डेस्क। फरहान अख्तर की मोस्ट अवेटेड फिल्म 120 बहादुर शुक्रवार को सिनेमाघरों में रिलीज हुई। फिल्म को रिलीज के साथ काफी पसंद किया जा रहा है। डायरेक्टर रजनीश घई की इस मूवी का रिव्यू भी सामने आ गया है, आइए जानते हैं आखिरी है कैसी वॉर ड्रामा फिल्म 120 बहादुर…
लंबे समय बाद कोई वॉर ड्रामा फिल्म सिनेमाघरों में रिलीज हुई। फरहान अख्तर की फिल्म 120 बहादुर को रिलीज को साथ सिनेमाघरों में शानदार रिस्पॉन्स मिल रहा है। ये फिल्म उन 120 बहादुरों की कहानी कहती है कि जिन्होंने देश के लिए अपनी जान तक की परवाह नहीं की थी। डायरेक्टर रजनीश घई की इस फिल्म के प्रोड्यूसर रितेश सिधवानी, अमित छाबरा और खुद फरहान भी हैं। 137 मिनट की ये फिल्म देखने वालों में जोश और जज्बा भर रही है। इसका हर सीन और हर इमोशन दिल को छू लेने वाला है। वहीं, क्लाइमैक्स की बात करें तो इसे देखकर किसी के भी रोंगटे खड़े हो सकते हैं।
दर्शकों की भावनाओं को गहराई से छुआ
‘कर चले हम फिदा जान-ओ-तन साथियो, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियो’, फिल्म ‘हकीकत’ का यह गाना आज भी हर हिंदुस्तानी के दिल में बसता है। 1964 में आई ‘हकीकत’ उस दौर की ऐसी वॉर फिल्म थी, जिसने दर्शकों की भावनाओं को गहराई से छुआ। तब से लेकर अब तक हिंदी सिनेमा में वॉर फिल्मों का एक अलग ही आकर्षण रहा है। ‘हिंदुस्तान की कसम’, ‘बॉर्डर’, ‘एलओसी कारगिल’, ‘लक्ष्य’, ‘उरी’, ‘शेरशाह’ जैसी कई फिल्मों में फिल्मकारों ने सरहद पर अपने प्राण न्योछावर करने वाले जवानों के साहस के साथ-साथ उनकी निजी दुनिया के मार्मिक पहलुओं को भी उकेरा है। निर्देशक रजनीश रेजी घई भी 1962 में सरहद पर हुई एक ऐसी ही जांबाज लड़ाई की सच्ची घटना पर आधारित फिल्म लेकर आए हैं, जिसके नायकों और युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के नाम पर देशभर में गली-मोहल्लों और चौक-चौराहे के नाम तो रखे गए, लेकिन उनकी कहानी पर कभी सिनेमा नहीं बना।
क्या है फिल्म 120 बहादुर की कहानी
देशभक्ति हर भारतीय के दिल में गहराई से बसती है। इस भावना पर कई फिल्में बनी हैं और कई कामयाब भी रही हैं। वैसे तो हमारे वीर सैनिकों की अनगिनत कहानियां हैं, जिनके बारे में हम या तो नहीं जानते या फिर पर्याप्त जानकारी नहीं रखते। 120 बहादुर ऐसी ही एक कहानी है, लेकिन फिल्म देखने के बाद कोई भी ये महसूस किए बिना नहीं रह सकता कि ये असल जिंदगी के नायक इससे भी बेहतर सिनेमाई श्रद्धांजलि के हकदार है। फिल्म की कहानी की बात करें तो ये रेडियो मैन रणचंदर यादव (स्पर्श वालिया) की नजर से दिखाई गई है। वो चार्ली कंपनी में शामिल हुआ एक जवान हैं और सैनिकों की बहादुरी और बलिदान की कहानी को दर्शकों तक पहुंचाता है। फिर कहानी 15 नवंबर, 1962 के वक्त में जाती है, जहां रणचंदर अपनी बटालियन से मिलते हैं। अहीर रेजिमेंट के 120 बहादुर सैनिक मेजर शैतान सिंह भाटी (फरहान अख्तर) के नेतृत्व में लड़ते हैं। मेजर भाटी साहसी अधिकारी हैं। वे लीडर के साथ अपने साथियों की भावनाओं को समझने वाले इंसान भी हैं। बता दें कि फिल्म 1962 के भारत-चीन युद्ध के दौरान रेजांग ला की लड़ाई पर बनी है, जहां 3000 चीनी सैनिकों ने एक भारतीय चौकी पर हमला कर दिया था। 18000 फीट ऊंचाई, माइनस 20 डिग्री तापमान, संसाधनों की कमी के बावजूद भारतीय जवानों ने हार नहीं मानी और लद्दाख के रेजांग ला दर्रे में चीनी का डटकर मुकाबला किया। मूवी के बारे में और जानने के लिए आपको फिल्म देखनी होगी।
कैसी है फिल्म 120 बहादुर
फिल्म में जोश और जज्बा दोनों ही देखने को मिलता है। फिल्म का बड़ा भार फरहान अख्तर के दमदार अभिनय पर टिका है। हालांकि, कहानी का पहला हिस्सा थोड़ा धीमा है लेकिन सेकंड हाफ में ये रफ्तार पकड़ता है। फरहान एक बेहतरीन एक्टर है, लेकिन इस वॉर ड्रामा फिल्म में वे अपना दम पूरी तरह से दिखाने में सफल नहीं हुए। कई जगह उनके अभिनय में कमी नजर आईं। राशि खन्ना ने एक सैनिक की पत्नी के रूप में अच्छी परफॉर्मेंस दी। उन्होंने इमोशन और स्ट्रेंथ दोनों को बखूबी तरीके से पेश किया। विवान भटेना भी अपनी अच्छी छाप छोड़ते हैं। रेडियो ऑपरेटर की भूमिका में स्पर्श वालिया, जो फिल्म की कहानी भी बताते हैं, ने शानदार अभिनय किया है। वहीं, राजीव मेनन की लेखनी और सुमित अरोड़ा के डायलॉग्स में दम की थोड़ी कमी नजर आई। रजनीश घई का निर्देशन अच्छा रहा, उन्होंने युद्ध के सीन्स को बेहतरीन तरीके से पेश किया। फिल्म की सबसे बड़ी खूबी इसका रियलिस्टिक ट्रीटमेंट है, ना इसमें ओवर ड्रामा देखने को मिलता है और ना अनावश्यक देशभक्ति, बस इसमें सच्चाई से भरी बहादुरी की दास्तान दिखाई और सुनाई गई है।