़े हो सकते हैं और विवाद भी पैदा हो सकता है।
हिंदू पक्ष का तर्क
हिंदू पक्ष कहना है कि 1991 का कानून गलत है, यह संविधान के खिलाफ है। हिंदू पक्षा का कहना है कि यह मौलिक अधिकारों का हनन है। अनुच्छेद 25-26 के तहत संविधान यह अधिकार देता है कि आप अपने धर्म और संस्कृति को संरक्षित कर सकते हैं उसका प्रचार प्रसार कर सकते हैं। लेकिन 1991 एक्ट की वजह से इस अधिकार का उल्लंघन हो रहा है। ऐसे में हिंदू पक्ष 1991 के पूरे एक्ट को ही चुनौती दे रहा है। यहां समझने वाली बात यह है कि सुप्रीम कोर्ट के आर्टिकल 142 के तहत अधिकार है कि वह कोई भी ऑर्डर दे सकता है ताकि वह जनहित में संविधान को लागू कर सके।
हिंदू पक्ष का मंदिर होने का दावा
हिंदू पक्ष के वकील विष्णु जैन का कहना है कि नंदी भगवान की प्रतिमा आज भी काशी विश्वनाथ मंदिर के पास है, नंदी का मुंह मस्जिद की ओर है। नंदी का मुंह हमेशा शिवमंदिर की ओर होता है। इससे साफ है कि मंदिर मस्जिद के भीतर ही है। मस्जिद के भीतर ज्ञानकूप और मंडप है। मस्जिद के ऊपर जो गुंबद हैं वो पश्चिमी दीवार पर खड़े हैं और पश्चिमी दीवार हिंदू मंदिर का हिस्सा है। मस्जिद की पश्चिमी दीवार पर ब्रह्म कमल है, पश्चिमी दीवार पर बना गुंबद हिंदू कलाकृति की दीवार है और इसके ऊपर मस्जिद बना है जोकि साफ दिखता है।
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