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मरीजों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए 60 साल पहले शुरु की गयी थी काली पूजा, बकरियों और कबूतरों की बलि देने की है परंपरा

मालदा। मरीजों के बेहतर स्वास्थ्य की कामना के साथ आज से करीब 60 साल पहले मालदा जिला अस्पताल के सामने मां काली माता की पूजा शुरू की गई थी। उसी रिवाज का अनुपालन करते हुए सोमवार को अमावस्या के दिन. . .

मालदा। मरीजों के बेहतर स्वास्थ्य की कामना के साथ आज से करीब 60 साल पहले मालदा जिला अस्पताल के सामने मां काली माता की पूजा शुरू की गई थी। उसी रिवाज का अनुपालन करते हुए सोमवार को अमावस्या के दिन श्यामा माई की मूर्ति की पूजा की गई।
वर्तमान में, देवी कालीमाता का मंदिर मालदा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल के यक्ष्मा रोग विभाग से सटे परिसर में स्थित है। पूजा आयोजकों ने बताया कि करीब 60 साल पहले मेडिकल कॉलेज के अस्थायी कर्मचारी लक्ष्मण बांसफोर ने श्यामा काली पूजा की शुरुआत की थी। वह पूजा धीरे-धीरे आम लोगों की पूजा के रूप में जानी जाने लगी। यहां तांत्रिक पद्धति से पूजा की जाती है। श्यामा काली पूजा में बकरियों और कबूतरों की बलि देने की परंपरा है। उस नियम के अनुसार पूजा की रात को बकरे की बलि भी दी जाती है।
स्थानीय निवासियों ने बताया कि मेडिकल कॉलेज में आए कई मरीजों के परिजन रात भर मां की पूजा में शामिल हुए। कई अपने रिश्तेदारों के स्वास्थ्य की कामना करते हुए शपथ लेते हैं। कालीमाता इतनी जागृत हैं कि भक्तों की मनोकामनाएं पूरी करती हैं। इसी दृढ़ विश्वास के कारण कई दशकों से मालदा मेडिकल कॉलेज परिसर में श्यामा काली पूजा होती आ रही है। इस पूजा में आम लोगों में खिचड़ी बांटी जाती है।

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