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मुस्लिम पक्ष है खुश : वक्फ संशोधन कानून के 3 संशोधन पर रोक, बोर्ड में 3 से ज्यादा गैर-मुस्लिम नहीं, 5 साल इस्लाम फॉलो करना जरूरी नहीं; कलेक्टर संपत्ति सर्वे नहीं करें

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अहम अंतरिम फैसला सुनाया। कोर्ट ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन तीन संशोधित प्रावधानों पर. . .

नई दिल्ली | सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को वक्फ (संशोधन) कानून, 2025 की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अहम अंतरिम फैसला सुनाया। कोर्ट ने पूरे कानून पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन तीन संशोधित प्रावधानों पर अंतरिम रोक लगा दी। इससे मुस्लिम पक्ष ने राहत की सांस ली है।

सुप्रीम कोर्ट ने किन संशोधनों पर लगाई रोक?

  1. वक्फ बोर्ड में 3 से अधिक गैर-मुस्लिम सदस्यों की नियुक्ति पर रोक।
  2. वक्फ बनाने के लिए पिछले 5 साल से इस्लाम का पालन जरूरी नहीं।
  3. कलेक्टर अब वक्फ संपत्तियों का स्वत: सर्वे नहीं कर सकेंगे।

कोर्ट ने कहा कि किसी भी कानून पर रोक केवल “रेयर ऑफ द रेयर” मामलों में लगाई जा सकती है। लेकिन इन तीन संशोधनों को लेकर अंतरिम रोक उचित है। साथ ही यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम पदेन सदस्य बनाए जा सकते हैं, लेकिन जहां तक संभव हो, मुस्लिम ही होने चाहिए।

क्यों खुश है मुस्लिम पक्ष?

इन तीन प्रावधानों को लेकर मुस्लिम संगठनों और नेताओं ने विरोध जताया था। उनका कहना था कि ये संशोधन वक्फ की मूल भावना और मुस्लिम समुदाय के धार्मिक अधिकारों के खिलाफ हैं। कोर्ट के फैसले को मुस्लिम पक्ष ने आंशिक जीत माना है।

सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ अब तक?

22 मई:
तीसरे दिन की सुनवाई में केंद्र के वकील SG तुषार मेहता ने सेक्शन 3E का बचाव किया, जिसमें अनुसूचित क्षेत्रों में वक्फ संपत्ति निर्माण पर रोक है। वहीं, याचिकाकर्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि यह संविधान और ऐतिहासिक सिद्धांतों के खिलाफ है।

21 मई:
SG मेहता ने दलील दी कि वक्फ “बाय यूजर” कोई मौलिक अधिकार नहीं है। यह केवल एक विधायी नीति थी, जिसे अब वापस लिया गया है।

20 मई:
कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष से कहा कि उन्हें अंतरिम राहत के लिए मजबूत और स्पष्ट दलीलें पेश करनी होंगी।

किन याचिकाओं पर हुई सुनवाई?

सुप्रीम कोर्ट ने 5 याचिकाओं पर सुनवाई की, जिनमें प्रमुख याचिका AIMIM सांसद असदुद्दीन ओवैसी की थी। इसके अलावा कांग्रेस सांसद मोहम्मद जावेद, AAP विधायक अमानतुल्लाह खान, एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, और जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने भी याचिकाएं दायर की थीं।

बेंच की अध्यक्षता CJI बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह ने की। केंद्र का पक्ष SG तुषार मेहता ने रखा, जबकि याचिकाकर्ताओं की तरफ से कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन जैसे वरिष्ठ वकील पेश हुए।

कानून कब और कैसे बना?

  • केंद्र सरकार ने वक्फ (संशोधन) बिल, 2025 को 5 अप्रैल को अधिसूचित किया था।
  • राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के बाद यह कानून बना।
  • बिल को लोकसभा में 288 सांसदों के समर्थन से पास किया गया, जबकि 232 सांसदों ने विरोध किया।

सुनवाई की प्रमुख तारीखें:

  • 16 अप्रैल: सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से हलफनामा मांगा।
  • 17 अप्रैल: SG ने कहा- लाखों सुझावों के बाद कानून बना।
  • 25 अप्रैल: केंद्र ने 1300+ पन्नों का हलफनामा दायर कर कानून को संवैधानिक बताया।
  • 15 मई: कोर्ट ने कहा कि अंतरिम राहत पर विचार किया जाएगा।

विवाद की जड़ क्या है?

  • याचिकाकर्ताओं का आरोप है कि सरकार वक्फ संपत्तियों को गैर-न्यायिक तरीके से नियंत्रित करना चाहती है।
  • नए कानून में प्रावधान है कि केवल मुसलमान ही वक्फ बना सकते हैं, और वह भी यदि उन्होंने पिछले 5 साल से इस्लाम धर्म का पालन किया हो।
  • याचिकाकर्ताओं ने यह भी सवाल उठाया कि राज्य सरकार कैसे तय कर सकती है कि कोई व्यक्ति मुसलमान है या नहीं?

आगे क्या?

सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि वह फिलहाल कानून की वैधता पर अंतिम निर्णय नहीं दे रहा है। लेकिन जब तक अंतिम सुनवाई नहीं होती, इन 3 संशोधनों पर रोक लागू रहेगी। अगली सुनवाई की तारीख अभी तय नहीं की गई है . यह मामला आगे और दिलचस्प मोड़ ले सकता है, क्योंकि इसमें संविधान, धार्मिक अधिकार और सरकारी नीतियों का सीधा टकराव है।