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शरद पूर्णिमा आज, जानिए महत्व और पूजा विधि

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आज आश्विन मास की पूर्णिमा यानी कि शरद पूर्णिमा है। इसे कोजागरी पूर्णिमा भी कहा जाता है। इस दिन चंद्रमा सोलह कलाओं से युक्त पूर्ण होता है और अमृत वर्षा करता है। इसलिए इस दिन मानसिक रोगियों को रोगमुक्ति और मस्तिष्क की मजबूती के लिए आयुर्वेदिक औषधियां पिलाई जाती है। यह दिन संतान और सुख-सौभाग्य की प्राप्ति के लिए भी विशेष दिन होता है।
शरद पूर्णिमा की रात्रि के दिन श्रीकृष्ण ने गोपियों संग रास रचाया था इसलिए इस रात्रि में कई जगह गरबा रास का आयोजन भी किया जाता है। मां लक्ष्मी की पूजा का भी यह विशेष दिन होता है। शरद पूर्णिमा के दिन भगवान श्रीकृष्ण का पूजन कर रात्रि में चंद्रमा की चांदनी में खीर रखकर अ‌र्द्धरात्रि में खीर का नैवेद्य लगाकर आरती कर खीर प्रसाद ग्रहण करने से मानसिक सुख, बल, ओज प्राप्त होता है। शरद पूर्णिमा के दिन से ही कार्तिक स्नान भी प्रारंभ होता है।
कैसे करें शरद पूर्णिमा पूजन
शरद पूर्णिमा के दिन प्रात: स्नानादि से निवृत्त होकर घर के पूजा स्थान को शुद्ध-स्वच्छ करके सफेद आसन बिछाएं। इस पर व्रती पूर्व की ओर मुख करके बैठ जाएं। चारों ओर गंगाजल छिड़कते हुए शुद्धिकरण का मंत्र बोलें। सामने एक चौकी पर साबुत चावल की ढेरी लगाकर उस पर तांबे या मिट्टी के कलश में शकर या चावल भरकर स्थापना करें। उसे सफेद वस्त्र से ढंक दें। उसी चौकी पर मां लक्ष्मी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करके उनकी पूजा करें। लक्ष्मी मां को सुंदर वस्त्राभूषण से सुशोभित करें।
भगवान श्रीकृष्ण का पूजन भी संपन्न करें
गंध, अक्षत, पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य, तांबूल, सुपारी, दक्षिणा आदि से पूजा करें। शरद पूर्णिमा व्रत की कथा सुनें। साथ में भगवान श्रीकृष्ण का पूजन भी संपन्न करें। चंद्रोदय के समय घी के 11 दीपक लगाएं। प्रसाद के लिए मेवे डालकर खीर बनाएं। इसे ऐसी जगह रखें जहां इस पर चंद्रमा की चांदनी आती हो। तीन घंटे बाद मां लक्ष्मी को इस खीर का नैवेद्य लगाए। घर के बुजुर्ग या बच्चों को सबसे पहले इस खीर का प्रसाद दें फिर स्वयं ग्रहण करें। दूसरे दिन प्रात: स्नानादि के बाद कलश किसी ब्राह्मण को दक्षिणा सहित दान दें और उनसे सुख-समृद्धि, उत्तम संतान सुख का आशीर्वाद प्राप्त करें।


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