नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने तेलंगाना सरकार की उस याचिका को खारिज कर दिया है, जिसमें राज्य सरकार ने ओबीसी वर्ग को स्थानीय निकाय चुनाव में 42 प्रतिशत आरक्षण देने की मांग की थी। इससे पहले तेलंगाना हाईकोर्ट ने भी राज्य सरकार के इस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी। हाईकोर्ट के अंतरिम फैसले के खिलाफ तेलंगाना सरकार ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। हालांकि अब सुप्रीम कोर्ट से भी उसे निराशा हाथ लगी है और सर्वोच्च अदालत ने याचिका खारिज कर दी।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा- मेरिट के आधार पर फैसला ले हाईकोर्ट
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने राज्य सरकार की विशेष याचिका खारिज करते हुए स्पष्ट किया कि उच्च न्यायालय को मेरिट के आधार पर फैसला करना चाहिए और उसे राज्य सरकार की याचिका खारिज होने से प्रभावित नहीं होना चाहिए। सुनवाई के दौरान जस्टिस विक्रम नाथ ने राज्य सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी से पूछा कि चुनाव अधिसूचना से पहले आरक्षण क्यों नहीं लाया गया? इस पर सिंघवी ने जवाब दिया कि राज्यपाल ने बिना अनुमति दिए विधेयक को लंबित रखा था। सिंघवी ने कहा कि तमिलनाडु राज्यपाल मामले में सर्वोच्च न्यायालय का फैसला आने के बाद, विधेयक को ‘मान्य अनुमति के आधार पर’ कानून बना। उन्होंने आगे कहा कि कानून को कोई चुनौती दिए बिना ही स्थगन प्राप्त कर लिया गया है।
उच्च न्यायालय ने ट्रिपल टेस्ट ढांचे के अंतर्गत चुनाव कराने का दिया निर्देश
इससे पहले तेलंगाना उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि स्थानीय निकाय चुनाव सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित त्रिस्तरीय परीक्षण (Triple Test) के ढांचे के भीतर होने चाहिए। राज्य सरकार ने तेलंगाना में ओबीसी आरक्षण बढ़ाकर 42 प्रतिशत कर दिया है, जिससे एससी (15 प्रतिशत) और एसटी (10 प्रतिशत) आरक्षण को मिलाकर कुल आरक्षण 67 प्रतिशत हो जाता है, जो ट्रिपल टेस्ट नियम का उल्लंघन है। उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार के उस सरकारी आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी है, जिसमें 42 प्रतिशत ओबीसी आरक्षण के साथ 8 अक्टूबर को स्थानीय निकाय चुनाव कराने का आदेश जारी किया गया था।