नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को कहा कि भारत और ब्रिटेन स्वाभाविक साझेदार हैं और दोनों देशों के बीच साझेदारी वैश्विक स्थिरता एवं आर्थिक प्रगति का एक महत्वपूर्ण आधार बन रही है। भारत दौरे पर आए ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर के साथ व्यापक वार्ता के बाद मोदी ने कहा कि भारत-ब्रिटेन संबंधों का आधार लोकतंत्र, स्वतंत्रता और कानून के शासन जैसे मूल्यों में साझा विश्वास है।
पीएम मोदी ने यह बात ऐसे समय कही है, जब अमेरिका द्वारा भारत के उत्पादों पर लगाए गए ऊंचे टैरिफ ने भारत के कई प्रमुख निर्यात क्षेत्रों खासकर श्रम-प्रधान उद्योगों पर गहरा असर डाला है। इससे निवेश में अनिश्चितता बढ़ी है। वहीं, वियतनाम, बांग्लादेश और यहां तक कि चीन जैसे देशों पर कम टैरिफ लागू हैं, जिससे भारत की प्रतिस्पर्धा कमजोर हुई है। हालांकि अमेरिका के साथ भी एक समझौते पर बातचीत चल रही है, लेकिन ब्रिटेन के साथ होने वाला यह व्यापार समझौता-जो अगले साल जुलाई तक लागू होने की उम्मीद है, भारत की एक्सपोर्ट डाइवर्सिफिकेशन स्ट्रैटेजी को मजबूत करेगा। साथ ही, यह दुनिया की सबसे विकसित सेवाक्षेत्र अर्थव्यवस्थाओं में से एक ब्रिटेन के साथ भारत के आर्थिक संबंधों को गहराई देगा।
ब्रिटिश बाजार में भारत के लिए नए अवसर
अमेरिकी टैरिफ से लगे झटके की भरपाई भारत को आने वाले वर्षों में ही हो पाएगी, क्योंकि इसके लिए वैश्विक स्तर पर नए बाजार तलाशने होंगे। भारत को हर साल लगभग 40 अरब डॉलर के अमेरिकी निर्यात का नुकसान झेलना पड़ रहा है। ऐसे में ब्रिटेन के साथ यह समझौता भारत के श्रम-प्रधान उद्योगों को कुछ राहत दे सकता है। समझौते के लागू होने के बाद भारत के उत्पाद ब्रिटेन में अन्य प्रतिस्पर्धी देशों के समान स्तर पर पहुंच जाएंगे खासकर टेक्सटाइल सेक्टर में। ब्रिटेन हर साल करीब 27 अरब डॉलर के टेक्सटाइल प्रोडक्ट आयात करता है, जबकि भारत का यूके को कुल निर्यात 2024 में 13.5 अरब डॉलर का था।
हालांकि, रत्न और आभूषण क्षेत्र को सीमित फायदा ही मिलेगा। इस क्षेत्र के भारत से अमेरिका को निर्यात 9 अरब डॉलर का था, जिस पर भारी टैरिफ लगा है, जबकि ब्रिटेन को निर्यात केवल 941 मिलियन डॉलर का है। चूंकि यूके का कुल रत्न-आभूषण आयात मात्र 3 अरब डॉलर का है, इसलिए लाभ सीमित रहेगा। इलेक्ट्रॉनिक्स सेक्टर में भारत के लिए बड़ा मौका है। यूके के इस क्षेत्र में सालाना आयात 70 अरब डॉलर से अधिक का है। 0 से 18 प्रतिशत तक के आयात शुल्क हटने से भारतीय इलेक्ट्रॉनिक्स को वहां नई पहुंच मिलेगी। एप्पल जैसी कंपनियों के निवेश से भारत का इलेक्ट्रॉनिक्स निर्यात पहले ही तेजी से बढ़ रहा है। हालांकि, इस क्षेत्र में चीन अभी भी सबसे बड़ा प्रतिस्पर्धी है।
स्टील और इंजीनियरिंग उत्पादों में भी भारत को फायदा हो सकता है। फिलहाल यूके में लोहे और स्टील पर 10 प्रतिशत तक शुल्क है। भारत का निर्यात इस श्रेणी में बढ़ सकता है। यूके का स्टील बाजार 2024 में 32.13 अरब डॉलर का था और 2033 तक इसके 42.74 अरब डॉलर तक पहुंचने का अनुमान है। हालांकि, ब्रिटेन का प्रस्तावित कॉर्बन बॉर्डर एडजस्टमेंट मकैनिज्म (CBAM) भारतीय स्टील निर्यात पर रोक भी लगा सकता है, जिससे भारतीय उद्योगों को डिकार्बोनाइजेशन (कार्बन उत्सर्जन घटाने) के लिए मजबूर होना पड़ सकता है। बड़ी कंपनियां यह बदलाव कर सकती हैं, लेकिन बिना सरकारी मदद के एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग) के लिए यह चुनौतीपूर्ण होगा।
सेवाक्षेत्र बनेगा बड़ा विजेता
भारत-यूके समझौते का सबसे बड़ा लाभ सर्विस सेक्टर को मिलने की संभावना है। अमेरिका द्वारा H-1B वीज़ा शुल्क बढ़ाने और सर्विस सेक्टर में नई बाधाएं खड़ी करने के बीच, ब्रिटेन के साथ यह समझौता भारत के लिए राहत ला सकता है। भारत की ग्रॉस वैल्यू एडेड (जीवीए) में सर्विस सेक्टर का योगदान 55 प्रतिशत है, जबकि ब्रिटेन में यह 81 प्रतिशत तक है। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा, ”प्रधानमंत्री स्टार्मर के साथ शिक्षा क्षेत्र का अब तक का सबसे बड़ा और प्रभावशाली प्रतिनिधिमंडल आया है। यह बहुत खुशी की बात है कि अब UK की 9 यूनिवर्सिटीज भारत में कैंपस खोलने जा रही हैं। साउथैम्टन यूनिवर्सिटी के गुरुग्राम कैंपस का हाल ही में उद्घाटन हुआ है और छात्रों का पहला समूह प्रवेश भी ले चुका है।”
भारत-यूके डील पर वाणिज्य मंत्रालय क्या कहता है?
वाणिज्य मंत्रालय के मुताबिक, यूके ने कंप्यूटर संबंधित सर्विस में पूर्ण प्रतिबद्धता जताई है, जिससे ब्रिटेन में निवेश करने की सोच रही भारतीय कंपनियों को स्पष्टता मिलेगी। मंत्रालय ने कहा कि यह समझौता भारत के हाई-वैल्यू सर्विसेज हब बनने के लक्ष्य से मेल खाता है। ब्रिटेन से निवेश और सहयोग बढ़ने से भारत के डिजिटल इकॉनमी, स्किल डेवलपमेंट और इनोवेशन के क्षेत्रों को गति मिलेगी। इस समझौते के बाद ब्रिटिश कंपनियां भारत को केवल “लो-कॉस्ट बैक-ऑफिस डेस्टिनेशन” के रूप में नहीं देखेंगी, बल्कि रिसर्च एंड डेवलपमेंट, एनालिटिक्स, साइबर सिक्योरिटी और नई टेक्नोलॉजीज में एक रणनीतिक साझेदार के रूप में देखेंगी। भारत पहले ही 1,700 से अधिक ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स (GCCs) का केंद्र है, जिनमें 19 लाख से अधिक लोग काम करते हैं। ये सेंटर यूके समेत कई देशों की कंपनियों के लिए डिजिटल ट्रांसफॉर्मेशन और वैश्विक सेवाओं का संचालन करते हैं।
कुल मिलाकर अमेरिकी व्यापार नीतियों से पैदा हुई चुनौतियों के बीच भारत-यूके व्यापार समझौता भारत को न केवल एक वैकल्पिक बाजार मुहैया कराएगा, बल्कि वैश्विक सप्लाई चेन और सेवाक्षेत्र में नई भूमिका भी देता है। यह समझौता भारत को “मेक इन इंडिया” और “विकसित भारत 2047” के लक्ष्यों की दिशा में एक और कदम आगे ले जा सकता है।