नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने 2013 के दिलसुखनगर बम धमाकों के मामले में दोषी ठहराए गए इंडियन मुजाहिदीन के कथित आतंकी असदुल्ला अख्तर की फांसी की सजा पर फिलहाल रोक लगा दी है। इन धमाकों में 18 लोगों की जान गई थी और 131 से अधिक लोग घायल हुए थे।
यह फैसला न्यायमूर्ति विक्रम नाथ, न्यायमूर्ति संदीप मेहता और न्यायमूर्ति एन. वी. अंजारिया की पीठ ने अख्तर द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के बाद सुनाया। पीठ ने कहा कि अपील लंबित रहने तक मौत की सजा पर रोक जारी रहेगी।
2013 में हैदराबाद के व्यस्त दिलसुखनगर इलाके में 21 फरवरी को दो शक्तिशाली विस्फोट हुए थे—एक बस स्टॉप पर और दूसरा एक भोजनालय के पास। इस मामले में आरोपी असदुल्ला अख्तर वर्तमान में दिल्ली की एक जेल में बंद है। उसने तेलंगाना हाईकोर्ट के उस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी, जिसमें अप्रैल 2023 में उसकी मौत की सजा बरकरार रखी गई थी। उस फैसले में इंडियन मुजाहिदीन के सह-संस्थापक यासीन भटकल समेत पांच लोगों की फांसी की सजा को सही ठहराया गया था।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार को आदेश दिया है कि वह अख्तर से संबंधित सभी परिवीक्षा अधिकारियों की रिपोर्ट आठ हफ्तों के भीतर पेश करे। साथ ही संबंधित जेल अधीक्षक को निर्देश दिया गया है कि वे अख्तर के जेल में व्यवहार, गतिविधियों और आचरण पर रिपोर्ट तैयार कर कोर्ट में प्रस्तुत करें।
इसके अलावा कोर्ट ने आदेश दिया कि किसी सरकारी अस्पताल से अख्तर का मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन भी करवाया जाए। इस मामले की अगली सुनवाई 12 हफ्तों बाद होगी।
गौरतलब है कि 13 दिसंबर 2016 को एनआईए की विशेष अदालत ने पांच आरोपियों—यासीन भटकल, पाकिस्तानी नागरिक जिया-उर-रहमान उर्फ वकास, असदुल्ला अख्तर उर्फ हड्डी, तहसीन अख्तर उर्फ मोनू और अजाज शेख—को दोषी करार देते हुए मौत की सजा सुनाई थी। शुरुआत में यह मामला विभिन्न थानों में दर्ज दो अलग-अलग FIR के तहत दर्ज हुआ था, लेकिन 14 मार्च 2013 को एनआईए ने इन मामलों की जांच अपने हाथ में ले ली थी।
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