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राज्यपाल ने विश्वविद्यालयों के वीसी से हर सप्ताह मांगी रिपोर्ट, क्या फिर से ममता बनर्जी से मचेगा घमासान?

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कोलकाता। पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल जगदीप धनखड़ के समय में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की सरकार और राज्यपाल के बीच घमासान मचा हुआ था। उस समय कुलपति के साथ राज्यपाल का टकराव चरम पर पहुंच गया था। राज्यपाल द्वारा कुलपतियों को बार-बार बैठक के लिए बुलाने पर भी वे नहीं आये थे। जगदीप धनखड़ ने खाली कुर्सियों की तस्वीर पोस्ट कर विवाद को और हवा दी थी, लेकिन नए गवर्नर सीवी आनंद बोस के आने के बाद विवाद शांत हो गया था।
कुलपतियों को हर सप्ताह राजभवन को रिपोर्ट देने का दिया पत्र
हालांकि अब फिर से टकराव के संकेत मिल रहे हैं। राजभवन से सभी कुलपतियों के नाम एक पत्र भेजा गया है। इस पत्र में कहा गया है कि साप्ताहिक रिपोर्ट सीधे राजभवन को भेजी जाए। हर हफ्ते विश्वविद्यालय में क्या हुआ है, इसकी जानकारी वीसी को ही देनी चाहिए। इसमें कहा गया है कि प्रत्येक सप्ताह की रिपोर्ट सप्ताहांत तक राजभवन को भिजवाई जाए। राजभवन को किसी भी बड़े वित्तीय लेनदेन के लिए पूर्व स्वीकृति लेनी पड़ती है। कुलपति बिना विकास भवन को सूचित किए सीधे राजभवन में राज्यपाल से संवाद कर सकते हैं।
राज्यपाल और ममता सरकार के बीच फिर से टकराव के आसार
शैक्षणिक समुदाय का एक हिस्सा सवाल उठा रहा है, क्या यह राज्य राजभवन के टकराव का संकेत है? राज्यपाल यह संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि बिना विकास भवन को बताए सीधे आचार्य से संपर्क किया जा सकता है। प्रोफेसर के संगठन का दावा है कि इस पत्र के जवाब में राज्य-राजभवन के भावी संबंधों का भविष्य छिपा है। गौरतलब है कि राज्य के शिक्षा मंत्री ब्रत्य बोस ने कुछ दिन पहले राजभवन में राज्यपाल और राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलपति से मुलाकात की थी। प्रदेश के कई विश्वविद्यालयों के कुलपति भी मौजूद थे। तब राज्यपाल ने कुलपतियों का कार्यकाल तीन माह के लिए बढ़ा दिया था. राज्यपाल सहित ब्रात्य बोस ने पत्रकारों से कहा था कि राज्य और राजभवन विवाद का माहौल अब बीत समाप्त हो चुका है.
ममता सरकार ने राज्यपाल को आचार्य पद से हटाने के लिए लाया था बिल
लेकिन इस बार स्वाभाविक रूप से राजभवन के इस संदेश को लेकर विभिन्न हलकों में सवाल उठने लगे हैं. जूटा के महासचिव पार्थ प्रतिम रॉय ने हालांकि रिपोर्ट पर सवाल उठाया है.उनके अनुसार शोध कार्य या शैक्षणिक कार्यक्रम कार्य एक दीर्घकालिक मुद्दा है. बता दें कि इसके पहले जगदीप धनखड़ के राज्यपाल रहने के दौरान ममता बनर्जी की सरकार ने विधानसभा में एक अधिनियम पारित किया था, जिसमें विश्वविद्यालयों के आचार्य राज्यपाल की जगह मुख्यमंत्री को बनाया गया था, हालांकि अधिनियम पारित हो गया था, लेकिन राज्यपाल ने उस पर हस्ताक्षर नहीं किया था. इस कारण वह कानून नहीं बन पाया है।


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