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दुंबा प्रजाति के भेड़ों को पालकर आत्मनिर्भर बनने की राह दिखा रहे मिराजुल सेख

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मालदा। कालियाचक प्रखंड-1 के धुलौरी गांव के निवासी मिराजुल सेख दुंबा प्रजाति के भेड़ों की अपने घर में पाल कर खुद तो आत्मनिर्भर हुए ही है, वह इसके माध्यम से दूसरों को भी कर आत्मनिर्भर बनने की राह दिखा रहे हैं। कुछ दिनों में पूरे राज्य में  ईद-उल-जुहा जाएगा। इस पर्व के दौरान मिराजुल द्वारा पाले गए भेड़ो की कीमत एक लाख रुपये तक मिली। इस बात से चरवाहे मिराजुल शेख बेहद खुश हैं।
उन्होंने कहा कि उनको लंबे समय से दुंबा भेड़ रखने में दिलचस्पी थी। पहले मैं अन्य राज्य में एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम करता था। लेकिन अब इस प्रजाति के भेड़ों को पल कर आत्मनिर्भर हो गया हूँ और अच्छी कमाई हो रही है।
वहीं गांव के मिराजुल शेख को देखकर कई लोग घर में मवेशी रखकर मोटी कमाई करने का सपना देख रहे हैं। आपको बता दें कि मालदा के कालियाचक प्रखंड-1 प्रखंड के धुलौरी गांव के निवासी मिराजुल शेख एक बार अन्य राज्य में काम करने गए थे और वहीँ से उनको भेड़ पालने की प्रेरणा मिली। उसकी बाद उन्होंने भेड़ों को पालना शुरू किया।  इद-उल-ज़ोहा उत्सव की पूर्व संध्या पर इस मोटे पूंछ वाले जीव की अत्यधिक मांग होती है।  ईद-उल-अजहा पर मेमने की मांग सबसे ज्यादा होती है। जितना अधिक पैसा आप दुंबा खरीदने के लिए खर्च कर सकते हैं, उतना ही आपके परिवार के लिए सम्मान की बात होती है।
मिराजुल शेख ने कहा, ‘मैं अन्य राज्य में काम पर जाता था। राजस्थान और दिल्ली समेत कई अन्य राज्यों में इस तरह के मवेशियों को बाजार में बिकता देख मेरे मन में यह ख्याल आया कि मैं घर पर ही दुंबा पालकर आत्मनिर्भर बनूंगा और मोटी कमाई करूंगा।  फिर मैं छह-सात महीने के कुछ दुंबा खरीदकर घर ले आया, अलग-अलग तरह का खाना खिलाकर उनका पालन-पोषण होता है। डेढ़ से दो साल की स्थिति में बिक जाने को तैयार है। मेरे पास पहले से ही 25 दुंबा हैं। इनमें से कुछ मेमनों की कीमत करीब एक लाख रुपये तक बढ़ गई है। इस बार मुझे उम्मीद है कि ईद-उल-अजहा पर अच्छा मुनाफा होगा। एक मेमने का वजन डेढ़ से दो क्विंटल होता है। वजन जितना अधिक होगा, कीमत उतनी ही अधिक होगी।


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