डेस्क। बिहार विधानसभा चुनाव के नजदीक आते ही महागठबंधन में दरारें गहराने लगी हैं। एक ओर कांग्रेस है, जो तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करने से लगातार बच रही है, तो दूसरी ओर आरजेडी प्रमुख लालू प्रसाद यादव ने सीटों के बंटवारे से पहले ही अपने उम्मीदवारों को पार्टी का सिंबल थमा दिया है। गठबंधन में समन्वय की कमी इस हद तक पहुंच चुकी है कि कई सीटों पर महागठबंधन के दो-दो उम्मीदवार मैदान में हैं।
कांग्रेस-आरजेडी के रिश्तों में खटास
लालू और राहुल गांधी के बीच पहले जो राजनीतिक गर्मजोशी और आपसी तालमेल दिखता था, वह अब नदारद है। एक समय था जब लालू प्रसाद ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर हुए हमले का खुलकर विरोध किया था और उन्हें “देश की बहू” बताया था। लेकिन वही लालू अब कांग्रेस और खासकर राहुल गांधी के साथ सहज नहीं दिखते।
पिछले कुछ सालों में इन रिश्तों में खटास बढ़ी है। जब राहुल गांधी ने दागी नेताओं को बचाने वाले विधेयक को फाड़ कर फेंका था, तब लालू को यह सीधा हमला अपने ऊपर लगा। चारा घोटाले में कानूनी कार्रवाई का ठीकरा भी कांग्रेस पर ही फोड़ा गया। माना जाता है कि लालू परिवार को आज भी इस बात की टीस है कि कांग्रेस ने उन्हें मुश्किल वक्त में समर्थन नहीं दिया।
राहुल-तेजस्वी मुलाकात नहीं हुई
तेजस्वी यादव ने राहुल गांधी से मुलाकात की कोशिश की, लेकिन उन्हें समय नहीं मिला। इसके बदले कांग्रेस महासचिव वेणुगोपाल से मिलने को कहा गया। यह घटनाक्रम तेजस्वी और लालू को अखर गया। जबकि बिहार में राहुल गांधी की “वोटर अधिकार यात्रा” में तेजस्वी उनके साथ कदम से कदम मिलाकर चले थे।
सीएम पद के चेहरे पर सस्पेंस
तेजस्वी यादव कई बार खुद को महागठबंधन का भावी मुख्यमंत्री बता चुके हैं, और उन्होंने मंच से जनता से अपील भी की कि वे उन्हें सीएम बनाएं ताकि 2029 में राहुल गांधी को पीएम बनाया जा सके। लेकिन राहुल गांधी ने इस पर अब तक कोई स्पष्ट बयान नहीं दिया। कांग्रेस ने इस मुद्दे पर चुप्पी साध रखी है, जिससे यह संदेश गया कि पार्टी तेजस्वी को नेतृत्व सौंपने को तैयार नहीं है।
लालू की “मनमानी” और कांग्रेस की देरी
सीटों के बंटवारे में देरी से तंग आकर लालू यादव ने सीटों की घोषणा से पहले ही आरजेडी के सिंबल बांटने शुरू कर दिए। नतीजा यह हुआ कि महागठबंधन के अंदर ही कई सीटों पर अलग-अलग दलों के उम्मीदवार नामांकन कर बैठे। आरजेडी और कांग्रेस दोनों ही अब तक अपने उम्मीदवारों की पूरी सूची जारी नहीं कर पाए हैं, जिससे जमीनी स्तर पर भ्रम और टकराव की स्थिति बनी हुई है।
क्या कांग्रेस दिल्ली और हरियाणा जैसी गलती दोहराएगी?
बिहार में सीटों को लेकर असमंजस की स्थिति वैसी ही बनती दिख रही है जैसी दिल्ली और हरियाणा में आम आदमी पार्टी के साथ तालमेल टूटने पर बनी थी। कांग्रेस ने अब तक 51 उम्मीदवारों की दो सूचियां जारी की हैं, लेकिन कुल सीटों की संख्या पर स्पष्टता नहीं है। इससे महागठबंधन की रणनीति और एकता दोनों सवालों के घेरे में हैं।
सबसे अधिक नुकसान छोटे दलों का
महागठबंधन के इस खींचतान में सबसे अधिक नुकसान छोटे दलों को हो रहा है। मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी को आखिरी वक्त में 15 सीटें दी गईं, लेकिन उम्मीदवारों को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं रही। कई जगह आरजेडी के उम्मीदवार वीआईपी के सिंबल पर उतर रहे हैं, तो कहीं दोनों दलों का एक ही प्रत्याशी घोषित है।
महागठबंधन में अविश्वास
बिहार महागठबंधन इस वक्त जिस रस्साकशी और अविश्वास के दौर से गुजर रहा है, वह कहीं न कहीं लालू प्रसाद और राहुल गांधी के बीच पुरानी तल्खी का ही नतीजा लगता है। जब तक नेतृत्व और सीट बंटवारे जैसे अहम मुद्दों पर स्पष्टता नहीं आती, तब तक महागठबंधन एकजुट होकर चुनावी मैदान में उतर सकेगा, इसमें संदेह है।