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सीवान में खौफनाक तेजाब कांड की कहानी : जब चंदा बाबू के बेटों को तेजाब से नहलाया, शहाबुद्दीन के खौफ से दखल उठा था बिहार

डेस्क। बिहार के सीवान जिले में साल 2004 में घटी एक ऐसी वारदात जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था और यह घटना था सीवान तेजाब कांड। यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी, बल्कि उस दौर का प्रतीक थी. . .

डेस्क। बिहार के सीवान जिले में साल 2004 में घटी एक ऐसी वारदात जिसने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था और यह घटना था सीवान तेजाब कांड। यह सिर्फ एक हत्या नहीं थी, बल्कि उस दौर का प्रतीक थी जब अपराध और राजनीति एक-दूसरे के पर्याय बन चुके थे। इस खौफनाक कांड के केंद्र में था एक बाहुबली नाम पूर्व सांसद मोहम्मद शहाबुद्दीन, और पीड़ित था एक आम नागरिक चंदा बाबू का परिवार।

शुरुआत: जब रंगदारी ने ली रफ्तार

साल 2004 से पहले तक चंदा बाबू का परिवार सीवान की गोशाला रोड पर ‘राजीव किराना स्टोर’ चलाकर शांतिपूर्वक जीवन जी रहा था। पत्नी कलावती देवी और चार बेटों राजीव, सतीश, गिरीश और विकलांग नीतीश के साथ उनका जीवन सामान्य था। लेकिन 1990 के दशक में जब सीवान में शहाबुद्दीन का आतंक बढ़ा, तब हालात बदलने लगे। शहाबुद्दीन, जो राजद (RJD) से चार बार सांसद रह चुका था, रंगदारी और खौफ का दूसरा नाम बन चुका था।

रंगदारी से शुरू हुआ खौफ

16 अगस्त 2004 की सुबह, शहाबुद्दीन के गुर्गे आफताब, झब्बू मियां, राजकुमार शाह, शेख असलम, मोनू उर्फ आरिफ और मकसूद मियां चंदा बाबू की दुकान पर पहुँचे। उन्होंने 2.5 लाख रुपये की रंगदारी मांगी। जब सतीश ने इंकार किया और कुछ रकम देने की पेशकश की, तो गुर्गों ने हमला कर दिया। दुकान लूटी गई, सतीश को अगवा किया गया, और दुकान में आग लगा दी गई। बाद में गिरीश और राजीव को भी उठा लिया गया।

तेजाब से दी गई दर्दनाक मौत

आरोपों के अनुसार, तीनों भाइयों को शहाबुद्दीन के गांव प्रतापपुर में उसकी कोठी पर ले जाया गया। वहां ‘दरबार’ लगा — शहाबुद्दीन ने आदेश दिया, “विरोध करने वालों को सबक सिखाओ।” इसके बाद सतीश और गिरीश पर तेजाब उड़ेल दिया गया। दोनों की चीखें कोठी की दीवारों में गूंजती रहीं। और फिर सबकुछ खामोश हो गया। लाशों को काटकर बोरे में भर नदी में फेंक दिया गया।राजीव को ज़िंदा छोड़ दिया गया , ताकि डर फैले

टूटा लेकिन न झुका पिता

उस दिन चंदा बाबू पटना में थे। जब खबर मिली तो सब कुछ बर्बाद हो चुका था। परिवार बिखर गया, रिश्तेदारों ने साथ छोड़ दिया, धमकियों की बौछार शुरू हो गई। लेकिन चंदा बाबू ने हार नहीं मानी — वो पटना, दिल्ली, सोनपुर तक न्याय की गुहार लगाते रहे। उन्होंने राहुल गांधी से लेकर बिहार के डीजीपी तक सबको पत्र लिखे। अंततः उन्हें पुलिस सुरक्षा मिली।

फिर लौटा आतंक, राजीव की हत्या

2004 के बाद से ही राजीव इस पूरे कांड का चश्मदीद गवाह था। लेकिन 16 जून 2014, शादी के महज़ 18 दिन बाद, सीवान में राजीव की गोली मारकर हत्या कर दी गई। शहाबुद्दीन भले जेल में था, पर उसका गैंग अब भी सक्रिय था। इस तरह चंदा बाबू ने अपने तीनों बेटों को खो दिया।

इंसाफ की लंबी जंग

2005 में नीतीश कुमार के सत्ता में आने के बाद शहाबुद्दीन पर शिकंजा कसना शुरू हुआ। 9 दिसंबर 2015 को विशेष अदालत ने शहाबुद्दीन और उसके गुर्गों को तेजाब कांड में दोषी ठहराया, और 11 दिसंबर 2015 को उम्रकैद की सजा सुनाई। साल 2017 में पटना हाईकोर्ट और 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने भी यह सजा बरकरार रखी।

अंत और विरासत

लंबी कानूनी लड़ाई के बाद 2019 में कलावती देवी का निधन हुआ, और 16 दिसंबर 2020 को चंदा बाबू भी दिल के दौरे से चल बसे। अब केवल विकलांग बेटा नीतीश बचा है, जिसने अपने माता-पिता और तीनों भाइयों को खो दिया, लेकिन कहता है,

हमने सब कुछ खो दिया, पर हार नहीं मानी

2021 में 1 मई को शहाबुद्दीन की भी कोरोना से मौत हो गई और इस तरह बिहार के सबसे डरावने अध्याय का अंत हुआ। सीवान का तेजाब कांड सिर्फ एक परिवार की त्रासदी नहीं थी। यह उस दौर की कहानी थी जब अपराध सत्ता से बड़ा था,
लेकिन साथ ही यह एक पिता की अडिग हिम्मत की मिसाल भी बन गया। चंदा बाबू का नाम आज भी इस बात की गवाही देता है कि न्याय की लड़ाई कठिन हो सकती है, पर नामुमकिन नहीं।

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