नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट से बिहार के यूट्यूबर मनीष कश्यप को झटका लगा है। शीर्ष अदालत ने सुप्रीम कोर्ट की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें अनुच्छेद 32 के तहत राहत की मांग की गई थी। इसके साथ ही मनीष कश्यप ने अपने खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा कानून के तहत दर्ज मामलों को लेकर चुनौती थी। मनीष कश्यप के खिलाफ तमिलनाडु में प्रवासी मजदूरों के साथ हिंसा के कथित फेक वीडियो शेयर करने के आरोप है। सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान साफ कर दिया कि वह संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अपने अधिकारों का प्रयोग नहीं कर सकती है। ऐसे में सवाल है कि आखिर यह अनुच्छेद 32 है क्या? आखिर क्यों सुप्रीम कोर्ट में इसका जिक्र हुआ।
संविधान की आत्मा और हृदय है अनुच्छेद 32
संविधान में अनुच्छेद 32 का जिक्र मौलिक अधिकारों से जुड़ा है। अनुच्छेद 32 संवैधानिक उपचारों का अधिकार है। अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों के उल्लंघन की स्थिति में व्यक्तियों को न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट में जाने का अधिकार देता है। संविधान में संवैधानिक उपचारों का अधिकार स्वयं में कोई अधिकार न होकर अन्य मौलिक अधिकारों की रक्षा का उपाय है। इसके अंतर्गत कोई भी व्यक्ति मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में न्यायालय की शरण ले सकता है। संविधान निर्माता डॉ. अंबेडकर ने अनुच्छेद 32 को संविधान का सबसे महत्त्वपूर्ण अनुच्छेद बताते हुए कहा था कि इसके बिना संविधान अर्थहीन है, यह संविधान की आत्मा और हृदय है।
पांच तरह के रिट जारी करने का अधिकार
अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्ययालय और अनुच्छेद 226 के तहत हाईकोर्ट व्यक्ति के मौलिक अधिकारों को प्रवर्त करने लिए 5 प्रकार की रिट (Writ) जारी कर सकता है। इसमें बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus), परमादेश (Mandamus), उत्प्रेषण (Certiorari), प्रतिषेध (Prohibition), अधिकार पृच्छा (Quo Warranto) रिट जारी कर सकता है।
सुप्रीम कोर्ट पहले भी दे चुका है आदेश
इस संबंध में मामले की सुनवाई करते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि अनुच्छेद 32 के तहत दायर याचिकाओं की भरमार है। शीर्ष अदालत का कहना था कि लोग अपने मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में संबंधित उच्च न्यायालय के पास जाने की बजाय सीधे सुप्रीम कोर्ट के समक्ष याचिका दायर कर रहे है। सुप्रीम कोर्ट का कहना था कि जबकि संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत हाई कोर्ट को भी ऐसे मामलों में रिट जारी करने का अधिकार प्रदान किया गया है। ऐसे में लोगों को पहले संबंधित हाईकोर्ट में जाना चाहिए।