ओडिशा (पुरी)। उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा शुरू हो गई है। सबसे आगे वाला रथ बलभद्र का है, बीच में बहन देवी सुभद्रा और इसके बाद भगवान जगन्नाथ का रथ है। तीनों रथ गुंडिचा मंदिर पहुंचेगे और जगन्नाथ जी, सुभद्रा जी और बलभद्र जी आठ दिनों तक अपनी मौसी के मंदिर में रहेंगे। रथ यात्रा की रस्में सुबह मंगला आरती और पूजा के साथ शुरू हुई। फिर भगवान को भोग लगाया गया। सुबह 7 बजे भगवान जगन्नाथ बड़े भाई और बहन के साथ मंदिर से बाहर आए। इसके बाद रथ प्रतिष्ठा की रस्म हुई।
सबसे आगे 14 पहियों वाला लाल और हरे रंग का रथ भगवान बलभद्र का है। इसके बाद देवी सुभद्रा का रथ 12 पहियों वाला लाल-काले रंग का है। आखिरी में 16 पहियों वाला लाल और पीले रंग का रथ भगवान जगन्नाथ का है।
हर साल आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की द्वितीया से ये यात्रा शुरू होती है। आषाढ़ शुक्ल दशमी पर ये तीनों रथ गुंडिचा मंदिर से फिर से मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करते हैं। रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और बहन सुभद्रा के तीन अलग-अलग रथ होते हैं। भगवान जगन्नाथ के रथ के सारथी दारुक हैं। इस रथ के रक्षक गरुड़ और नृसिंह हैं। रथ में जय और विजय नाम के दो द्वारपाल भी होते हैं। रथयात्रा के इन रथों का निर्माण बहुत ही खास तरीके से किया जाता है। रथ बनाने में किसी भी तरह की धातु का उपयोग नहीं होता है।
तीनों रथ पवित्र लकड़ियों से बनाए जाते हैं। रथ बनाने के लिए स्वस्थ और शुभ पेड़ों की पहचान की जाती है। रथों के लिए लकड़ी का चुनने का काम बसंत पंचमी से शुरू हो जाता है। जब लकड़ियां चुन ली जाती हैं तो अक्षय तृतीया से रथ बनाने की प्रक्रिया शुरू कर दी जाती है।
भगवान जगन्नाथ के रथ में कुल 16 पहिए होते हैं। जगन्नाथ जी का रथ लाल और पीले रंग का होता है और ये रथ अन्य दो रथों से आकार में थोड़ा बड़ा भी होता है। जगन्नाथ जी के रथ पर हनुमान जी और भगवान नृसिंह का चिह्न बनाया जाता है।
रथयात्रा में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी शहर का भ्रमण करते हुए जगन्नाथ मंदिर से जनकपुर के गुंडीचा मंदिर पहुंचते हैं। यहां भगवान की मौसी का घर है। यात्रा के दूसरे दिन रथ पर रखी हुई भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी की मूर्तियों को विधि-विधान के साथ उतारा जाता है और मौसी के मंदिर में स्थापित किया जाता है। भगवान मौसी के यहां सात दिन विश्राम करते हैं और 8वें दिन यानी आषाढ़ शुक्ल दशमी पर तीनों देवी-देवताओं को रथ में बैठाकर यात्रा शुरू होती है। रथों की वापसी की इस यात्रा की रस्म को बहुड़ा यात्रा कहा जाता है।
रथ के घोड़े सफेद होते हैं और इनके नाम हैं शंख, बलाहक, श्वेत और हरिदाश्व। रथ को खींचने वाली रस्सी को शंखचूड़ कहते हैं। ये एक नाग का नाम है। रथ यात्रा में 8 ऋषि भी रहते हैं। ये ऋषि हैं नारद, देवल, व्यास, शुक, पाराशर, वशिष्ठ, विश्वामित्र और रूद्र।
 
				 
															 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
															 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								 
								