बैतूल। मध्यप्रदेश के बैतूल जिले के मंडावी गांव में 400 फीट गहरे बोरवेल में गिरे 8 साल का मासूम तन्मय साहू जिंदगी की जंग हार गया है। नन्हा तन्मय करीब 84 घंटे बोरवेल फंसा था। एक बार फिर बोरवेल के गड्ढे में फंसकर बच्चे की जान चले जाने से देशभर में फिर बहस तेज हो गई है कि बार- बार होती ऐसी घटनाओं के बाद भी आखिर क्यों गड्ढो को क्यों रहते नहीं पाटा जा रहा है। बहरहाल मध्यप्रदेश का तन्मय साहू दुनिया छोड़कर जा चुका है,लेकिन लोग छत्तीसगढ़ राहुल साहू को याद कर रहे हैं,जिसने 105 घंटे बोरवेल के गड्ढे में फंसने के बावजूद मौत को मात दी थी।
सबको रुलाकर रूठ गया तन्मय
मध्यप्रदेश के बैतूल में मातम का माहौल है। 8 साल का मासूम तन्मय साहू 3 दिन पूर्व दोस्तों के साथ खेलते हुए 400 फीट गहरे बोरवेल में गिर गया था। तन्मय साहू बचाने के लिए रेस्क्यू ऑपरेशन चलाया जा रहा था,लेकिन सुंरग के रास्ते में चट्टान फंसने से बचाव अभियान में देरी हुई। शनिवार तड़के 5 बजे तन्मय को बाहर निकाला गया, जहां उसे जिला अस्पताल ले जाने के बाद मृत घोषित कर दिया। बच्चे को बचाने के लिए 9 फीट लंबी सुरंग बनाई गई थी ,जिसमे बड़ी चट्टान फंसने से दिक्कतें आई। इस घटना में तन्मय जिंदगी की जंग हार गया,लेकिन छत्तीसगढ़ के जांजगीर जिले के राहुल साहू ने 105 घंटे तक बोरवेल में फंसे रहकर भी मौत को मात दी थी।
देश का सबसे बड़ा रेस्क्यू ऑपरेशन हुआ था छत्तीसगढ़ में
इसी साल जून के महीने में छत्तीसगढ़ जांजगीर जिले के एक छोटे से गांव में 11 वर्ष के बच्चे राहुल साहू ने मौत को मात दी थी। भारत के इतिहास में अब तक के सबसे बड़े रेस्क्यू ऑपरेशन में राहुल को बचा लिया गया था। तब 105 घंटे के रेस्क्यू ऑपरेशन के बाद राहुल को गड्ढे से बाहर निकालते ही ग्रीन कॉरिडोर बनाकर उसे इलाज के लिए बिलासपुर के अपोलो अस्पताल ले जाया गया था।1 0 जून की दोपहर छत्तीसगढ़ के जांजगीर-चाम्पा जिले का गांव पिहरीद में अपने घर की बाड़ी में खेलने के दौरान 11 साल का मासूम राहुल साहू बोर में लगभग 60 फीट नीचे गिरकर फंस गया था । घटना की जानकारी गांव में फैलने के बाद ग्रामीणों ने पुलिस प्रशासन से मदद मांगी थी,जिसके बाद तत्काल प्रशासन हरकत में आया था।
राहुल नहीं है सामान्य बालक, इसलिए आई थी दिक्कतें
बोर के गड्डे में करीब 4 दिनों तक फंसे रहकर भी मौत को मात देने वाला राहुल कोई सामान्य बच्चा नहीं था । बच्चा मूक-बधिर होने के अलावा मानसिक रूप से भी कमजोर है, इसलिए उसको बाहर निकालने में काफी समस्याएं पेश आई थी । बच्चे के पिता लाला साहू ने अपने घर के पीछे अपनी जमीन पर बोर करवाई थी, लेकिन पानी नहीं निकलने के कारण बोर को पूरी तरह से ढंका नहीं, बोर खुला हुआ था। उनकी यही लापरवाही भारी पड़ गई थी।
105 घंटे तक सांप और मेढ़क थे राहुल के साथी
सांप बिच्छू और पानी के बढ़ते स्तर ने बढ़ाई चुनौती बोरवेल के गड्ढे के समानांतर सुरंग बनाने के कार्य के दौरान संकट कम नहीं था। बचाव टीम के विशेषज्ञों के बताया कि पथरीली चट्टान होने से साँप-बिच्छू मिलने का खतरा भी रहता है, इसलिए तत्काल प्रशासन को एंटी-वेनम और सर्प विशेषज्ञ की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए। बचाव अभियान के दौरान कैमरे से देखा गया कि राहुल को बचाने के लिए बनाई गई सुरंग में सांप भी आ गया था, लेकिन राहुल को वह नुकसान नहीं पंहुचा सका। 105 घंटे तक सांप और मेढक उसके अकेलेपन के साथी थे।
2006 से लेकर 2022 आ गया,लेकिन नहीं बदला कुछ
इसे विडंबना ही कहेंगे कि भारत में बच्चों के बोरवेल में गिरने की घटनाएं कई सालों से हो रही हैं। छत्तीसगढ़ में बोरवेल में बच्चों के गिरने की जितनी घटनाएं हुई हैं, उनमें सबसे ज्यादा देर तक चलने वाला आपरेशन हुआ था। इसके पूर्व जुलाई 2006 में हरियाणा के कुरुक्षेत्र में प्रिंस को 50 घंटे के संघर्ष के बाद बचाया गया था। यह ऐसी पहली घटना थी,जिसमे पूरे देश का ध्यान अपनी तरफ खिंचा था।
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