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बंगाल में बदलाव की बयार! तेहट्ट सहकारी चुनाव में टीएमसी को हराकर सीपीएम जीती, बीजेपी जीरो

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कोलकाता। पश्चिम बंगाल में पंचायत चुनाव के पहले राजनीति में बदलाव दिखने लगा है। राज्य की राजनीति में वामपंथी पार्टी माकपा फिर से पुनर्जीवित हो रही है। नदिया जिले के तेहट्ट कृषि सहकारी चुनाव ने एक बार फिर लाल झंडा फहराया। सीपीआईएम की बड़ी जीत हुई।सीपीएम ने 72 में से 66 सीटों पर जीत हासिल की थी, बाकी 6 सीटें तृणमूल के खाते में गईं, जबकि बीजेपी का खाता भी नहीं खुला। तेहट हाई स्कूल मैदान में तेहट्टा सहकारी कृषि विकास लिमिटेड के प्रतिनिधियों का चुनाव था। वहां कुल मतदाताओं की संख्या 1799 थी।
बता दें कि विधानसभा चुनाव में माकपा का खाता नहीं खुला था। उसके बाद नगरपालिका चुनावों में माकपा के प्रदर्शन में सुधार हुआ था। इससे पहले ताहेरपुर नगरपालिका उपचुनाव पलाशीपाड़ा सहकारी के बाद तेहट सहकारी चुनाव में भी माकपा उम्मीदवारों को जीत मिली थी।
तेहट्ट सहकारी चुनाव में लेफ्ट पार्टी ने मारी बाजी
तेहट्ट विधानसभा क्षेत्र की तेहट कृषि विकास सहकारी समिति की प्रबंध समिति के लिए रविवार को चुनाव हुआ। रात साढ़े नौ बजे रिजल्ट घोषित किया गया। मतदाताओं की संख्या 1799 थी। पिछले चुनावों में माकपा समर्थित उम्मीदवारों ने इस सहकारी पर कब्जा कर लिया था। इस बार कोई अपवाद नहीं रहा। सत्ता पक्ष और विपक्षी भाजपा पूरे बंगाल में लाल पार्टी के अस्तित्व पर सवाल उठा रही है। वहीं खड़े होकर तेहट्ट के इस नतीजे को राजनीतिक दृष्टि से काफी अहम माना जा रहा है। पंचायत चुनाव सामने हैं. उससे पहले नेतृत्व को भी लगता है कि इस नतीजे से पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल मजबूत होगा।
पंचायत चुनाव के पहले माकपा को मिली बड़ी जीत
बता दें कि भाजपा वहां एक भी नगर पालिका नहीं जीत सकी थी, लेकिन इसी बीच ताहेरपुर नगर पालिका पर वामपंथियों ने हैरतअंगेज रूप से कब्जा कर लिया। ताहेरपुर नगर पालिका के 13 वार्डों में से 8 वार्डों में लेफ्ट ने जीत दर्ज की है। नादिया के इस जोन में वामपंथ हमेशा मजबूत रहा है। जानकारों का कहना है कि पिछले पंचायत चुनाव में वामदलों की यह जीत वाकई अहम है। सीपीएम की दक्षिणी क्षेत्र समिति के सचिव सुबोध बिस्वास ने कहा, “तेहट्ट के मतदाताओं ने दिखा दिया है कि अगर स्वतंत्र और शांतिपूर्ण चुनाव हुए तो अगले पंचायत चुनाव के नतीजे क्या होंगे।” बता दें कि राज्य में इस साल पंचायत चुनाव होंगे और पंचायत चुनाव के पहले यह जीत काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है। माकपा फिर से अपने कैडरों को पुनर्जीवित करने की कोशिश कर रही है।


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