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शरद पूर्णिमा कल : शरद पूर्णिमा की चांदनी, औषधियों में रोगनाशक शक्ति और स्वास्थ्यवर्धन का अद्भुत संयोग

डेस्क। शरण पूर्णिमा का त्योहार हर साल आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं में दक्ष रहता है और किरणों से अमृत वर्षा होता है. शरद पूर्णिमा की रात में चांद की. . .

डेस्क। शरण पूर्णिमा का त्योहार हर साल आश्विन माह की पूर्णिमा तिथि पर मनाया जाता है। इस दिन चंद्रमा अपनी 16 कलाओं में दक्ष रहता है और किरणों से अमृत वर्षा होता है. शरद पूर्णिमा की रात में चांद की रोशनी में रात भर के लिए खीर रखी जाती है और उसको अगले दिन सुबह खाते हैं। इस खीर के अमृत के तुल्य माना जाता है. कहते हैं कि चंद्रमा की रोशनी में रखी हुई खीर खाने से इंसान का भाग्योदय होता है और बीमारियों से मुक्ति मिलती है। इस साल की शरद पूर्णिमा बेहद खास भी रहने वाली है।
हिंदू पंचांग के अनुसार इस बार शरण पूर्णिमा के दिन उन्नति मुहूर्त और वृद्धि योग भी रहने वाला है जो इस दिन को और खास बना रहा है। बता दें कि ये शुभ मुहू्र्त चौघड़िया मुहूर्त के अंदर ही आएंगे। इसके अलावा भाद्रपद नक्षत्र का शुभ संयोग भी बन रहा है ये एक दुर्लभ संयोग है जो सालों बाद इस दिन पर बन रहा ह।

कब है शरण पूर्णिमा?


हिंदू पंचाग के अनुसार, शरण पूर्णिमा इस साल 6 अक्टूबर दिन सोमवार को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट से शुरू होगा और 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 16 मिनट तक रहेगा। इसलिए शरण पूर्णिमा का त्योहार 6 अक्टूबर को ही मनाया जाएग।

अमृत वर्षा

शरद पूर्णिमा की चांदनी अमृत वर्षा करती है जो रोग चिकित्सा विशेषकर अस्थमा रोग निदान में रामबाण का कार्य करती है। शरद पूर्णिमा को अमृतमय चांदनी में खीर बनाकर अस्थमा से पीड़ित व्यक्ति को खिलाने से विशेष लाभ होता है। आयुर्वेद के साथ जब ज्योतिष विज्ञान के मुहूर्त का समन्वय होता है, तो यह मनुष्य के लिए विशेष कल्याणकारी सिद्ध होता है।
शरद पूर्णिमा की चांदनी का रूप अनोखा एवं निराला होने से आयुर्वेद के मर्मज चिकित्सक एवं वैद्य अनेक रोगनाशक तथा स्वास्थ्यवर्धक औषधियों के योग इस समय तैयार करते हैं। मुख्यतः अस्थमा के रोगियों को जड़ी-बूटियों वाली दवाएं रात की चांदनी में रखकर सुबह खिलाई जाती है जिससे रोगियों को विशेष लाभ प्राप्त होता है। सिरदर्द, खांसी-जुकाम, कफ जनित रोगों से मुक्ति के लिए शरद पूर्णिमा के दिन खीर, घी, चीनी से मिश्रित औषधियां चांदनी में रखकर बासी मुंह खिलाई जाती है। जो व्यक्ति रोगी न हो और शरद पूर्णिमा का लाभ लेना चाहता हो, वह छिलके रहित चने की दाल के दाने थोड़े जल में भिगोकर रात्रि भर भिगोकर रख देने चाहिए, प्रातःकाल उठकर खाली पेट सेवन करने से यह अत्यन्त स्वादिष्ट एवं रोगनाशक बन जाता है।

रात में सुई में धागा डालने का प्रयोग

मान्यताओं के अनुसार, नेत्र रोग से पीड़ित व्यक्ति को शरद पूर्णिमा की चांदनी रात में सुई में धागा डालने का प्रयोग कई बार दोहराया जाता है, इससे नेत्र ज्योति का विकास होता है। ज्योतिषीय ग्रह पिंडों में राजा और रानी होने के कारण सूर्य एवं चन्द्र अत्यधिक महत्व रखते हैं। सूर्य-चन्द्र सृष्टि के निर्माता हैं तथा जीव-जंतुओं से लेकर वनस्पतियों तक इन्हीं के परिणाम हैं। सूर्य की परम ज्योति को चंद्रिका रूप में चन्द्रमा पृथ्वी वासियों एवं वनस्पतियों को प्रदान करता है। चन्द्रमा की पोषक क्षमता दूध में बनी रहती है, शरद पूर्णिमा की रात्रि खीर रूपी औषधि को चन्द्रमा की चांदनी में रखने के बाद ग्रहण किया जाता है, जो अनेक प्रकार के श्वास संबंधित रोगों का निदान करता है। सूर्य आत्मकारक है तो चन्द्रमा मन का कारक है और चन्द्रमा की चांदनी सूर्य की सन्निकट रश्मियों से प्रभावित होकर जीव या वनस्पति पर पड़ती है तब अमृतकणों की वर्षा करके आत्मबल में वृद्धि करती है, रोग निरोधक क्षमता को दूर करती है।