डेस्क। जर्मनी भारतीय माता-पिता को अपने ही बच्चे से मिलने क्यों नहीं दे रहा है? भारतीय मूल के माता-पिता के दो साल के बच्चे को उनसे क्यों छीन लिया गया है? क्यों भारत इस मसले पर जर्मनी के सामने लगातार विरोध कर रहा है? क्या माता-पिता कभी अपने बच्चे से मिल पाएंगे? ये तमाम सवाल तब उठे जब जर्मनी में रहने वाले गुजरात मूल के धरा और भावेश शाह की बेटी अरिहा शाह को जर्मनी प्रशासन ने अपने कस्टडी में ले लिया है और माता-पिता उसे पाने के के लिए कानून लड़ाई लड़ रहे हैं। भारत ने भी जर्मनी सरकार पर दबाव बनाया है।
क्या है मामला
धरा और भावेश शाह 2018 में जर्मनी गए थे। भावेश वहां आईटी कंपनी में काम करते हैं। 2021 में उनकी बेटी अरिहा का जन्म हुआ। घर में बेटी के आगमन के बाद उन्हें लगा कि उनके घर सारी खुशियां आ गई हैं। उन्हें पता नहीं था कि वह जर्मनी के अजीबो-गरीब कानून का शिकार होने वाले हैं। सितंबर 2021 में जब अरिहा सात महीने की थी तब उनकी मां ने बच्ची के डाइपर में खून देखा। वे उसे अस्पताल ले गए। शुरुआती इलाज के बाद स्थानीय अस्पताल ने बच्ची को बड़े अस्पताल रेफर कर दिया। वहां पहले बच्चे के साथ सेक्सुअल प्रताड़ना का शक हुआ। इस कारण सात महीने की अरिहा शाह को जर्मन चाइल्ड लाइन सर्विस भेज दिया गया। इसके बाद अरिहा शाह को फोस्टर केयर में डाल दिया गया। डॉक्टरी जांच में ऐसी बात नहीं निकली। 2022 के शुरू में पुलिस ने भी केस बंद कर दिया। इसके बाद धरा-आवेश शाह को लगा कि उनकी बेटी उनके साथ आ जाएगी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
अंतहीन प्रताड़ना
पुलिस ने केस भले बंद कर दिया, लेकिन अरिहा के जुड़ा एक दूसरा केस जुड़ गया। चाइल्ड लाइन सर्विस ने कोर्ट में पैरंटिग राइट्स टर्मिनेट का केस बनाया। इस आधार पर कहा गया कि अरिहा को उनके माता-पिता को नहीं सौंपा जा सकता है, क्योंकि उन्होंने ही अपनी बच्ची के साथ हिंसक व्यवहार किया। पुलिस से क्लीन चिट मिलने के बाद भी सेक्सुअल हिंसा को आधार माना गया। हालांकि धरा शाह के अनुसार, बच्ची की दादी से गलती से चोट लग गई थी जिससे घाव हुआ, लेकिन वहां की जांच एजेंसी ने इस तर्क को नहीं माना।
किसी गुहार का असर नहीं
अपने ही बच्चे को सरकार से हासिल करने के लिए धरा शाह की जंग शुरू हुई जो अब अब तक जारी है। इस बीच कोर्ट ने अरिहा शाह के अभिभावकों की मनोवैज्ञानिक जांच कराने को भी कहा। जांच अधिकारियों ने उन पर आरोप लगाया कि वे अच्छे अभिभावक नहीं हैं और बच्चे को उन्हें नहीं सौंपा जा सकता। बर्लिन चाइल्ड सर्विसेज ने केस दायर किया कि वे माता-पिता की जिम्मेदारी निभाने लायक नहीं हैं और अरिहा की जिम्मेदारी उन्हें नहीं दी जा सकती। वहां उनका फिट-टू-बी-मदर-फादर टेस्ट लेने की तैयारी की जा रही है।
भारत ने बढ़ाया दबाव
अपने ही बच्चे से बिछड़ने के बाद धरा और भावेश शाह ने भारत सरकार के सामने गुहार लगाई है। केंद्र सरकार ने जर्मनी से संपर्क साधा है। विदेश मंत्री एस. जयशंकर तक ने जर्मनी से मामले में भारतीय कानून के अनुसार बच्चा सौंपने का आग्रह किया है। जर्मनी में भारत के दूतावास ने इस मामले में लगातार संपर्क बनाए रखा है। तमाम दलों के लगभग 60 सासंदों ने इस बारे में जर्मनी से हस्तक्षेप करने के लिए पत्र लिखा। इन तमाम बातों का अब तक असर नहीं है। अगले हफ्ते अरिहा से जुड़ा कोर्ट का फैसला आ सकता है। इसके बाद इस केस को नई दिशा मिल सकती है।
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