जयपुर। राजस्थान में कांग्रेस की लड़ाई इस बार भी आर या पार वाली नजर आ रही है। पार्टी वहां पिछले तीन वर्षों से अंदरूनी संकट झेल रही है, लेकिन इस बार लगता है कि सचिन पायलट ने अपने लिए अलग रास्ता अख्तियार करने का मूड बना लिया है। जानकारी के मुताबिक वह अपने पिता की बरसी पर जयपुर में नई पार्टी की घोषणा कर सकते हैं।
कांग्रेस से अलग ‘प्रगतिशील कांग्रेस’ बना सकते हैं पायलट
मीडिया में पहले से ही इस तरह की खबरें हैं कि सचिन पायलट के धैर्य का बांध अब टूट चुका है। उनकी चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर से जुड़ी संस्था के साथ डील की खबरें भी आ चुकी हैं। अब ईटी की एक खबर के मुताबिक 11 जून को सचिन पायलट अपनी अलग पार्टी की घोषणा कर सकते हैं, जिसका नाम ‘प्रगतिशील कांग्रेस’ रखा जा सकता है।
इसी साल आखिर में होना है राजस्थान में चुनाव
सचिन पायलट के पहले की नाराजगियों और अब में यह बड़ा अंतर है कि इस बार उनकी नई पार्टी का संभावित नाम भी सामने आ रहा है। राजस्थान में इसी साल के आखिर में छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश के साथ विधानसभा चुनाव होने हैं वाले और अगर पायलट अपना भविष्य कुछ अलग देख रहे हैं तो उनके पास अब ज्यादा समय नहीं बच गया है।
राजेश पायलट की बरसी पर कर सकते हैं घोषणा
11 जून को उनके पिता दिवंगत राजेश पायलट की बरसी है। संभावना है कि उसी दिन वह अपनी नई क्षेत्रीय पार्टी लॉन्च करने वाले हैं। सूत्रों के मुताबिक पायलट ने अब अपने सियासी विरोधी मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ आखिरी विरोध का झंडा उठाने का मन बना लिया है और वह रविवार को नई पार्टी बनाने की तैयारी कर रहे है।
अभी मंदिरों के चक्कर लगा रहे हैं पायलट
नई पार्टी लॉन्च करने से पहले पायलट मंदिरों में जाकर देवी-देवताओं का आशीर्वाद लेने में जुटे हुए हैं। सोमवार को वह कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विवेक तन्खा के साथ मां शारदे के दर्शन के लिए मध्य प्रदेश के मैहर पहुंचे थे। ईटी के मुताबिक पायलट से संपर्क करने की बहुत कोशिश की गई, लेकिन उनसे संपर्क नहीं हो पाया।
पायलट हटे तो गहलोत सरकार का क्या होगा ?
हालांकि पायलट के करीबी सूत्रों ने बताया है कि राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष जयपुर में एक रैली कर सकते हैं, जहां पर वहां इसकी घोषणा करेंगे। हालांकि यह देखना दिलचस्प होगा कि पायलट कितने एमएलए को अपने साथ जोड़ सकते हैं। क्योंकि, इससे गहलोत सरकार के अस्तित्व पर भी संकट छा सकता है।
2020 में भी उठाया था बगावत का झंडा
इससे पहले उन्होंने मुख्यमंत्री गहलोत के खिलाफ सबसे बड़ी बगावत 2020 में की थी। लेकिन, तब उनका उपमुख्यमंत्री पद भी चला गया और प्रदेश अध्यक्ष वाली डोर भी हाथ से निकल गई। उन्होंने तब मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए अपना दावा पेश किया था, जो अटकलों के मुताबिक आलाकमान पिछले विधानसभा चुनाव से ही टालता आ रहा है।
शायद यही वजह है कि अबकी बार उनका कदम क्या होने वाला है, यह खबरें सीधे उनके या उनके करीबियों के माध्यम से बाहर नहीं आ रही हैं। वह प्रेस को इंटरव्यू देने से भी बच रहे हैं और उन्होंने अपने राजनीतिक भविष्य के लिए क्या तय किया है, इस राज को अभी अपने सीने में दबाए रखना जा रहे हैं।
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