मालदा। शालुक फल के बीजों से पौष्टिकता से भरपूर खोई बनायी जाती है। ज्ञात हो कि यह जलीय फल पोषक तत्वों से भरपूर होता है। मालदा के हबीबपुर प्रखंड अन्तर्गत ऋषिपुर पंचायत के कृष्णानगर गांव के कुछ परिवार पिछले कुछ सालों से इस खोई बना रहे हैं। लंबे समय तक चोकर को भूनकर उसका भंडारण किया जाता था। खोई को मालदा शहर के फूलबाड़ी के कार्तिक पूजा मेले में करीब एक महीने तक बेचा गया। इस मेले में कुछ क्विंटल वैट मूल्य का गेहूं बिकता है शालुक फल को वैट फल के रूप में मालधे फल कहा जाता है।
मालदा जिले के अलग-अलग हिस्सों में ऐसे कई जगह हैं जिनमें शालुक नजर आ रहा है। इन कुछ परिवारों ने अक्टूबर से शालुक फल तोड़ना शुरू किया। वे उन्हें जिले के विभिन्न हिस्सों से लाए थे। वह फल घर में ही सड़ जाता है। जब फल सड़ जाता है तो अंदर का बीज बाहर आ जाता है। सड़े हुए फलों को पानी से साफ किया जाता है और बीजों को धोया जाता है। बीज को धूप में अच्छी तरह से सुखाया जाता है और फिर बालू में भूना जाता है। उस खोई से रेत के कण और अन्य अशुद्धियों को साफ करना होता है। इस प्रकार शालुक फल की खोई बनाई जाती है।
हर साल मालदा और आसपास के क्षेत्र के निवासी इस खोई को खरीदने के लिए तत्पर रहते हैं। पिछले साल यह बाजार में 250 से 300 रुपए प्रति किलो के हिसाब से बिका था। विक्रेताओं को इस साल भी कीमत मिलने की उम्मीद है। यह कार्बोहाइड्रेट, फैट, प्रोटीन और फाइबर से भरपूर होता है। इसमें कैल्शियम, नियासिन और मैग्नीशियम जैसे खनिज तत्व भी होते हैं। चूंकि इन बीजों में जीवाणुरोधी गुण होते हैं, इसलिए ये संभावित संक्रमण को कम करने में भी मदद कर सकते हैं।
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