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भारत के विदेशी मुद्रा भंडार में 6.9 अरब डॉलर की गिरावट, फिर भी रिकॉर्ड स्तर के करीब

नई दिल्ली । भारत के विदेशी मुद्रा भंडार यानी फॉरेक्स रिजर्व में पिछले सप्ताह 6.925 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई है। भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा ‘वीकली स्टैटिस्टिकल सप्लीमेंट’ रिपोर्ट के अनुसार, 24 अक्तूबर 2025 को समाप्त सप्ताह. . .

नई दिल्ली । भारत के विदेशी मुद्रा भंडार यानी फॉरेक्स रिजर्व में पिछले सप्ताह 6.925 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई है। भारतीय रिजर्व बैंक की ताजा ‘वीकली स्टैटिस्टिकल सप्लीमेंट’ रिपोर्ट के अनुसार, 24 अक्तूबर 2025 को समाप्त सप्ताह में देश का कुल भंडार घटकर 695.355 अरब डॉलर पर आ गया। हालांकि, यह आंकड़ा अब भी सितंबर 2024 के सर्वाधिक रिकॉर्ड स्तर 704.89 अरब डॉलर के करीब बना हुआ है।
आरबीआई के अनुसार, वो विदेशी मुद्रा संपत्तियां, जो भंडार का सबसे बड़ा हिस्सा हैं, घटकर 566.548 अरब डॉलर रह गईं। इसमें 3.862 अरब डॉलर की गिरावट दर्ज की गई है। वहीं, सोने के भंडार में भी 3.010 अरब डॉलर की कमी आई और यह 105.536 अरब डॉलर पर पहुंच गया। यह गिरावट वैश्विक आर्थिक अनिश्चितता और निवेशकों द्वारा सोने की मांग में बढ़ोतरी के चलते आई है।

भंडार में गिरावट लेकिन स्थिर और मजबूत स्थिति में…

भले ही भंडार में गिरावट आई है, लेकिन यह अब भी स्थिर और मजबूत स्थिति में है। आरबीआई गवर्नर संजय मल्होत्रा ने हाल ही में कहा था कि भारत का विदेशी मुद्रा भंडार 11 महीनों से अधिक के माल आयात को कवर करने के लिए पर्याप्त है। रिजर्व बैंक विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करते हुए रुपए के मूल्य को स्थिर बनाए रखने के लिए डॉलर खरीदने या बेचने जैसी रणनीतियों का उपयोग करता है।

पिछले वर्षों की में कितना बढ़ा ?

साल 2023 में भारततुलना ने अपने विदेशी मुद्रा भंडार में लगभग 58 अरब डॉलर की वृद्धि की थी, जबकि 2022 में इसमें 71 अरब डॉलर की कमी आई थी। 2024 में भंडार में 20 अरब डॉलर से अधिक की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। मौजूदा वर्ष 2025 में अब तक कुल 46 अरब डॉलर की वृद्धि देखी गई है, जो यह दर्शाती है कि भारत की विदेशी मुद्रा स्थिति लंबे समय से मजबूत बनी हुई है।

विदेशी मुद्रा भंडार क्यों अहम?

विदेशी मुद्रा भंडार किसी भी देश की आर्थिक स्थिरता और वैश्विक लेनदेन की क्षमता का संकेतक होता है। भारत का फॉरेक्स रिज़र्व डॉलर, यूरो, येन और पाउंड स्टर्लिंग जैसी मुद्राओं में रखा जाता है। आरबीआई की यह रणनीति है कि जब रुपया कमजोर होता है तो डॉलर बेचकर उसे स्थिर किया जाए और जब रुपया मजबूत होता है तो डॉलर खरीदा जाए। मौजूदा आंकड़े बताते हैं कि भारत की अर्थव्यवस्था बाहरी मोर्चे पर अभी भी मजबूत और नियंत्रित बनी हुई है।